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केंद्र का Air Pollution से निपटने पर फोकस, एयर प्यूरीफायर के भ्रामक विज्ञापनों पर लगेगा लगाम

नई दिल्ली : बदलते मौसम, पराली के चलते दिल्‍ली-एनसीआर की आबोहवा दिवाली से पहले ही खराब होना शुरू हो गई है. कुछ जगहों पर तो प्रदूषण का स्‍तर डेंजर जोन की ओर बढ़ गया है. ऐसे में आने वाले दिनों में AQI का स्‍तर और भी खराब होने की संभावना है. ऐसे में बाजार में Air Purifiers की मांग भी तेजी से बढ़ने लगी है. ऐसे में सरकार भी एयर प्यूरीफायर की क्‍वालिटी को लेकर काफी गंभीर हो गई है.

ग्राहक की चिंता, एयर प्यूरीफायर की क्वालिटी, सर्विस और दावे को लेकर सरकार अब सख्‍त कदम उठाने की तैयारी में है. इसके तहत एयर प्यूरीफायर की क्वालिटी को जांचने के लिए सर्विलांस बढ़ाया जाएगा. फैक्ट्री, आउटलेट से रैंडम सैंपलिंग ली जाएगी. एयर फिल्टर के लिए QCO है, ऐसे में अगर फिल्‍टर घटिया पाया गया तो BIS एक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी. सरकार ने ग्राहकों से भी अपील की है कि वे बिना ISI मार्क वाला एयर प्यूरीफायर न खरीदें. साथ ही सर्विस सेंटर की जानकारी भी आसानी से उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं.

बता दें कि दिल्‍ली-एनसीआर में प्रदूषण एक बहुत बड़ा मुद्दा है. हर साल दिवाली के बाद यहां प्रदूषण इतना बढ़ जाता है कि लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है. अभी दिवाली आई भी नहीं और तमाम जगहों पर एक्‍यूआई खतरनाक स्‍तर पर पहुंचने लगा है. नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद में प्रदूषण का हाल अभी से काफी खराब है. नोएडा का वायु गुणवत्ता सूचकांक सोमवार को सुबह 10 बजे 259, ग्रेटर नोएडा का AQI (Air Quality Index) 270 और गाजियाबाद में 265 दर्ज किया गया है.

नोएडा के सेक्टर 116 में वायु सूचकांक 306 मापा गया है, जो खतरनाक जोन में पहुंच गया है. इसी तरह ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क 5 में वायु सूचकांक 310 पर पहुंचा हुआ है. वहीं गाजियाबाद के लोनी इलाके में स्थिति और भी गंभीर हो चुकी है. यहां पर वायु सूचकांक 335 पर पहुंच गया है. हालातों को देखते हुए दिल्ली सरकार ने भी सोमवार को आदेश जारी करते हुए 1 जनवरी तक पटाखे के उत्पादन, भंडारण और बिक्री पर रोक लगा दी है.

हवा की क्वालिटी मापने के लिए एयर क्वालिटी इंडेक्स (Air Quality Index-AQI) का इस्तेमाल किया जाता है. AQI एक ईकाई है, जिसके आधार पर ये पता चलता है कि उस जगह की हवा सांस लेने लायक है या नहीं. AQI में 8 प्रदूषक तत्वों सल्फर PM10, PM2.5, NO2, SO2, CO, O3, NH3 और PB को देखा जाता है कि उनकी मात्रा कितनी है. अगर उनकी तय लिमिट से ज्यादा मात्रा होती है, तो समझ जाता है कि वहां की हवा प्रदूषित है.

एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) के छह मानक होते हैं, जो ये बताते हैं कि शहर की हवा सांस लेने योग्‍य है या नहीं. ये छह मानक हैं- अच्छी, संतोषजनक,सामान्‍य, खराब, बहुत खराब और गंभीर जैसी कैटेगरी शामिल हैं. 0-50 के बीच ‘अच्‍छी’, 51-100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 से 200 के बीच ‘सामान्य’, 201 से 300 के बीच ‘खराब’, 301 से 400 के बीच ‘बहुत खराब’ और 401 से 500 के बीच ‘गंभीर’ माना जाता है.

मसलन, कंपनियां अक्सर भ्रामक विज्ञापनों के जरिए अपने प्रोडक्ट्स का प्रचार करती हैं, जबकि प्रोडक्ट्स में क्वालिटी नहीं पाई जाती. इस मामले पर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने वर्ल्ड स्टैंडर्ड्स डे इवेंट में बात भी की थी और मिसलीडिंग विज्ञापनों पर चिंता जाहिर की थी. उन्होंने कहा था, “एयर प्यूरीफायर बनाने वाली कंपनियां गलत दावे करती हैं और हम देखते हैं कि कितना कुछ लिखा होता है, लेकिन उसमें कुछ नहीं होता. उसमें मात्र एक फैन लगा होता है, फिर भी दावे किए जाते हैं.

प्रह्लाद जोशी ने इस मुद्दे का समाधान निकालने के लिए BIS, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय और उपभोक्ताओं के बीच सहयोग की शुरुआत करने की बात कही थी. इस पहल का समय अहम है क्योंकि भारतीय शहरों में बढ़ते प्रदूषण स्तर ने एयर प्यूरीफायर की डिमांड बढ़ाई है और ऐसे में कंपनियां अक्सर भ्रामक दावों के साथ अपने प्रोडक्ट्स के विज्ञापन करती हैं.

इस कदम से यह उम्मीद की जा रही है कि उपभोक्ताओं को अच्छी क्वालिटी के एयर प्यूरीफायर मिल सकें और यह सुनिश्चित करने की कोशिश होगी कि कंपनियां भ्रामक दावों के साथ अपने प्रोडक्ट्स का विज्ञापन करने पर रोक लगाएं. एक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि इस तरह की जांच से क्वालिटी कंट्रोल को बेहतर किया जा सकता है और कंपनियों के गलत दावे करने पर लगाम लगाई जा सकती है.

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