अद्धयात्मफीचर्ड

प्रेमियों को मिलाते हैं यहां गजानन’

l_lord-ganesha-temple-jodhpur-ishkiya-gajanan-5730768c1cbac_lजोधपुर. जोधपुर शहर के परकोटे के भीतर आडा बाजार जूनी मंडी में प्रथम पूज्य गणेशजी का एक एेसा अनूठा मंदिर जहां केवल गणेश चतुर्थी ही नहीं बल्कि प्रत्येक बुधवार शाम को मेले सा माहौल रहता है। दर्शनार्थियों में सर्वाधिक संख्या युवा वर्ग की है जो इस अनूठे विनायक अपना ‘नायक’ मानते है। 

मूलत: गुरु गणपति मंदिर की ख्याति समूचे शहर में ‘इश्किया गजानन’ जी मंदिर के रूप में लोकप्रिय है। संकरी गली के अंतिम छोर पर मंदिर करीब सौ से भी अधिक वर्ष प्राचीन गुरु गणपति मंदिर को चार दशक पूर्व क्षेत्र के ही कुछ लोगों ने हथाइयों पर ‘इश्किया गजानन’ की उपमा दी। 

दरअसल मंदिर संकरी गली के अंदर एक निजी घर के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने है। सत्तर के दशक में जब ना तो किसी के पास फोन थे और ना ही वर्तमान वाट्स एप जैसी सुविधाएं थी। शहर भी परकोटे के भीतर ही था। युवा वर्ग मर्यादाओं का विशेष ख्याल रखते थे। शहर के ही सगाई के बाद कुछ युवा जोड़े गणपति दर्शन के दौरान कुछ क्षण एक दूसरे को बतियाने के लिए बुधवार को मंदिर पहुंचते थे। 

अंतिम छोर पर स्थित मंदिर की स्ट्रीट व आस-पड़ौस में भी कोई और निवास नहीं होने से किसी बड़े बुजुर्ग की नजरे भी नहीं पड़ती और बड़ों की मर्यादाओं का भी पालन हो जाता था। यह बात आस पास के कुछ हथाईबाजों के गले नहीं उतरी और गुरु गणपति मंदिर धीरे धीरे ‘इश्किया गजानन’ के नाम से चर्चित हो गया।

मंदिर गुरु गणपति ही

मंदिर के संरक्षक व जीर्णोद्धारक 87 वर्षीय वैद्य बद्रीप्रसाद सारस्वत ने बताया कि करीब सौ वर्ष पूर्व गुरुवार के दिन उनके गुरुजी गुरां सा लालचन्द्र भट्टारक ने मंदिर की विधिवत प्राण की प्रतिष्ठा की थी तब से मंदिर का नाम गुरु गणपति ही है। दो दशक पूर्व माघ शुक्ल पंचमी को मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। 

एेसा भी कहा जाता है कि महाराजा मानसिंह के समय गुरु गणपति की मूर्ति गुरों का तालाब खुदाई के दौरान मिली थी। बाद में गुरों का तालाब से एक तांगे में मूर्ति को विराजित कर जूनी मंडी स्थित निवास के समक्ष चबूतरे पर लाकर प्रतिष्ठित किया गया। 

भोर से पहले ही दर्शन के लिए पहुंचते थे

देश आजाद होने से पहले गुरु गणपति के दर्शनार्थ सुबह 4 बजे से ही दर्शनार्थी पहुंचते थे। मंदिर स्ट्रीट में अंधेरा होने से हालांकि उन्हें खासी परेशानी होती थी। लेकिन वर्ष 1951 में जब क्षेत्र में बिजली की लाइनें बिछाई गई हुई तो दर्शनार्थियों के लिए एक बल्ब लगाकर रोशनी का इंतजाम किया गया। 

गुरु गणपति प्रतिमा का पहले त्रिमासिक नवशृंगार होता था लेकिन पिछले दो दशक से प्रत्येक बुधवार को प्रतिमा का पूर्ण रूप से नवशृंगार किया जाता है। मंदिर में सुबह 5 से दोपहर 12 बजे तक व शाम 5.30 से रात 9 बजे तक दर्शन की सुविधा है। बुधवार को रात्रि 11 बजे तक मंदिर खुला रहता है। 

 

Related Articles

Back to top button