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40 साल में 40 हजार गुना बदल गयी अयोध्या!

घायल कारसेवकों की सेवा से अब तक की बदलती अयोध्या की कहानी डॉ.सूर्यकान्त की जुबानी

लखनऊ : इटावा के एक आध्यात्मिक परिवार में जन्मे डॉ. सूर्यकान्त के बाबा स्व. गंगा प्रसाद त्रिपाठी व परबाबा स्व. जमुना प्रसाद त्रिपाठी श्रीमद भागवत के बड़े विद्वान थे। डॉ. सूर्यकान्त ने वर्ष 1983 में किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में एम.बी.बी.एस. में प्रवेश लिया था। एमबीबीएस तृतीय वर्ष के छात्र थे जब वर्ष 1986 में राम मंदिर का ताला खुला था, उस वक्त हड्डी रोग विभाग के शिक्षक डॉ. जी.के. सिंह के नेतृत्व में एमबीबीएस के छात्र अयोध्या गए थे। उसके बाद हर साल यह सिलसिला चलता रहा। डॉ. सूर्यकान्त का लगभग चार दशकों से अध्योध्या से नाता रहा है। वह कहते हैं कि पिछले 40 साल में अयोध्या 40 हजार गुना बदल गई है। अयोध्या की हर गली, मोहल्ला में साफ-सफाई के साथ भव्य सजावट है। अयोध्या में इससे पहले सिर्फ तीन अवसरों पर ही इतना सजावट की गई होगी। पहली बार जब राम का जन्म हुआ होगा। दूसरी बार जब उनका विवाह हुआ होगा तथा तीसरी बार जब वह रावण का वध कर अयोध्या वापस लौटे होंगे।

डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि वर्ष 1990 में कारसेवकों पर गोली चलने की घटना हुई। उस समय वहां का जिला अस्पताल बहुत छोटा था। समाचार पत्रों में हमने खबर पढ़ी कि डॉक्टर सभी का इलाज नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में हमने वहां जाने की इच्छा जताई। माहौल ठीक नही था। बाराबंकी से आगे जाने पर पूरी तरह से रोक लग गयी थी। ऐसे में के.जी.एम.यू. के एनेस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर डॉ. नारायण स्वरूप भटनागर ने याचिका की व्यवस्था कराई। इलाज के लिए कोर्ट ने हमें जाने का आदेश अगले ही दिन जारी कर दिया। इसे लेकर हम कुल 12 डॉक्टर वहां जाने के लिए तैयार हो गए। हम लोगों ने कोर्ट का आदेश लिया और वहां पहुंचे। रास्ते में कई जगह वह आदेश सुरक्षाबलों को दिखाना पड़ा। अयोध्या पहुंचने पर हमारे रुकने की व्यवस्था वी.आई.पी. कराई गयी। अयोध्या के अस्पताल में लगभग 70-72 घायल कारसेवक थे जिसके घावों की ड्रेसिंग आदि हम लोग करते थे। जिस आश्रम में हम पहुंचते वहां दो-चार घायल कारसेवक मिलते। कई घायलों को तो केजीएमयू रेफर करना पड़ा। वैसे तो सभी चिकित्सकों के लिए रहने व खाने की उत्तम व्यवस्था थी लेकिन इनको लाइन में लगकर खिचड़ी प्रसाद खाने में विशेष आनन्द आता था।

वास्तव में डॉ. सूर्यकान्त प्रारम्भ से ही जन सेवा और आध्यात्मिक गतिविधियों में भाग लेते रहे हैं। एम.बी.बी.एस. के द्वितीय वर्ष के छात्र के रूप में 1984 में लखनऊ में आई बाढ़ के समय बाढ़ पीड़ितों को भोजन, वस्त्र व दवा आदि का वितरण डॉ. सूर्यकान्त ने किया था। बाद में पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की संस्था ’’भाऊराव देवरस सेवा न्यास’’ में 21 वर्ष (1993 से 2014) तक स्वास्थ्य सचिव, ट्रस्टी एवं कोषाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने निःशुल्क नेत्र शिविर, दिव्यांग शिविर, चिकित्सा शिविर आदि के माध्यम से हजारों लोगों की सेवा व सहायता की। उनकी देखरेख में गरीबों के लिए मुफ्त ओपीडी में 21 वर्षों के दौरान 1,35,000 से अधिक रोगी इससे लाभान्वित हुए हैं। उनकी देखरेख में एक साप्ताहिक मोबाइल मेडिकल वैन ओपीडी भी चलाई गई है जिसने 420000 से अधिक लोगों की मदद की है। डॉ. सूर्यकान्त ने इस संस्था के कोषाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए एस.जी.पी.जी.आई के रोगियों एवं परिजनों हेतु एक रैन बसेरा ’’माधव सेवा आश्रम’’ का भी निमार्ण कराने में सक्रिय भूमिका निभाई। इस रैन बसेरा का उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 2002 में किया था।

डॉ. सूर्यकान्त ने उप्र जूनियर डाक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष (1993-1995) रहते हुए के.जी.एम.यू. में जूनियर डॉक्टर्स व छात्रों द्वारा रक्तदान, निःशुल्क चिकित्सा शिविर आदि सम्पन्न कराये। प्रतिवर्ष 12 जनवरी (स्वामी विवेकानन्द जयन्ती) से 23 जनवरी (नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जयन्ती) तक विशेष रक्तदान शिविर का आयोजन के.जी.एम.यू. के ब्लड बैंक में किया जाता था। डॉ. सूर्यकान्त प्रतिवर्ष दो बार स्वयं भी रक्तदान करते थे। इसके साथ ही के.जी.एम.सी./के.जी.एम.यू. की प्रथम गैर सरकारी संस्था ’’हरिओम सेवा केन्द्र’’ की स्थापना भी 22 जून 1998 को डॉ. सूर्यकान्त के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के कक्ष में हुई। यह संस्था आज भी के.जी.एम.यू. के गरीब रोगियों की दवा आदि से मदद करती है। पिछले पांच वर्षों से डॉ. सूर्यकान्त ’’धन्वन्तरि सेवा न्यास’’ के अध्यक्ष के रूप में लखनऊ के बहुत से सरकारी अस्पतालों में रोगियों के लिए सेवा कार्य कर रहें है। इसके साथ ही 20 अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ निःशुल्क चिकित्सा सेवा एवं समाज सेवा कार्य कर रहें हैं। उन्होंने 100 से अधिक टी.बी. के रोगी, एक ग्राम पंचायत व एक स्लम एरिया को भी टी.बी. मुक्त बनाने हेतु गोद ले रखा है। इसके साथ ही वे पर्यावरण व योग के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।

डॉ. सूर्यकान्त द्वारा कोविड के इलाज के लिए आइवरमेक्टिन पर श्वेत पत्र प्रकाशित किया, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ.) की वेबसाइट पर भी प्रदर्शित किया गया है। उन्होंने केजीएमयू में सबसे पहले और पहली डोज कोविड वैक्सीन की लगवायी। इस कारण राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) ने डॉ. सूर्यकांत को कोविड वैक्सीन का ब्रांड एंबेसडर के रूप में चुना। इसके अतिरिक्त, उन्होंने भारत के ग्रामीण लोगों के लिए ’ना जांच, ना रिपोर्ट, करो कोरोना पर सीधी चोट’ नामक एक सरल और अद्वितीय उपचार का प्रोटोकॉल भी बनाया और विभिन्न स्वैच्छिक संगठनों और ग्राम प्रधानों की नेटवर्किंग के माध्यम से कोरोना की दवाएं वितरित की और ग्रामीणों की जान बचाई। उन्होंने केजीएमयू में कोविड अस्पताल के प्रभारी के रूप में काम किया है और यूपी के 58 कोविड अस्पतालों के कोविड आईसीयू की निगरानी भी की। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य कोविड ट्रेनर के रूप में भी काम किया। कोरोना में उनके अनुकरणीय कार्य के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली और उन्हें फ्रंट लाइन कोविड-19 क्रिटिकल केयर अलायंस का अंतर्राष्ट्रीय भागीदार बनाया गया। क्रिस्टीन क्लार्क (यूनाइटेड किंगडम), केली जॉन्स (यूएसए) आदि जैसे प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों ने उनका साक्षात्कार लिया। कोविड संकट के दौरान उन्हें यूपी सरकार द्वारा पीएम के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी सहित विभिन्न स्थानों पर कोविड समीक्षा के लिए विशेषज्ञ के रूप में भेजा गया था।

डॉ. सूर्यकान्त ने सभी भक्तों को इस कड़ाके की सर्दी से बचने के लिए बताया कि अपने शारीरिक तापमान को मेनटेन रखने के लिए उचित वस्त्रों को पहनें और शाम को पाँच मिनट भाप अवश्य लें जिससे फेफड़ों में जो प्रदूषण गया है उसकी साफ सफाई हो सके साथ ही दिनचर्या में प्राणयाम, योग को भी शामिल करें। इस समय सांस की नलियां सिकुड़ी हुयी हैं, खून की नलियां सिकुड़ी हुई हैं जिससे हार्टअटैक, स्ट्रोक, लंगअटैक का खतरा है, इसलिए मार्निग वॉक बिल्कुल न करें। गर्म पेय पदार्थ चाय, कॉफी, सूप का उपयोग करते रहें। भोजन में खिचड़ी, गुड़, तिल से बने खाद्य व्यंजनों का सेवन करें।

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