साहित्य

‘बड़ा रहस्यपूर्ण है ‘स्वयं’, सोचता हूं कि क्या मेरा व्यक्तित्व दो ‘स्वयं’ से बना है, एक देखता है, दूसरा दिखाई पड़ता है’

शतपथ ब्राह्मण में प्रश्न है – “मनुष्य को कौन जानता है?” मनुष्य को दूसरा मनुष्य नहीं जान सकता। प्रत्येक मनुष्य…

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वायु प्राण है, प्राण नहीं तो जीवन नहीं

जीवन को भरपूर देखते हुए वायु को भी देखा जा सकता है। हम आधुनिक लोगों ने वायु को दूषित किया…

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परम सत्ता रस है, शब्द जीवन को मधुरस से भर दे, तब कविता

हृदयनारायण दीक्षित : अस्तित्व एक इकाई है। भारतीय दर्शन में इस अनुभूति को अद्वैत कहते हैं। अस्तित्व में दो नहीं…

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निष्प्राण मूर्ति में प्राण भरता है जल, पवित्रता का भाव तीर्थस्थल

हृदयनारायण दीक्षित : तीर्थ भारत की आस्था है। लेकिन भौतिकवादी विवेचकों के लिए आश्चर्य हैं। वैसे इनमें आधुनिक विज्ञान के…

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तर्क, जिज्ञासा और दर्शन की शुरुआत ऋग्वैदिक काल से भी प्राचीन

हिन्दुओं का कोई सर्वमान्य आस्था ग्रंथ नहीं और न ही सर्वमान्य देवता। हरेक हिन्दू की अपनी इच्छा। कोई अग्नि उपासक…

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‘प्रकृति की संगति में स्वयं का पुनर्सृजन ही वास्तविक अभिव्यक्ति’

हृदयनारायण दीक्षित: बोलने से मन नहीं भरता। लगातार बोलना हमारा व्यावहारिक संवैधानिक दायित्व है। विधानसभा का सदस्य हूं और अध्यक्ष…

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बाल दिवस: जाने चाचा नेहरू के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें

नई दिल्‍ली: द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद कई देश गुलामी से मुक्‍त हुए और वैश्विक मानचित्र पर एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र…

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‘दुख का कारण है अज्ञानता, ज्ञान से मिलता है आनंद’

हृदयनारायण दीक्षित : गर्भ सभी प्राणियों का उद्गम है। माँ गर्भ धारण करती है। पिता का तेज गर्भ में माँ…

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स्वस्थ, मस्त जीवन मधुअभिलाषा है, रोगरहित दीर्घ जीवन के अभिलाषी थे हमारे पूर्वज

हृदयनारायण दीक्षित : कालद्रव्य बदल गया है। समय भी प्रदूषण का शिकार है। दिक् भी स्वस्थ नहीं। मन और आत्म…

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सौन्दर्यबोध से भरेपूरे हैं वैदिक पूर्वज

हृदयनारायण दीक्षित : संसार धर्म क्षेत्र है। यह कथन शास्त्रीय है। संसार कर्मक्षेत्र है। पुरूषार्थ जरूरी है। यह निष्कर्ष वैदिक…

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आखिर रूप, रस, गंध, स्पर्श और स्वाद के आनंद का केन्द्र क्या है?

स्वयं के भीतर बैठकर अन्तःकरण की गति और विधि देखना ही अध्यात्म है हृदयनारायण दीक्षित : संसार प्रत्यक्ष है। दिखाई…

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अहंकार रूपी रावण को अपने अंदर मारने के लिए राम रूपी ईश्वरीय गुण विकसित करना है

दशहरा पर्व हर्ष और उल्लास का त्योहार है डा. जगदीश गांधी : दशहरा हमारे देश का एक प्रमुख त्योहार है।…

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भारत शक्ति उपासना में आनंदमगन है

विज्ञान प्रकृति में पदार्थ और ऊर्जा देख चुका है। पदार्थ और ऊर्जा भी अब दो नहीं रहे। समूची प्रकृति एक…

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वैदिक परंपरा है प्रश्न और जिज्ञासा

हृदयनारायण दीक्षित : प्रश्न और जिज्ञासा वैदिक परंपरा है। भारतीय इतिहास के वैदिक काल में सामाजिक अन्तर्विरोध कम थे। तब…

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प्रत्यक्ष मानवीय गुण है पितरों का आदर

हृदयनारायण दीक्षित : श्रद्धा भाव है और श्राद्ध कर्म। श्रद्धा मन का प्रसाद है और प्रसाद आंतरिक पुलक। पतंजलि ने…

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राष्ट्रीय अस्मिता का सामूहिक सत्य है ‘भारत बोध’

बोध आसान नहीं। शोध आसान है। शोध के लिए प्रमाण, अनुमान, पूर्ववर्ती विद्वानों द्वारा सिद्ध कथन और प्रयोग पर्याप्त हैं।…

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क्या कर्मफल की इच्छा दोषपूर्ण अभिलाषा है, अनासक्त कर्म ही क्यों श्रेष्ठ है?

हम सब कर्मशील प्राणी हैं। कर्म की प्रेरणा है कर्मफल प्राप्ति की इच्छा। कर्मफल प्राप्ति की अभिलाषा के कारण ही…

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हम सभी स्वतंत्र भारत के परतंत्र नागरिक हैं…

हम सभी स्वतंत्र भारत के परतंत्र नागरिक हैं…यह वाक्य पढ़ने में बिल्कुल गलत लगा न? कड़वा तो ऐसा है जैसे कच्ची…

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रामराज्य : आशुतोष राणा की क़लम से..{भाग_६}

स्तम्भ: कैकेयी के स्वर ने राम में अपार ऊर्जा का संचार किया। एक हल्के से विराम के बाद राम ने कहा-…

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रामराज्य : आशुतोष राणा की कलम से..{भाग ५}

स्तम्भ:  मंथरा के जाने के बाद कैकेयी मंथरा के विचारों का सूक्ष्म अवलोकन करने लगीं, मनुष्य स्वभाव से ही महत्वाकांक्षी…

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रामराज्य : आशुतोष राणा की कलम से..{.भाग_४}

स्तम्भ: अयोध्या पीछे छूट चुकी थी, जनशून्य क्षेत्र आरम्भ हो चुका था। कैकेयी इस सत्य को जानती थीं कि जब…

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सेवासदन के 100 वर्ष पूर्ण होने पर संगोष्ठी का आयोजन

वाराणसी, 06 सितम्बर। डी.ए.वी. पीजी काॅलेज के हिन्दी विभाग के तत्वावधान में गुरूवार को मुंशी प्रेमचन्द्र के उपन्यास ‘सेवासदन’ के…

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वासुदेव_कृष्ण : आशुतोष राणा की कलम से.. {भाग_१}

स्तम्भ: वे अपने महल के विशाल कक्ष में बेचैनी से चहल क़दमी कर रहे थे, मृत्यु के मुख पर खड़े…

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वासुदेव_कृष्ण : आशुतोष राणा की कलम से..{भाग_२]

स्तम्भ : कंस ने लगभग डाँटते हुए कहा- मुझे बहलाओ मत कृष्ण। मैं गोकुल की गोपी नहीं हूँ, जो तुम्हारे…

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वासुदेव_कृष्ण : आशुतोष राणा की कलम से.. {भाग_३}

स्तम्भ : कृष्ण अपने हृदय की आत्मीयता को कंस पर उड़ेलते हुए बोले- मुक्त होने के लिए रिक्त होना पड़ता…

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वासुदेव_कृष्ण : आशुतोष राणा की कलम से… {भाग_४}

स्तम्भ : कृष्ण, मेरी माँ पवनरेखा अनिंद्य सुंदरी थी, अपने पति उग्रसेन के प्रति पूर्णतः समर्पित। किंतु किसी भी स्त्री…

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वासुदेव_कृष्ण :आशुतोष राणा की कलम से स्तम्भ {भाग_५]

स्तम्भ: मेरा अनुभव है कृष्ण, कि #दुर्भाग्य व्यक्ति को #अपने_पास_बुलाता_है, किंतु #सौभाग्य व्यक्ति तक #स्वयं ही पहुँच जाता है। कंस…

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वासुदेव_कृष्ण :आशुतोष राणा की कलम से.. {भाग ६} 

स्तम्भ : मेरी माँ पवनरेखा जब अपने पितृगृह पहुँची तब वह अपने पति से विरह और हृदय की वेदना से…

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