कहानी बाघ का इंटरव्यू
लेखक- जंग हिन्दुस्तानी
उस दिन रेंज परिसर में बाघ और बाघिन के पिंजरे में कैद होने की सूचना प्राप्त हुई थी । बतौर पत्रकार मैं भी रेंज कार्यालय पहुंचा था । हमारे अधिकतर पत्रकार मित्र वन अधिकारियों के साथ चाय नाश्ता कर रहे थे और बातचीत कर रहे थे। मैं सीधे वहां पहुंचा जहां पर बाघ मौजूद था। बाघ ट्रैक्टर ट्राली पर रखे हुए पिंजड़े में कैद था और बार-बार बाहर आने के लिए बेताब हो रहा था। मैंने बाघ को अपना परिचय दिया और उससे बातचीत करने के लिए राजी किया। इसके बाद जो कहानी निकल कर के आई उसने मुझे झकझोर दिया।
उसने बताया कि आज के 7 वर्ष पूर्व जब मेरा जन्म हुआ था तो मैंने अपने आप को गन्ने में पाया था। मेरे तीन भाइयों और थे । जन्म के 15 दिन तक मुझे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था और अंधेरे में इधर उधर भटक रहा था बाद में धीरे-धीरे मैंने देखना शुरू हुआ। सिर्फ मेरी मां मेरी साथ थी। मैने अपनी मां से कई बार अपने पिताजी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि किसी दिन तुम्हारे पिताजी से मुलाकात करवा दूंगी। मैने अपने आप को महसूस किया कि वह एक घने जंगल में सुरक्षित है लेकिन यह एक जंगल नहीं ,गन्ने का खेत था । बमुश्किल 2 महीने ही हुए होंगे कि अचानक एक दिन खेत का मालिक अपने मजदूरों के साथ आ गया और उसमें गन्ने की कटाई शुरु कर दी। मैंने अपने घर को उजड़ता हुआ देखकर मजदूरों को धमकाने की कोशिश की तो मेरी मां ने मुझे डांट दिया।
हम तीनों भाइयों के साथ मेरी मां मुझे लेकर जंगल के बीच में आ गई यहां पर चारों तरफ लैंटाना की झाड़ियां फैली हुई थी। ऊंचे ऊंचे पेड़ थे और कहीं कहीं घास के खाली मैदान। मुझे लेंटाना की झाड़ियों में चलना पसंद नहीं था अक्सर मेरे बाल उस में फंस जाया करते थे। हमें घूमने के लिए तो बहुत सी जगह मौजूद थी लेकिन छिपने के लिए जगह नहीं थी । घूमने वाले पर्यटकों की चहलकदमी से मुझे नींद नहीं आती थी ।
हम लोगों ने वह जगह छोड़ने का भी मन बना लिया और आज से 7 वर्ष पूर्व हम नदी के किनारे ऐसे स्थान पर आ गए। यहां पर खर और मुंजा की बड़ी बड़ी झाड़ियां थी। इस स्थान पर रहने में बहुत मजा आता था । यहां पड़ोस के गांव से आने वाले जानवरों का शिकार भी आसानी से मिल जाता था। नदी के किनारे पर झाड़ियों के अंदर से बैठकर हम दूर-दूर तक नदी को निहारा करते थे। इस जगह से थोड़ी दूर पर एक घड़ियाल सेंटर बना हुआ था जो अब प्रयोग में नहीं आता था। एक दो मल्लाह लोगों के घर यहां पर बने हुए थे। जो लोगों को नाव से नदी में इधर से उधर ले जाया करते थे।
यह जगह हमें बहुत पसंद थी लेकिन बदकिस्मती ने यहां भी हमारा साथ नहीं छोड़ा। अचानक एक दिन उस स्थान पर घूमने के लिए सूबे के मुख्यमंत्री आए। उन्होने हमारे जंगल को पर्यटकों का जंगल बना दिया। जिस जगह पर हम रहते थे, वहां पर बड़े पैमाने पर साफ सफाई होकर पर्यटकों के रुकने के लिए आवास बन गए। हमें रातो रात नदी पार करते हुए उस पार जाना पड़ा। यह जंगल बहुत बड़ा था लेकिन यहां पर कई दुश्मन मौजूद थे। हमारे एक भाई के साथ वहां के एक बाघ की लड़ाई हुई और हमारा भाई मारा गया। हमें फिर वह स्थान छोड़कर आगे बढ़ना पड़ा और एक और बड़ी नदी पड़ी जिसको पार करके हम शायद दूसरे जिले में आ गए। यह जंगल 2 किलोमीटर चौड़ा और 12 किलोमीटर लंबा था। यहां सब कुछ ठीक था लेकिन पानी पीने के लिए रेल लाइन और सड़क को पार करके उस पार के वाटर डैम में जाना पड़ता था ।
मेरी मां मुझे बहुत प्यार करती थी। मेरे दूसरे भाई धीरे धीरे आजाद हो गए थे और अब वह मां का हाल लेने भी नहीं आते थे लेकिन मैंने अपनी मां के साथ नहीं छोड़ा । बगल वाले गांव वालों के साथ हमारा अच्छा रिश्ता था। वह अपने खेतों में काम करते रहते थे और हम उनके खेतों के बीच से निकल जाया करते थे लेकिन कभी भी उन्होंने मुझे कोई अपशब्द नहीं बोला। मुझसे जब भी किसी से कोई विवाद हो जाता था तो मेरी मां मुझे बहुत डांटती थी और समझाती थी ।
मेरी मां बूढ़ी हो चली थी और अब वह शिकार करने में सक्षम नहीं रह गई थी। छोटा जंगल होने के कारण हमें भी कभी कभार शिकार मिल पाता था । अक्सर हम भी भूखे रह जाते थे । कुछ दिन तक मेरी मां ने भूख बर्दाश्त किया लेकिन जब उसकी भूख ने जवाब दे दिया तो उसने गांव के लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया । एक दिन तो हद हो गई जब उसने पड़ोस में रहने वाले महात्मा ,जो हमें बहुत प्यार करते थे उन्हें ही वह मार के खा गई । अब मुझे लगने लगा कि मेरी मां बच नहीं पाएगी । किसी ना किसी दिन लोग उसे मार देंगे या फिर मुझे मार देंगे।
पड़ोस के गांव के एक नौजवान को मारने के बाद स्थानीय लोग उग्र हो गए और जब सरकार पर दबाव ज्यादा बढ़ा तो फिर वन विभाग ने मेरी मां को फसाने के उद्देश्य से पिजड़ा लगा दिया। मैंने महसूस किया कि कई दिनों से लोगों की निगाह मेरी मां के ऊपर है। वह हाथियों से मेरे ऊपर भी निगरानी कर रहे हैं । कई अजनबी कई गाड़ियों से हमारे जंगल में दौड़ भाग कर रहे हैं, तभी मुझे अज्ञात अनहोनी की आशंका होने लगी । जब मैंने पिंजड़ा लगा देखा तो मैंने अपने आप को उसमें फसाना उचित समझा । मैंने सोचा कि शायद मेरे फंस जाने से मेरी मां बच जाए लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मैं तो फंसा ही, अगले दिन बाद मेरी मां भी दूसरे पिंजड़े में फंसकर आ गई।
अब आगे क्या होगा ? हमें कुछ नहीं मालूम। लेकिन मैं इतना जरूर कहना चाहता हूं कि इसमें मेरी मां की कोई गलती नहीं है। मेरी मां के चारों चीरफाड़ करने वाले केनाइन दांत खराब हो चुके हैं और अपने जीवन की रक्षा के लिए हमें भोजन तो करना ही पड़ेगा। बस सिर्फ यही हमारी मां की गलती है। अब लगता है कि हमारी मां के साथ कभी मुलाकात नहीं हो सकेगी। मैं आप लोगों के सामने हाथ जोड़कर कहता हूं कि जो भी सजा देनी हो मुझे दी जाए लेकिन मेरे मां को छोड़ दिया जाए। आज ही मैंने सुना है कि उसे किसी चिड़ियाघर में भेज दिया जाएगा और मुझे किसी दूसरे जंगल में । 9 वर्ष पुराना हमारा साथ एक पल में समाप्त हो जाएगा।
मैं महसूस कर रहा था कि बाघ बेहद तनाव में था। दुख उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था मैं कुछ कर नहीं सकता था इस नाते मैं उसे बिना कोई आश्वासन दिये वापस अपने घर लौट आया। अब उस पर कहानी लिखने के सिवाय और मैं कुछ भी कर भी नहीं सकता था।
(कहानी काल्पनिक है)