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दिल्ली हिंसा मामला – शरजील इमाम की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित

नई दिल्ली । दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को दिल्ली हिंसा मामले में जेएनयू छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता शरजील इमाम की जमानत याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। शरजील पर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप है। 2019 में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों के बाद दिल्ली में हिंसा भड़क उठी थी और इसी मामले में शरजील इमाम पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। जमानत याचिका पर अदालत 15 नवंबर को फैसला सुना सकती है। उनके वकील तनवीर अहमद मीर ने तर्क दिया कि सरकार की आलोचना करना देशद्रोह का कारण नहीं हो सकता। मीर का विरोध करते हुए, विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने दलील दी कि विरोध का मौलिक अधिकार उस सीमा से आगे नहीं जा सकता है, जिससे जनता को बड़े पैमाने पर परेशानी हो।

मामले के अनुसार, शरजील ने 13 दिसंबर, 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया में और 16 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित भड़काऊ भाषण दिए थे। वह जनवरी 2020 से न्यायिक हिरासत में है। 22 अक्टूबर को, साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनुज अग्रवाल ने भड़काऊ भाषणों से शांति और सद्भाव पर पड़ने वाले असर का हवाला देते हुए उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया था।

हालांकि, न्यायाधीश ने यह कहते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि क्या भाषण धारा 124ए (देशद्रोह) के दायरे में आता है। उन्होंने इस पर कहा कि इसके लिए ‘गहन विश्लेषण’ की जरूरत है। दिल्ली पुलिस ने 25 जुलाई, 2020 को शरजील इमाम के खिलाफ कई जगहों पर सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान उनके कथित भड़काऊ भाषणों से जुड़े एक मामले में चार्जशीट दायर की थी।

600 पन्नों की चार्जशीट में आईपीसी की धारा 124 ए (देशद्रोह), 153 (ए) (शत्रुता को बढ़ावा देना), 153 (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक अभिकथन और विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता एवं नफरत को बढ़ावा देना), 505 (अफवाह फैलाना) लगाई गई है। इसके साथ ही चार्जशीट में दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 13 भी जोड़ी गई है।

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