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स्वर्ण मंदिर में दो घंटे पड़ा रहा DIG का शव, कैसे बनी थी ऑपरेशन ब्लू स्टार की भूमिका

नई दिल्ली : छह जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी होती है। 39 वीं बरसी के मौके पर पंजाब में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। पुलिस के अलावा अर्द्धसैनिक बलों को भी तैनात किया गया है। ऑपरेशन ब्लू स्टार भारत के इतिहास की वह घटना है जिसने पंजाब ही नहीं बल्कि पूरे देश में भूचाल ला दिया था। दरअसल 70 के दशक में पंजाप को स्वायत्त राज्य बनाने की मांग शुरू हुई थी। अकाली दल का कहना था कि केंद्र अपने जिम्मे रक्षा, विदेश, संचार और मुद्रा का अधिकार रखे और बाकी सारे अधिकार पंजाब की स्वायत्त सरकार को सौंप दे।

पंजाब में बढ़ते उग्रवाद औरर बिगड़ती कानून के व्यवस्था को संभालने के लिए सरकार को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। बता दें कि खालिस्तान आंदोलन वैसे तो 1940 और 1950 के बीच ही शुरू हुआ था लेकिन इसे प्रसिद्धि 70 के दशक में मिली। जब ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया तो भिंडरावाले दमदमी टकसाल का मुखिया था और उससे पंजाब के सिख युवा प्रभावित रहते थे।

साल 1981 में हिंदी अखबार पंजदाब केसरी समूह के संपादक लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई। इसके बाद 1983 में पंजाब के डीआईजी एएस अटवाल की स्वर्ण मंद्रि में तब गोली मारकर हत्या कर दी गई जब वह माथा टेककर बाहर जा रहे थे। बताया जाता है कि हत्या के बाद अटवाल का शव करीब दो घंटे तक वहीं पड़ा रहा। वहां भारी पुलिसबल था लेकिन किसी की हिम्मत शव के पास जाने तक की नहीं थी। पंजाब में बिगड़ती कानून व्यवस्था को देखकर ही इंदिरा गांधी सरकार ने यहां की सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगा दिया।

राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद पंजाब में अलगाववादी और ज्यादा उग्र होने लगे। उन्होंने इंदिरा गांधी की सरकार को चुनौती दे दी। वहीं जरनैल सिंह भिंडरावाले के साथ अलगाववादियों ने स्वर्ण मंदिर में शरण ले ली। उन्होंने भारी मात्रा में हथियार भी जमा कर लिए। 1 जून 1984 को स्वर्ण मंदिर से इन्हें बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया गया। यह ऑपरेशन 8 जून तक चला। इसमें करीब 83 सेना के जवानों और 492 नागरिकों की मौत हो गई थी।

इस ऑपरेशन के दौरान पंजाब में आने-जाने पर रोक लगा दी गई। यातायात रोक दिया गया। पत्रकारों को भी बस से ले जाकर हरियाणा की सीमा पर छोड़ दिया गया। गोलीबारी 4 जून को शुरू हुई थी। इस ऑपरेशन में टैंकों का भी इस्तेमाल किया गया था। इस ऑपरेशन में हुई मौतों के आंकड़ों को लेकर आज भी विवाद है। इसी घटना के बाद 31 अक्टूबर 1984 को पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के ही दो सिघ बॉडीगार्ड्स ने उनकी हत्या कर दी थी।

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