UN महासभा में भी तालिबान और कट्टरता पर बड़ा संदेश देने की तैयारी में PM मोदी, SCO में सुनाई थी खरी-खरी
संयुक्त राष्ट्र की इस सप्ताह होने वाली महासभा में पीएम नरेंद्र मोदी अफगानिस्तान में आए तालिबान के हिंसक शासन का मुद्दा उठा सकते हैं। इससे पहले 17 सितंबर को शंघाई कॉपरेशन ऑर्गनाइजेशन की मीटिंग को संबोधित करते हुए भी पीएम नरेंद्र मोदी ने कट्टरता और हिंसा को लेकर अहम संदेश दिया था। पाकिस्तान के पीएम इमरान खान की मौजूदगी में संबोधित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि जिस तरह से क्षेत्र में कट्टर ताकतें मजबूत हो रही हैं, उससे शांति, सुरक्षा और विश्वास का माहौल कमजोर हो रहा है। माना जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम में भी पीएम नरेंद्र मोदी इस मुद्दे पर बात रखने वाले हैं।
उन्होंने SCO समिट में कहा था कि इस संगठन को भारत में उदार, सहिष्णु और समावेशी विचार वाले इस्लामिक समूहों को साथ लेकर एक अच्छा नेटवर्क बनाना चाहिए। उन्होंने सभी देशों से कट्टरता से निपटने के लिए प्रयास करने की अपील की थी। पीएम नरेंद्र मोदी 25 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र की महासभा को संबोधित करने वाले हैं। इस दौरान वह राजनीतिक इस्लाम से लड़ने के उपायों और कट्टर ताकतों का मुकाबला करने के लिए जरूरी चीजों पर बात करेंगे। दरअसल इस्लाम को हथियार बनाकर ही तालिबान जैसी ताकतों ने अफगानिस्तान में कब्जा जमाया है और हिंसक शासन स्थापित किया है।
अफगानिस्तन से अमेरिकी और नाटो सेनाओं की वापसी एवं तालिबान के राज के बाद यह पहली एससीओ समिट थी, जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी ने खुलकर आतंकवाद का विरोध किया। तालिबान का राज स्थापित होने के बाद अफगानिस्तान के लोगों के भविष्य और क्षेत्रीय शांति को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। अब तक अपनी हरकतों से तालिबान ने एक बार फिर यह साबित किया है कि पहले के मुकाबले वह बहुत ज्यादा बदला नहीं है। पीएम नरेंद्र मोदी ने एससीओ समिट में एक तरफ कट्टरता को लेकर चिंता जाहिर की तो वहीं भारत में इस्लाम की समृद्धि विरासत का भी जिक्र किया था।
पीएम नरेंद्र मोदी ने इस दौरान 5 बिंदुओं पर बात की थी। पहला, उन्होंने भारत में इस्लाम के समावेशी, सहिष्णु और दयालु स्वरूप की बात कही। दूसरा, इस्लाम सदियों से इस क्षेत्र का हिस्सा रहा है। तीसरा, उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ जंग को धर्म से अलग देखने और इस्लाम को राजनीतिक इस्तेमाल से बचाने की भी बात कही। चौथा, उन्होंने भारत और पश्चिम एशिया के बीच पुराने आध्यात्मिक संबंधों का भी जिक्र किया। पांचवां, उन्होंने सभ्यताओं के संघर्ष की बात से भी इनकार किया।