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श्री गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

के.एन. गोविन्दाचार्य

आज गुरु पूर्णिमा का पर्व है। गुरुवर्य के चरणों में गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व के अवसर पर साष्टांग प्रणाम करता हूँ और आशीर्वाद का आकांक्षी हूँ। परिवार में रामानुज, वरददेशिक संप्रदाय के अंतर्गत स्वयं आचार्य परंपरा का चलन है। सदगुरु, शिक्षागुरु, विद्यागुरु के नाते अनेक विभूतियों ने मेरे जीवन पर प्रभाव डाला। मै अगर अपेक्षित मात्रा मे ग्रहण नहीं कर सका तो उसमे पूरा-पूरा मेरा दोष है।

गुरुओं मे किस-किस को गिनाऊँ, इस विषय में मै आज असमंजस मे हूँ। मैं अत्यंत सौभाग्यशाली हूँ कि अनेक वरिष्ठ लोगों का सान्निध्य मिला। लोगों ने भरपूर स्नेह और सीख दिया। मैं अभागा काफी कम पड़ा सीखने में, अपनी जड़ता के कारण। अस्तु। स्कूल मे शिक्षक प. मोहनलाल तिवारी जी ने अपने अलावा औरों के बारे में भी सोचना सिखाया। रा. स्व. संघ के प. पू. श्री गुरुजी ने स्नेहपूर्वक सीख दी कि जीवन मे सतत प्रयत्न, आत्मनिरीक्षण और भगवदप्रार्थना का चक्र चलाओ तो कुछ समय बाद स्वयं को अनुभव आयेगा कि अपने कुछ, गुण, बढे, दोष घटे।

मा. यशवंत राव केलकर ने शब्दों के अर्थ को जीने का महत्त्व बताया।  प. दीनदयाल उपाध्याय जी ने सिखाया, व्यक्ति से बड़ा दल, दल से बड़ा देश। व्यक्ति से बड़ा संगठन, संगठन से बड़ा समाज। सन् 68 मे तो वे चले ही गये।  आदरणीय दत्तोपंतजी ने सिखाया At times it is better to be right and irresponsible than wrong and responsible.

अशोक सिंघल जी ने बताया भारत में देशभक्ति और देवभक्ति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जय प्रकाश जी ने समझाया कि देशभक्ति आदर्शवाद आदि किसी एक संगठन की बपौती नही है। सबसे सीखने को मिलेगा। दिल, दिमाग खोलकर रखो।

साध्वी उमा जी ने सिखाया कुछ भगवन्नाम स्मरण भी करो, अंत मे वही साथ जायेगा, तारेगा बाकी सब यहीं रह जायेगा। मित्रवर बसवराज पाटील सेडम, राम बहादुर राय, एस. गुरुमूर्ति जी से संवेदनशीलता, नि:स्पृहता और स्वाभिमान का पाठ सीखने को मिला। लिखने को बहुत कुछ है पर अब यहीं रुकता हूँ।

गुरु पूर्णिमा पर्व के शुभ अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।

“गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥””

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