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भारत ने कार्बन उत्सर्जन को 2070 तक शुद्ध रूप से शून्य स्तर पर लाने का लक्ष्य रखा : रिपोर्ट

नई दिल्ली : देश को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से बिजली उत्पादन लक्ष्य को हासिल करने के लिये 2020 से 2029 के बीच 540 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत है। साख निर्धारण एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने यह बात कही। उसने यह भी कहा कि निजी क्षेत्र की अगुवाई में ऊर्जा बदलाव नये चरण में प्रवेश कर रहा है।

भारत ने कार्बन उत्सर्जन को 2070 तक शुद्ध रूप से शून्य स्तर पर लाने का लक्ष्य रखा है। इसे हासिल करने के लिये उसने 5,00,000 मेगावॉट हरित ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इसमें से आधी बिजली नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से आएगी। इससे कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी आएगी और उत्सर्जन गहनता जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 45 प्रतिशत पर आने का अनुमान है।

एसएंडपी ने ‘एशिया-प्रशांत के ऊर्जा परिवर्तन के विभिन्न रास्ते शीर्षक से अपनी रिपोर्ट में कहा, भारत ने 2030 तक हरित स्रोतों से पांच लाख मेगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिये हर साल 40,000 मेगावॉट से अधिक क्षमता सृजित करने की जरूरत होगी। जबकि वास्तव में क्षमता में 10,000 से 15,000 मेगावॉट का इजाफा हो रहा है। इसमें कहा गया है कि भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि कोयले को पीछे छोड़ रही है। लेकिन मांग में वृद्धि के साथ कोयले का अधिक उपयोग हो रहा और नये कोयला संयंत्र लग रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, नीतियां अनुकूल परिवेश बना रही हैं। वहीं निजी क्षेत्र के निवेश से ऊर्जा बदलाव में गति आएगी। लक्ष्य को हासिल करने के लिये 2020 से 2029 तक 540 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत है। इसमें से आधा निवेश नवीकरणीय ऊर्जा और बैटरी में तथा एक-तिहाई ग्रिड को मजबूत करने में होगा।

एसएंडपी ने कहा, उत्पादन क्षमता स्थापित करने में निजी क्षेत्र अगुवाई करेगा जबकि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां ग्रिड में निवेश के मामले में नेतृत्व कर सकती हैं। घरेलू स्तर पर परियोजनाओं और नकदी प्रवाह के एवज में दीर्घकालीन बैंक कर्ज उपलब्ध हैं। चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाद भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कार्बन डॉईऑक्साइड उत्सर्जक है।

लेकिन दुनिया के अन्य विकसित देशों की तुलना में यहां प्रति व्यक्ति उत्सर्जन काफी कम है। भारत में 2019 में सीओ2 उत्सर्जन 1.9 टन प्रति व्यक्ति था जबकि अमेरिका में 15.5 टन और रूस में 12.5 टन था। एसएंडपी ने रिपोर्ट में कहा कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों को अपने महत्वाकांक्षी ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने के लिये लंबा रास्ता तय करना है।

रेटिंग एजेंसी के साख विश्लेषक अभिषेक डांगरा ने कहा, ‘‘नीतियां अभी भी विकसित हो रही हैं और चीन तथा भारत जैसे कुछ प्रमुख देशों के पास कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिये कोई स्पष्ट समयसीमा नहीं है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि भारत ऊर्जा बदलाव यानी नवीकरणीय स्रोतों से बिजली उत्पादन के मामले में निजी क्षेत्र की अगुवाई में प्रगति कर रहा है।

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