देहरादून: उत्तराखंड अपने आजादी के अमर सपूतों के प्रति कृतज्ञ है और उनके अविस्मरणीय योगदान को मान्यता देने के लिए हर समय तैयार खड़ा रहा है। हाल ही में उत्तराखंड के सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी समेत हजारों व्यक्तियों ने चकराता के रामताल गार्डन में आयोजित वीर शहीद केसरीचंद मेले में भाग लिया। मेला उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि उन्हें पहली बार इस मेले में आने का मौका मिला है। वीर केसरीचंद देश के हीरो हैं। जौनसार बाबर के वीर शहीद केसरी चंद को 24 वर्ष 6 माह की अल्प आयु में ही अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी गई थी। देश की आजादी के लिए कुर्बान हुए जौनसार बावर के इस वीर सपूत को भुलाया नहीं जा सकता। इसलिए वर्ष 1986 से रामताल गार्डन में वीर शहीद केसरी चंद मेले का आयोजन होता आ रहा है।
3 मई को इस मेले में भाग लेते हुए केबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने अगले साल से इस मेले को दो दिवसीय मेला के रूप में मनाने की बात की, साथ ही इसका सारा खर्चा सरकार द्वारा उठाये जाने की बात कही। उन्होंने अगले साल वीर शहीद केसरीचंद मेले को राज्य मेला घोषित किये जाने की बात कही। गौरतलब है कि राज्य में 1734 वीर बलिदान हुए हैं, उनकी याद में देहरादून में सैन्यधाम बनाया जा रहा है, जिसका नाम प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत के नाम से होगा। उन्होंने कहा कि पांच साल में रामताल गार्डन की तस्वीर बदलेगी। अगले साल मेले में उद्यान, कृषि जैसे विभागों की प्रदर्शनी लगाई जाएगी
जौनसार-बावर क्षेत्र के क्यावा गांव में जन्मे बलिदानी केसरीचंद की बदौलत क्षेत्र को राष्ट्रीय फलक पर सम्मानजनक पहचान मिली है। बलिदान केसरीचंद के बलिदान दिवस पर लगे मेले में जौनसारी और गढ़वाली कलाकारों ने लोक संस्कृति की शानदार प्रस्तुति से समा बांधा।
वीर शहीद केसरीचन्द के बारे में :
अमर शहीद वीर केसरी चंद का जन्म 1 नवंबर, 1920 को जौनसार के क्यावा गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर में हुई थी। इसके बाद उन्होंने डीएवी कॉलेज में अपनी पढ़ाई जारी रखी।
10 अप्रैल 1941 में रॉयल आर्मी सर्विस कॉर्प्स में भर्ती हो गए। उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध के पूरे जोरों पर था। 29 अक्टूबर 1941 पर केसरी चंद, मलाया की लड़ाई के मोर्चे पर तैनात किया गया है। इस दौरान केसरी चंद को जापानी सेना ने बंदी बना लिया था।
वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे ” तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा ‘ से प्रेरित होकर केसरी चंद आजाद हिंद सेना में भी शामिल हुए। उनके अदम्य साहस के कारण उन्हें जोखिम भरा कार्य सौंपा गया। इसके बाद अंग्रेजों के पुलिस को उड़ाने के प्रयास में केसरी चंद को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और दिल्ली में जिला जेल भेज दिया।
24 साल की उम्र में देश पर न्यौछावर किया जीवन
ब्रिटिश राज्य के खिलाफ साजिश का अपराध में केसरी चंद को मौत की सजा की सजा सुनाई। तीन मई 1945 को महज 24 साल की उम्र में उत्तराखंड के इस वीर सेनानी को फांसी दे दी गई। आज इनकी शहादत को भले ही राज्य सरकार भूल गई है, लेकिन जौनसार के लोग इन्हें कभी नहीं भूल सकते।
शहीद केसरी चंद के सम्मान में चकराता स्थित रामताल गार्डन में हर साल तीन मई को ‘वीर केसरी चंद मेला’ आयोजित किया जाता है। इनके सम्मान में कई गीत भी रचे गए हैं।
इंफाल के मोर्चे पर एक पुल उड़ाने के प्रयास में ब्रिटिश फौज ने इन्हें पकड़ लिया। उन्हेंं बंदी बनाकर दिल्ली के जिला जेल भेज दिया गया। वहां पर ब्रिटिश राज्य और सम्राट के विरुद्ध षड़यंत्र के अपराध में मृत्युदंड की सजा दी गई। मात्र 24 वर्ष 6 माह की अल्पायु में अमर बलिदानी 3 मई 1945 को आतताई ब्रिटिश सरकार के आगे घुटने ना टेककर हंसते-हंसते भारत माता की जय और जय हिंद का उद्घोष करते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए।