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बड़े पर्दे पर राम को लाने में भी हुआ लंबा संघर्ष, क्यों खास है सिनेमा का इतिहास ?

देहरादून(गौरव ममगाईं)। प्रभु श्रीराम हर जन के मन में वास करते हैं तो फिर भला सिनेमा जगत भी इससे अछूता कैसा रहता… भारतीय सिनेमा भी भगवान राम को घर-घर तक पहुंचाने का निरंतर प्रयास करता आया है। आज भले ही सबके जहन में रामानंद सागर की ‘रामायण’ बसी हो, मगर ऐसी अनेक फिल्में हैं जिन्होंने भारत में सिनेमा की शुरुआत के समय भगवान राम को बड़े पर्दे पर जीवंत किया था। आज उन फिल्मों को अक्सर कोई याद नहीं करता, मगर सिनेमा में भगवान राम से जुड़ी फिल्मों का इतिहास बेहद रोचक रहा है। चलिए ऐसे ही कई प्रमुख फिल्मों के बारे में हम आपको बताते हैं..

  • 1916-17 के दौर में भारत में सिनेमा की शुरुआत होने लगी थी। शुरुआती समय मूक फिल्में शुरू हुई। 1917 में फिल्मकार दादा साहब फाल्के ने मूक फिल्म ‘लंका-दहन’ बनाई। इस फिल्म में पहली बार देश के लोगों ने बड़े पर्दे पर भगवान राम को देखा। खास बात ये भी थी कि तब संसाधनों की कमी के चलते एक ही कलाकार ने राम व सीता का किरदार निभाया था।
  • 1918 में आई थी- ‘राम वनवास’। यह पहली धारावाहिक फिल्म थी। दरअसल, मूक फिल्में बेहद लंबी होने के कारण धारावाहिक फिल्मों की शुरुआत भी होने लगी थी। इसी दौर में कथाचित्रों का भी निर्माण शुरु होने लगा।
  • कुछ वर्ष भगवान राम की फिल्में नजर नहीं आई, लेकिन 1933 में फिल्म निर्माताओं को भगवान राम ने ऐसा आकर्षित किया कि इस वर्ष तीन बड़ी फिल्में बनी। ‘लंका-दहन’, ‘रामायण’ और ‘सीता स्वयंवर’।
  • 1934 में देवकी बोस द्वारा निर्देशित फिल्म सीता को अभी भी सर्वश्रेष्ठ फिल्म माना जाता है। इस फिल्म में भगवान राम व सीता का अभिनय व प्रस्तुतीकरण लोगों को खूब पसंद आया। इस समय भारतीय सिनेमा धीरे-धीरे टेक्नोलॉजी से भी जुड़ने लगा था।
  • फिर आया 80 का दशक, जब टीवी पर धारावाहिक ‘रामायाण’ आया। फिल्मकार रामानंद सागर द्वारा निर्देशित इस धारावाहिक का टीवी पर प्रसारण 25 जनवरी  1987 को हुआ। यह अब तक के भगवान राम पर आधारित सभी फिल्म व धारावाहिकों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस धारावाहिक में राम ही नहीं, बल्कि सीता, लक्ष्मण व शत्रुघ्न, हनुमान के अलावा भी सभी पात्रों का अभिनय बेहद पसंद किया जाता है।
  • राम व सीता का अभिनय करने वाले कलाकार अरुण गोविल व दीपिका चिखलिया इतने प्रसिध्द हुए कि उन्हें कई बड़े ऑफर आने लगे थे। यहां तक कि उनके अभिनय से दर्शक इतने प्रभावित हुए कि उनमें राम व सीता मां का अक्ष देखने लगे थे।
  • 1990 के दशक से कई अनेक फिल्में व धारावाहिक भी निरंतरर आते रहे। वर्ष 2000 के बाद से कई एनिमेशन फिल्मों की भी शुरुआत हुई।

आज नई टेक्नोलॉजी के दौर में फिल्म निर्माण बेहद आसान हो गया है, मगर 1920 के दशक में भारतीय सिनेमा ने संसाधनों के अभाव में भी भगवान राम को बड़े पर्दे पर लाने के लिए बड़ा संघर्ष किया। अनेक फिल्में आज चर्चाओं में कम ही आती हैं, मगर उस दौर में इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।

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