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यूक्रेन में फंसे छात्रों से सोनू सूद की अपील, जहां हैं वहीं रहें, जल्द पहुंचेगी मदद

चंडीगढ़: कोरोना काल (Corona period) में परोपकारी चेहरा (philanthropic face) बनकर उभरे मोगा निवासी एक्टर सोनू सूद (Actor Sonu Sood) की संस्था सूद चैरिटेबल ट्रस्ट (Sood Charitable Trust) ने यूक्रेन की भारतीय एंबेसी (Indian Embassy of Ukraine) से संपर्क कायम करके भारतीय छात्रों की मदद की पहल शुरू कर दी है. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन में फंसे पंजाब सहित सभी भारतीय छात्रों से सोनू सूद ने अपील की है कि वे युद्ध स्थल के आस-पास जहां हैं, वहीं रहें, ताकि उन्हें सुरक्षित निकाला जा सके. सोनू सूद का कहना है कि यदि छात्र एक ही जगह रहते हैं, तो भारतीय एंबेसी को उनसे संपर्क करने में आसानी होगी. सोनू सूद ने छात्रों को संदेश दिया है कि भारतीय एबेंसी छात्रों का डाटा लेकर उन तक पहुंचने की कोशिश कर रही है.

बता दें कि एक्टर सोनू सूद एक बार फिर मसीहा बनकर यूक्रेन में फंसे छात्रों की मदद कर रहे हैं. यूक्रेन से लौटे कई छात्रों ने बताया कि कैसे युद्ध के हालात के बीच सोनू और उनकी टीम ने छात्रों की मदद की. सोनू सूद ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा, ‘यूक्रेन में हमारे स्टूडेंट्स के लिए काफी मुश्किल समय और शायद अब तक का मेरा सबसे मुश्किल असाइनमेंट है.’

उधर पंजाब के छात्रों की हालत पर जारी एक मीडिया रिपोर्ट (media report) में बताया गया है कि पंजाब के तलवाड़ा की अनिका अपने साथियों के साथ 7 दिन से यूक्रेन के खार्किव मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल के बंकर में फंसी थी. जब वह अपने साथियों के साथ 14 किमी. पैदल चलकर खार्किव रेलवे स्टेशन पहुंची तो यूक्रेनी अधिकारियों ने उन्हें धक्के मार कर वहां से भगा दिया. कड़ाके की ठंड में उनकी हालात और भी खराब हो गई. फिर उन्हें दोबारा 30 किमी. दूर जाकर एक बंकर में शरण लेनी पड़ी.

सामने आई गर्भवती महिला की दर्द भरी कहानी
यूक्रेन में फंसे पंजाब के छात्रों के परिजनों ने भारतीय एंबेसी पर गंभीर आरोप भी लगाए हैं. पंजाब के ही गांव खेड़ा कलमोट के रमन‌ वर्मा अपनी पत्नी पूजा वर्मा के साथ पढ़ाई के सिलसिले में यूक्रेन गए थे. रमन वर्मा के पिता राम कुमार वर्मा ने एक मीडिया रिपोर्ट में कहा कि उनकी बहू तीन महीने की गर्भवती है, दोनों पति-पत्नी कई सौ किलोमीटर पैदल चल कर जब पोलैंड के बॉर्डर पर पहुंचे, तो वहां न तो दवा का प्रबंध था और न ही खाने की कोई व्यवस्था. भारतीय एंबेसी ने भी उनकी कोई सुध नहीं ली.

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