दस्तक-विशेष

कहानी-जंगल का लोकतंत्र

लेखक-जंग हिन्दुस्तानी

जंगल में संविधान बनने की खबर बिल्कुल आग की तरह फैल गई। सभी जंगल के जीव पशु पक्षी सुख और संतोष महसूस कर रहे थे।उन्हें लग रहा था कि अब उनके साथ ना तो भेदभाव होगा और ना ही अन्याय। एक बार पुनःकौए के द्वारा दी गई सूचना पर जंगल के सारे जीव इकट्ठा हुए थे। लकड़बग्घे ने सभी लोगों को आने का धन्यवाद देते हुए कहा आज की मीटिंग इस बात को लेकर के है कि कि संविधान लागू होने के बाद जंगल में राजतंत्र खत्म हो गया है तो हमें अपना प्रधान चुन लेना चाहिए। जो भी प्रधान होगा वह जंगल के सभी जीवो की इंसानों से रक्षा करेगा।

भालू ने कहा- “हां यह ठीक है। कोई न कोई तो ऐसा होना चाहिए जो हम लोगों के आपसी मतभेद को बैठ करके निपटा सके। हमें चुनाव कर लेना चाहिए।


सियार ने कहा – हमारा प्रतिनिधि दमदार होना चाहिए।जो भी चुनाव लड़ना चाहता है वह भालू के सामने अपना नाम लिखवा दे। बाघ ने कहा -“वैसे तो हमारी कोई इच्छा नहीं है कि हम चुनाव लड़ें लेकिन अगर आप लोगों की इच्छा होगी तो हम जरूर चुनाव लड़ना चाहेंगे।
लकड़बग्घे ने फिर बाघ की बात का समर्थन करते हुए कहा कि हमारा प्रत्याशी बाघ रहेगा ।
बाकी आप लोगों को जिसे प्रत्याशी चुनना हो वह चुन सकता है।
उपस्थित जानवरों ने एकमत से कहा ” हम कुछ दिन सोच कर के फिर बताएंगे कि किसे हमें अपना प्रत्याशी बनाना होगा। हम अलग से बैठक करेंगे।
इस बैठक में लकड़बग्घे ने बाघ का समर्थन करके जंगल के सभी जानवरों को दो गुट में बांट दिया था।
लकड़बग्घे ने कहा ” हमने जिस प्रत्याशी का चयन किया था उसका मुकाबला करने वाला कोई नहीं है। आप लोगों को भी चुनाव के बजाय चयन के ऊपर ध्यान देना चाहिए। व्यर्थ के चुनाव से केवल समय नष्ट होगा।
भालू ने लकड़बग्घे को डांटते हुए कहा ” आप अपनी बात कह चुके हैं तो अब चुप रहिए । जब बाघ को ही हमें अपना शासक बनाना था तो फिर संविधान और लोकतंत्र कैसा ?
फिलहाल चुनाव के ऐलान के साथ मीटिंग स्थगित हो गई ।
सभी जानवर जंगल में चुनाव की चर्चा करने के साथ-साथ अपने प्रत्याशी खड़े करने के जुगाड़ में लग गए ।
लकड़बग्घे ने अपने पार्टी का नाम जबर पार्टी रखा तो दूसरे दल के लोगों ने अपनी पार्टी का नाम सबर पार्टी रखा। सबर पार्टी में जानवरों की संख्या बहुत थी लेकिन इस बात की चिंता थी कि बाघ के सामने किसको उतारा जाए जो बाघ को मात दे सके? इस दल का नेतृत्व सियार कर रहा था। सियार हर हालत में बाघ को मात देना चाहता था लेकिन उसकी स्वयं की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बाघ के सामने खुद को प्रस्तुत कर सके।
आज बरगद पेड़ के नीचे सबर पार्टी के लोगों की बैठक थी। बैठक की अध्यक्षता सियार कर रहा था उसने हाथी से पूछा कि क्या आप बाघ के सामने चुनाव लड़ना चाहेंगे?


हाथी ने कहा ” बाघ से हमारी वैसे तो पुरानी दुश्मनी है । चुनाव लड़कर अब हम और दुश्मनी नहीं बढ़ाना चाहते हैं। बाकी हम आपके साथ हैं लेकिन चुनाव में प्रतिनिधि बनने के लिए क्षमा चाहते हैं।
हाथी के जवाब देते ही पूरे गदर पार्टी में सन्नाटा छा गया । सब एक-दूसरे का मुंह देखते रहे।
बंदर ने कहा “अगर आप लोग हमें अपना प्रत्याशी बनाए तो हम बाघ के खिलाफ चुनाव लड़ सकते हैं। मैं एक बार सोते हुए बाघ का कान खींच चुका हूं।”
लोमड़ी ने कहा कि यह लो, लोग क्या कहेंगे कि हमारे पास कोई प्रत्याशी नहीं मिला जो हमने बंदर को अपना प्रत्याशी बना दिया।
काफी देर तक विचार-विमर्श चलने के बाद में अंत में गिद्ध ने कहा कि बाघ का मुकाबला सिर्फ तेंदुआ कर सकता है। अगर आप लोग हमारे बात माने तो तेंदुआ को ही अपना प्रत्याशी बना लें। काफी हो हल्ला तो हुआ लेकिन अंत में तेन्दुआ के नाम पर सर्वसम्मति से समर्थन हो गया।
जबर पार्टी की ओर से बाघ और सबर पार्टी की ओर से तेंदुआ चुनाव के मैदान में थे। लकड़बग्घा और जंगली कुत्ते बाघ का प्रचार कर रहे थे। बंदर, हिरण ,सियार , लोमड़ी , हाथी और गेंडे तेंदुए का प्रचार कर रहे थे। कौवा,गिद्ध, मगरमच्छ और बगुले दोनों पार्टियों में आनंद ले रहे थे। पुराने आदतों और विचारों में परिवर्तन लाने का नाटक करते हुए बाघ और तेंदुआ दोनों स्वयं को जनसेवक सिद्ध करने में लगे हुए थे और धड़ाधड़ वादे किए जा रहे थे। दोनों ने स्वयं को शाकाहारी घोषित कर दिया था। बाघ ने हिरण के साथ अपने बच्चे की शादी का प्रस्ताव भी भिजवा दिया था तो तेंदुआ जंगली कुत्तिया पर डोरे डाल रहा था। एक साथ एक ही घाट पर सारे लोग पानी पी रहे थे। ऐसा लगता था कि जंगल में कभी कोई दुश्मनी का भाव रहा ही ना हो।


आखिर चुनाव का दिन भी आ गया। भालू ने चुनाव आयोग की भूमिका में बेहतरीन कार्य किया और जंगल के सभी जानवरों ने बढ़-चढ़कर के मतदान करने का पुनीत कार्य किया।
2 दिन बाद जब मतगणना हुई तो तेंदुआ ने बाघ को हजारों वोट से हरा दिया था। चारों तरफ से तेंदुआ की जय जय कार हो रही थी। जंगल भर में जगह-जगह स्वागत सजाएं हो रही थी।
बाघ और लकड़बग्घा अपने गुफा में बैठकर चिंतन कर रहे थे और हार के कारणों की समीक्षा कर रहे थे।
हारे हुए बाघ ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा- आप सभी चिंता ना करें, तेंदुआ चाहे जितना बड़ा हो जाएगा, कभी बाघ नहीं बन पाएगा, बाघ बाघ ही रहेगा।
इधर सबर पार्टी का मुखिया सियार तेंदुआ को जगह जगह ले जाकर जनसभा करा रहा था तेंदुआ ने कहा- “आप लोगों ने हमें चुनाव जिताया । इसके लिए आप लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद।” “अब आप लोग देखेंगे कि हम जंगल का कितना विकास करते हैं।”
समय बीतने लगा। लालची लकड़बग्घा बाघ के साथ कितना दिन रहता। उसने पार्टी बदल कर के तेंदुए का साथ कर लिया। इधर तेंदुआ कुर्सी पाने के बाद पहले से ज्यादा आक्रामक हो गया था और अब कानून का शासन बता कर के छोटी सी गलती का बहाना बना बना कर जानवरों का शिकार कर रहा था। सियार ने तेंदुए को जानवरों के साथ किया गया वादा याद दिलाया तो तेंदुए ने सियार के ऊपर हमला करके उसे मरवा दिया और जंगल में यह बात फैला दी कि हमारे पार्टी के मुखिया की हत्या किसी विदेशी ताकत ने कर लिया है।
सियार के मरने की खबर सुनकर सभी जानवर एकजुट होकर तेंदुए के पास गए तो तेंदुए ने रोते हुए कहा कि जंगल के जीवों पर और जंगल पर विदेशी शक्तियों की नजर है। हमें दुख की इस घड़ी में बिना कोई शिकायत किए अपने जंगल को बचाने के लिए एकजुट रहना चाहिए।”


तेंदुए इसी बात का समर्थन करते हुए गिद्ध ने कहा ” हमारे पार्टी के मुखिया सियार साहब को विदेशी आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया और हम सब के ऊपर भी खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में हमें एकजुट रहना चाहिए।
कुछ दिन बाद एक बार पुनः लकड़बग्घा फिर से पार्टी बदलते हुए बाघ के पास पहुंच गया और सियार के मौत की पोल खोल दी। बाघ ने तेंदुए के खिलाफ सियार को मारने के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया तो जंगल के जानवर एक बार फिर से बाघ के साथ खड़े हो गए।
एक दिन कौए की मुलाकात गिद्ध से हुई तो कौए ने गिद्ध से पूछा- “भाई अब आप पहले से ज्यादा स्वस्थ हैं इसका कारण क्या है?
गिद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा कि तुम तो जानते ही हो कि जंगल में जब से लोकतंत्र आया है तो कभी बाघ का शासन होता है तो कभी तेन्दुआ का। शासन बाघ का हो या तेन्दुआ का। हमारा भोजन पहले से अब अधिक सुनिश्चित है।
संविधान आज भी जंगल में मौजूद है लेकिन उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है।
(कहानी काल्पनिक है)

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