ज्ञानेंद्र शर्माफीचर्डस्तम्भ

इसीलिए तो नहीं रुक रहे बलात्कार

ज्ञानेन्द्र शर्मा

प्रसंगवश

स्तम्भ : हाथरस काण्ड की जॉच करने वाली केन्द्रीय जॉच ब्यूरो की टीम ने कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं और साथ ही एक बार फिर इस बात का पर्याप्त संकेत कर दिया है कि आखिर बलात्कार रुक क्यों नहीं रहे हैं। सीबीआई ने बताया है कि उत्तर प्रदेश की पुलिस बलात्कार जैसे मामलों में कितनी संजीदा है।

जॉच रिपोर्ट बताती है कि जब पीड़िता का 19 सितम्बर को पुलिस ने बयान दर्ज किया तो उसने तीन आतताइयों के नाम बताए लेकिन पुलिस ने अपने विवरण में केवल एक का नाम लिया। यही नहीं, पीड़िता ने साफ-साफ कहा था कि उसके साथ बलात्कार किया गया तो भी उसकी मेडिकल जॉच नहीं कराई गई।

जॉच उस समय कराई गई जब बहुत देर हो चुकी थी और प्रत्यक्ष साक्ष्य गायब हो गए थे। जॉच ब्यूरो की चार्ज शीट में बताया गया है कि पीड़िता ने अपने मृत्य-पूर्व बयान में साफ-साफ कहा था कि उसके साथ चार लोगों ने बलात्कार किया। उसने इन चारों के नाम भी बताए। पर पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया।

कमजोर जॉच पड़ताल का यह नतीजा है कि 90 प्रतिशत मामलों में बलात्कार के आरोपी बरी हो जाते हैं। बलात्कार के मामलों में सजा का प्रतिशत मात्र 28 है। यानी 100 घटनाओं में से केवल 28 में सजा हो पाती है। बलात्कार के जो मुकदमे अदालतों में लम्बित हैं, उनका प्रतिशत 89.5 प्रतिशत है।

कम उम्र लड़कियों के साथ बलात्कार करने के बाद ज्यादातर उनकी हत्या कर दी जाती है- शायद इसलिए कि कोई सबूत न रहे, अत्याचार की शिकार लड़की अपनी कहानी बताने को जिन्दा ही न रहे। बलात्कार जैसी घटनाओं का वैसे भी कोई चश्मदीद गवाह नहीं होता। अपनी कहानी बताने के लिए उसे भी जिंदा नहीं रहने दिया जाता।

ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने और अत्याचारियों के दिलोदिमाग में भय पैदा करने के लिए कड़े कानून बने हैं पर फिर भी अगर डर है तो लड़कियों को, जो अकेले घर से बाहर नहीं निकल सकतीं, स्वच्छन्द जीवन नहीं जी सकतीं। 22 मई 2018 को संसद के दोनों सदनों ने बच्चियों की रक्षा करने के लिए एक कानून पर मुहर लगाई, जिसका नाम था- प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेन्स्ट सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट।

इसमें पहली बार यह सख्त प्रावधान किया गया कि 12 साल से कम की लड़कियों से बलात्कार करने वालों को मौत की सजा दी जाएगी। अभी तक मौत की सजा दोबारा ऐसी हरकत करने वालों को दी जाती थी। यह कानून देश की 39 प्रतिशत आबादी/43 करोड़ बच्चों को बचाने के लिए बनाया गया। यह भी प्रावधान किया गया कि बलात्कार की ऐसी घटनाओं की दो माह में सुनवाई पूरी हो। इसके बावजूद ज्यादा फर्क पड़ा नहीं। कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब देश/ प्रदेश के किसी कोने में बलात्कार और उसके बाद हत्या की ऐसी कई कई घटनाएं न हों। यह हालत तब है जबकि कई मामलों की शिकायतें लोकलाज की वजह से दर्ज नहीं कराई जातीं।

देश में हर रोज 88 बलात्कार होते हैं। हर घंटे 2 घटनाएं होती हैं और 10 लड़कियों में से 4 अल्पायु की होती हैं। उत्तर प्रदेश में हर दिन बलात्कार की 11 घटनाएं होती हैं। 2016 से 2019 के बीच इन घटनाओं में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने जारी किए हैं। पिछले कुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुछ दिनों में हुुई घटनाएं चौंकाने वाली हैं।

अपराधियों में भय व्याप्त न होने की एक प्रमुख वजह बलात्कार के मामलों को निपटाने में होती देर है। 2018 में कुल 1,27,858 मामलों की सुनवाई हुई लेकिन सजा हो पाई केवल 4042 मामलों में। जो मामले लम्बित होते हैं उनका प्रतिशत 89.5 प्रतिशत से ज्यादा था और जिनमें सजा हुई, उनका प्रतिशत मात्र 28 था।

इस कहानी के पीछे एक नहीं, कई सशक्त कारण हैं। जैसेः

  1. गवाह पलट जाते हैं/ वैसे भी बलात्कार के मामलों के गवाह नहीं मिलते।
  2. भुक्तभोगी सुनवाई की अवधि के दौरान कई तरह से उत्पीड़ित की जाती हैं।
  3. भुक्तभोगी से समझौता करने के लिए कई तरह से दवाब बनाए जाते हैं जो उत्पीड़न का कारण बनते हैं।
  4. समाज में बदनामी के चलते वे हताश और शर्म के बीच घिरी रहती हैं। बहुत से मामलों में बलात्कार की शिकार आत्महत्या करने को मजबूर होती हैं।
  5. सामाजिक संगठन मदद को आगे नहीं आते।
  6. सुनवाई लम्बी चलते रहने से पीड़ित परिवार धनाभाव से घिर जाते हैं।
  7. अदालतों में जिरह के दौरान बहुत जिल्लतों का सामना करना पड़ता है। बचाव पक्ष के वकील मानवीय दृष्टिकोण नहीं अपनाते।
  8. पुलिस आम तौर पर सहायक नहीं होती और अभियुक्त से सहानुभूति रखने लगती है।
  9. पुलिस बलात्कार और छेड़खानी आदि जैसे उत्पीड़नों की आसानी से रिपार्ट दर्ज नहीं करती।
  10. जब तक बड़े अधिकारी हस्तक्षेप नहीं करते, पीड़ितों की सुनवाई नहीं होती और आला अफसरों तक पहुॅच आसान नहीं होती।

इस त्रासदी के पीछे कम से कम तीन कारण मॅुह बाए खड़े रहते हैं।

  1. फिल्मों में अपराध बहुत बढ़ा चढ़ाकर पेश किए जाते हैं और हिंसा को महिमामंडन किया जाना आम बात होती है।
  2. सोशल मीडिया पूरी तरह निरंकुश होने के कारण बलात्कार के बाद उसका वीडियो बनाने व वायरल करने की धमकियॉ आम बात हो चली है।
  3. पोर्नो साइट्स पूरा सत्यानाश किए रहती हैं और सरकार के लाख ऐलानों के बाद भी इन पर काबू नहीं हो पा रहा है जो हिंसक घटनाओं को उकसावा देता है।
  4. अच्छा घर न मिलने के कारण लड़कियों की जल्दी और आसानी से शादी नहीं हो पाती।
  5. छेड़खानी और तंग करने की घटनाओं पर पुलिस और प्रशासन का समुचित ध्यान न देना अपराध और अपराधियों को शाह देने में अहम भूमिका निभाता है।
  6. राजनीतिक नेतृत्व पीड़ितों और उत्पीड़ितों की मदद सहज भाव से नहीं करता

परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हाल के कुछ मामलों में उत्पीड़कों और अपराधियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी रासुका के तहत कार्रवाई के आदेश दिए जाने के बाद हालात सुधर सकते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं हैं। रासुका की कार्रवाइयों का ज्यादा से ज्यादा प्रचार करना सरकारी मशीनरी की जिम्मेदारी होनी चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सूचना आयुक्त हैं।)

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