एक राज्य, एक नागरिकता : यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड

उत्तराखंड ने आखिरकार समान नागरिक संहिता को अपनाकर संविधान के अनुच्छेद 44 के सपने को साकार कर दिया। यह वह अनुच्छेद है जो भारतीय नागरिकों के लिए पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की वकालत करता है। केन्द्र सरकार पूरे देश में इसे लागू करने के लिए दृढ़ संकल्प है। जल्द ही पूरा देश इस दिशा में कदम बढ़ाएगा। पढ़िए ‘दस्तक टाइम्स’ के प्रधान संपादक राम कुमार सिंह की यह रिपोर्ट।
संविधान में समान नागरिक संहिता को शामिल करने का मूल मकसद यह था कि देश के नागरिकों को मिलने वाले अधिकारों में भेदभाव न हो। आजाद भारत में देश की राजनीति की दिशा जिस तरफ मुड़ी उसके कारण आज भी देश के नागरिकों को यह अधिकार नहीं मिल पाए हैं। अब आजादी के 75 वर्ष बाद अमृतकाल में उत्तराखंड राज्य में समान नागरिक संहिता कानून लागू होना साहसिक और दूरगामी कदम है। देश के एकमात्र राज्य गोवा में आजादी के पहले ही समान नागरिक संहिता चली आ रही है। आजादी के बाद उत्तराखंड पहला राज्य हो गया है जो भविष्य में दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण बनेगा और एक समय देश के सभी नागरिकों को एक समान अधिकार की राह प्रशस्त करेगा। संविधान में धर्म, जाति, रंग, भाषा या अन्य किसी वर्ग के आधार पर नागरिकों के अधिकारों में कोई भेदभाव नहीं है। संविधान की इस मूल भावना का लाभ देश के हर नागरिक को मिले इसके लिए समान नागरिक संहिता अनिवार्य है।
किसी पंथ-धर्म के खिलाफ नहीं है यूसीसी : धामी
भारत के इतिहास में 26 जनवरी एक ऐतिहासिक तारीख है। यह वह दिन था जब इस देश का संविधान लागू हुआ था। देश के इतिहास में 27 जनवरी एक दूसरी यादगार तारीख हो गई जब एक छोटे से राज्य उत्तराखंड ने अपनी इच्छाशिक्त के बल पर सबसे पहले समान नागरिक संहिता लागू करके अन्य राज्यों को एक दिशा दिखा दी। 27 जनवरी 2025 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता लागू करने की घोषणा करते हुए कहा कि यह किसी धर्म या पंथ के खिलाफ नहीं है। यह समाज की कुप्रथाओं को हटाकर सभी को समानता का अधिकार देती है। इसमें किसी भी मान्यता व प्रथा को नहीं बदला गया है। इसमें आनंद कारज, निकाह, सात फेरे या चर्च में शादी करने की किसी प्रथा को नहीं बदला गया है। केवल विभिन्न धर्मों में व्याप्त कुप्रथाओं को बदला गया है। इससे हलाला, इद्दत, तीन तलाक व बहुविवाह जैसी प्रथाएं समाप्त हो जाएंगी। मुख्यमंत्री ने इसी दिन यानी 27 जनवरी को अब हर वर्ष समान नागरिक संहिता दिवस के रूप में मनाने का एलान किया।
निजता में दखल नहीं बल्कि सुरक्षा
समान नागरिक संहिता की नियमावली व पोर्टल लांचिंग कार्यक्रम में मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि कई बार उनसे यह कहा गया कि सरकार लिव इन को समान नागरिक संहिता के दायरे में लाकर किसी के बेडरूम में झांकने का प्रयास कर रही है, पर यह ऐसा नहीं है। यह सभी युवाओं को सुरक्षा प्रदान करता है। युवा आपस में काफी अच्छा समय व्यतीत करते हैं। एक साथ रहने के दौरान कई बार उनके संबंध खराब हो जाते हैं। कई बार हत्याएं हुई हैं। दिल्ली की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि दिल्ली में वर्ष 2022 में श्रद्धा वालकर व आफताब एक साथ रहते थे। वहां 300 लीटर के फ्रीज में श्रद्धा वालकर को काट कर डाल दिया गया था। श्रद्धा वालकर जैसी किसी भी बहन या बेटी के साथ कोई आफताब ऐसी हैवानियत न कर सके, इसलिए ये प्रावधान किए गए हैं। उन्होंने कहा कि लिव इन पंजीकरण की सूचना रजिस्ट्रार केवल माता-पिता को देगा। लिव इन में कौन रह रहा है, यह सूचना गुप्त रखी जाएगी।

प्रथाओं के साथ छेड़छाड़ नहीं
सरकार ने परंपराओं और प्रथाओं के साथ छेड़छाड़ न करने का अपना वादा निभाया। उत्तराखंड की जौनसारी जनजाति में महिलाओं के एक से ज्यादा पुरुषों के साथ शादी करने की परंपरा है। इसी तरह भोटिया में पुरुषों के बहुविवाह की परंपरा है। सवाल उठा था कि यूसीसी लागू होने के बाद इन जनजातियों में शादी की परंपरागत व्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा? उत्तराखंड की जनजातियों में जौनसारी, थारू, राजी, बोक्सा और भोटिया जनजाति प्रमुख समूह हैं। उत्तराखंड के देहरादून जिले में लाखामंडल गांव की जौनसारी जनजाति के लोग आज भी अपनी धार्मिक परंपरा के चलते पॉलीऐन्ड्री विवाह करते हैं। आसान भाषा में समझें तो यहां महिलाओं के एक से ज्यादा पुरुषों के साथ शादी करने की परंपरा है। भोटिया जनजाति में महिलाओं को तो बहुविवाह की छूट नहीं है, लेकिन पुरुषों को एक से ज्यादा शादियां करने की अनुमति है। चूंकि समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी के दायरे से उत्तराखंड की जौनसारी, थारू, राजी, बोक्सा और भोटिया जनजातियों को बाहर रखा गया है। साफ है कि वे अपनी बहुविवाह की परंपराओं को पहले की तरह जारी रख सकते हैं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में मुस्लिमों में सबसे ज्यादा बहुविवाह होता है।
आईआईपीएस की स्टडी में बताया गया था कि भारत में होने वाले कुल बहुविवाह में मुसलमानों की संख्या 1.9 फीसदी है। इसके बाद अन्य धार्मिक समुदाय आते हैं, जिनकी संख्या 1.6 फीसदी है। वहीं, 1.3 फीसदी के साथ हिन्दू तीसरे नंबर पर आते हैं। जनसंख्या के नजरिये से थारू जनजाति उत्तराखंड का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है। बोक्सा और राजी जनजाति आर्थिक, शैक्षिक व सामाजिक रूप से अन्य जनजातियों के मुकाबले काफी गरीब और पिछड़ी हैं। लिहाजा, इन दोनों जनजातियों को आदिम जनजाति समूह की श्रेणी में रखा गया है। साल 1967 में उन्हें अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था। उत्तराखंड की कुल जनजातीय आबादी में थारू जनजाति की आबादी 33.4 फीसदी है। इसके बाद जौनसारी जनजाति 32.5 फीसदी आबादी के साथ दूसरा सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है। वहीं, बोक्सा जनजाति इसमें 18.3 फीसदी आबादी का योगदान करती है। उत्तराखंड के जनजातीय समुदाय में भोटिया 14.2 फीसदी आबादी के साथ सबसे छोटी जनजाति है। इन सभी जनजातियों को भारत के संविधान में अनुसूचित किया गया है। उत्तराखंड की जनजातियों ने अपनी पारंपरिक जीवनशैली को बरकरार रखा है। इन जनजातियों में हस्त शिल्प का विकास हुआ है। इनका पारंपरिक कौशल पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहा है।
विवाह का रजिस्ट्रेशन होगा अनिवार्य
विवाह धार्मिक रीति-रिवाज या क़ानूनी प्रावधान के अनुसार हो सकता है। साथ ही इस क़ानून के लागू होने के बाद 60 दिनों के अंदर शादी को रजिस्टर कराना अनिवार्य होगा। ऐसे केन्द्र बनाए गए हैं, जहां पर लोग अपने विवाह को ऑनलाइन रजिस्टर करने के लिए मदद ले सकते हैं ताकि सरकारी दफ्तरों की भागदौड़ न हो। 26 मार्च 2010 से पहले जो भी विवाह राज्य में या राज्य से बाहर हुआ है उसमें दोनों पक्ष साथ रहे हैं और क़ानूनी पात्रता रखते हैं, वो क़ानून लागू होने के छह महीनों के अंदर विवाह का रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।
अब ऑनलाइन संबंध खत्म कर सकता है लिव इन जोड़ा
नए नियम में लिव इन जोड़े को साथ रहने के करार को तोड़ने की आजादी होगी। उनमें से कोई एक या दोनों मिलकर ऑनलाइन या ऑफलाइन लिव इन रिलेशनशिप समाप्त कर सकते हैं। यदि एक साथी आवेदन करता है तो रजिस्ट्रार दूसरे साथी की पुष्टि कर इसे स्वीकार करेगा। नई नियमावली लागू होने से उन युवा जोड़ों का भी आशियाना बन सकेगाा, जिन्हें बिन फेरे एक साथ रहने के लिए किराये पर घर नहीं मिलता। नए नियमों में ऐसे जोड़ों के लिए ऑनलाइन प्रोविजिनल सर्टिफिकेट जारी करने का प्रावधान किया गया है। इसके तहत अगर कोई जोड़ा लिव इन में रहना चाहता है, लेकिन उनके पास घर नहीं है तो वह यूसीसी पोर्टल पर पंजीकरण कर प्रोविजिनल सर्टिफिकेट ले सकते हैं। यह सर्टिफिकेट 30 दिन वैध रहेगा, जिसे 15 दिन और बढ़ाया जा सकता है। इतने समय में प्रोविजिनल सर्टिफिकेट दिखाकर किराये का घर लिया जा सकता है। मकान मालिक उनकी शादी नहीं होने की बात कहकर लिव इन रिलेशन को मानने से इन्कार नहीं कर सकते।यूसीसी नियमावली समिति के अध्यक्ष शत्रुघ्न सिंह बताते हैं कि यदि उनके पास साझा आवास है तो उनका पंजीकरण संक्षिप्त जांच के बाद सीधे हो जाएगा। यदि आवास नहीं है तो वे पंजीकरण करके प्रोविजिनल सर्टिफिकेट ले सकते हैं। उसके आधार पर अगले 45 दिन की अवधि के भीतर पोर्टल पर आवास प्रमाणपत्र दाखिल करके पूर्ण पंजीकरण करवा सकते हैं।

छह माह अधिकतम कैद का प्रावधान
- यदि कोई जोड़ा एक महीने तक लिव इन रिलेशन का पंजीकरण नहीं करवाता है तो उसके खिलाफ न्यायिक कार्यवाही के तहत तीन महीने की जेल या 10 हजार रुपये जुर्माना अथवा दोनों सजा हो सकती है।
- यदि किसी ने पंजीकरण में गलतबयानी की या कागज़ में कोई जालसाजी अथवा कोई सूचना छिपाई तो उसे तीन महीने की सजा या 25 हजार रुपये जुर्माना अथवा दोनों सजा हो सकती है।
- यदि कोई लिव इन रिलेशन में है और सूचना नहीं दाखिल की है तो उसे रजिस्ट्रार की ओर से पंजीकरण करवाने का नोटिस जाएगा। उसके बाद भी उसने पंजीकरण नहीं करवाया तो छह महीने की कैद या 25 हजार जुर्माना या दोनों सजा मिल सकती हैं।
लिव इन रिलेशनशिप भी कानून के दायरे में
यूसीसी के साथ-साथ ऐसा पहली बार हो रहा है, जब लिव इन रिलेशनशिप भी कानून के दायरे में आ गई है। जो लिव-इन रिलेशनशिप में हैं, उन्हें इसके बारे में जिले के रजिस्ट्रार के सामने घोषणा करनी होगी। इसके साथ ही उत्तराखंड का जो निवासी राज्य के बाहर रहता है, वो अपने जि़ले में लिव इन रिलेशनशिप के बारे में बता सकता है। लिव इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चों को भी वैध बच्चा घोषित किया गया है। उन लोगों का लिव इन रिलेशनशिप वैध नहीं होगी जो अवयस्क हैं, पहले से शादीशुदा हैं या बलपूर्वक या धोखे से ऐसा कर रहे हैं। 21 साल से कम उम्र के लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले युवक-युवती के परिजनों को इसके बारे में पहले से सूचित करना ज़रूरी होगा।
वीडियो अपलोड और तीन मिनट में वसीयत
यूसीसी लागू होने के बाद अब अगर कोई अपनी वसीयत करना चाहता तो यह काम तीन मिनट के वीडियो से भी हो जाएगा। इस वीडियो में अपनी वसीयत को पढ़कर बोलना होगा। इसमें दो गवाह भी बोलेंगे। इसके बाद इस वीडियो को अपलोड करना होगा। इसके अलावा, पोर्टल पर फॉर्म भरकर और हस्तलिखित व टाइप की हुई वसीयत को भी अपलोड किया जा सकता है। समान नागरिक संहिता में वसीयत की प्रक्रिया को बेहद आसान किया गया है। इसमें यूसीसी की धारा 49 व 60 के अनुसार अपनी संपत्ति का विवरण देना होगा। अपने विधिक उत्तराधिकारी की घोषणा करनी होगी। 18 वर्ष से अधिक आयु और मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही अपने उत्तराधिकारियों की सूची घोषित कर सकता है। इसमें सब-रजिस्ट्रार सिर्फ यह प्रमाणित करता है कि इस व्यक्ति ने इन लोगों को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है। यदि अधिकारी अतिरिक्त जानकारी मांगता है तो पांच दिन में इसका जवाब देना होगा। पता या अन्य विवरण बदलने के लिए 30 दिन का समय मिलेगा। इसमें वसीयत को स्वयं सत्यापित करना होगा। इसके अलावा, किसी अधिकृत एजेंसी की मदद से भी कराया जा सकता है। यदि वीडियो के माध्यम से अपनी वसीयत करनी है तो इसमें गवाहों की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अनिवार्य होगी। वीडियो रिकॉर्डिंग से पहले भी आधार नंबर से लॉग इन करना होगा।