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सूडान में तख्तापलट का क्या मतलब और दुनिया को क्या करने की है जरूरत

सिडनी: सूडान में लोकतांत्रिक व्यवस्था के आने और जाने का एक लंबा इतिहास रहा है और हालिया सैन्य तख्तापलट भी उसी का एक हिस्सा है जिससे लोकतांत्रिक व्यवस्था के एक छोटे से काल का अचानक और निरंकुश अंत हो गया। अतीत के बरखिलाफ इस बार सूडान में काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है। देश में न केवल शांति और सुरक्षा खतरे में है, बल्कि वृहद क्षेत्र की सुरक्षा भी आंच आने का डर है क्योंकि इसमें ऐसे खतरनाक और परस्पर असंगत स्वार्थ उभर कर आए हैं, जो देश को अपने हिसाब से अपनी दिशाओं में ले जाना चाहते हैं।

उमर अल बशीर की नेशनल कांग्रेस पार्टी सरकार के 2019 में गिरने से 30 साल के निरंकुश शासन का अंत हो गया था, लेकिन इसका यह भी अर्थ था कि इस अवधि के बाद की गतिविधियों का ध्यान से प्रबंधन करने की आवश्यकता थी। केवल शांति और न्याय ही दांव पर नहीं था, बल्कि देश की पहचान भी दांव पर थी। सूडान कट्टर इस्लामी तत्वों, अनौपचारिक और औपचारिक सशस्त्र बलों, राजनीतिक दलों, ढेर सारे समूहों और सशस्त्र मिलिशिया में विभाजित हो गया था। ये सभी सूडान के लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं।

बशीर को पदस्थ करने के पश्चात संक्रमणकालीन सरकार के पास न केवल एक वित्तीय संकट से जूझ रहे देश का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी थी, बल्कि उसे यह काम सत्ता के बंटवारे की बेहद मुश्किल व्यवस्था के साथ करना था। सेना को 21 महीने की अवधि के लिए शासन करना था, जिसके बाद असैन्य समूह को शेष 18 महीने शासन करना था और 2023 में चुनाव होने थे।

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