उत्तर प्रदेशलखनऊ

महिलाओं की शिक्षा का प्रजनन दर पर भी पड़ता है असर

पढ़ी लिखी महिलाओं की प्रजनन दर दो तथा अनपढ़ की तीन

पढ़ेंगी बेटियां तभी तो स्वस्थ बनेंगी पीढ़ियां

लखनऊ : कम उम्र में मां बनना या ज्यादा बच्चे पैदा करना दोनों ही महिला स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा होता हैं। इससे उनकी जान जाने का भी जोखिम बना रहता है। ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि लड़कियों को इतना सक्षम बनाया जाए कि वह अपने निर्णय खुद ले सकें। यह कहना है सेंटर फॉर एक्सीलेंस ऑफ एडोल्सेन्ट हेल्थ, केजीएमयू की नोडल अधिकारी डॉ. सुजाता देव का। उनका कहना है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2019-21 की रिपोर्ट से यह पूरी तरह स्पष्ट होता है कि शिक्षा सीधे तौर पर महिला एवं शिशु स्वास्थ्य पर असर डालती हैं, जैसे कि पढ़ी – लिखी महिलाओं ने बिना पढ़ी लिखी की अपेक्षा प्रसव पूर्व जांच को ज्यादा अहमियत दी। इसके साथ ही जो लड़कियां स्कूल नहीं गईं, उनकी प्रजनन दर तीन है और जिन्होने 12 साल या उससे ज्यादा वर्ष तक शिक्षा ग्रहण की उनकी प्रजनन दर दो ही रही। प्रजनन दर से तात्पर्य है कि इन महिलाओं के इतनी की दर में बच्चे हैं। सर्वे के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल 66 प्रतिशत महिलाएं ही शिक्षित हैं और सिर्फ 39.3 प्रतिशत महिलाओं ने 10 या उससे अधिक वर्ष के लिए स्कूल गई हैं।

महिलाओं के हक और समानता की बात की जाए तो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2019-21 के अनुसार उत्तर प्रदेश में 18 प्रतिशत महिलाओं को अपने स्वास्थ्य संबंधी अधिकार लेने का हक नहीं है। बात जब परिवार नियोजन की आती है तो 15-49 वर्ष की आयु के आधे पुरुष इस बात से सहमत हैं कि गर्भनिरोधक के इस्तेमाल का निर्णय सिर्फ महिलाओं का हो, इसकी चिंता पुरुषों को नहीं करनी चाहिए। उत्तर प्रदेश में अब भी लगभग तीन प्रतिशत लड़कियां 15-19 वर्ष की आयु में ही माँ बन जाती हैं या गर्भवती होती हैं। डॉ. सुजाता कहती है कि लड़कियाँ शिक्षित होंगी तो वह न सिर्फ अपने बेहतर स्वास्थ्य बल्कि परिवार नियोजन के लिए भी बेहतर निर्णय ले सकेंगी। इसके साथ ही वह अपने स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के प्रति सतर्क रहेंगी। कोई समस्या आने पर वह अपनी बात उचित समय पर रख सकेंगी।

20वीं सदी की शुरुआत में रूस में महिलाओं ने 23 फरवरी को अपना पहला महिला दिवस मनाया। बाद में, यह निर्णय लिया गया कि विश्व स्तर पर 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाएगा। वर्ष 1975 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहली बार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था। इस बार महिला दिवस की थीम ‘जेंडर इक्वालिटी टुडे फॉर अ सस्टैनबल फ्यूचर’ यानि ‘एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता’ है।

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