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अटल बिहारी वाजपेयी ने ठुकरा दी थी विजय माल्या की अपील


लखनऊ : पूर्व प्रधानमंत्री और जननेता अटल बिहारी वाजपेयी अब हमारे बीच नहीं हैं। अटल की छवि आम जनमानस में ऐसी थी, जिस पर कोई भी आंख मूंद कर विश्वास कर सकता था। यूं तो वाजपेयी से जुड़े कई दिलचस्प किस्से हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने उनसे जुड़ा अनुभव शेयर किया है जब वाजपेयी ने विजय माल्या को खाली हाथ लौटा दिया था। गौरतलब है कि सरकारी बैंकों के कई हजार करोड़ रुपये लेकर फरार होने वाला विजय माल्या अभी लंदन में है और उसे भारत लाने की कोशिशें जारी हैं। अटल सरकार ने 5 फीसदी एथनॉल पेट्रोल में मिलाने को मंजूरी दी। सरकार जाने के साथ ही पॉलिसी डंप हो गई। अब मोदी सरकार ने इसे आगे बढ़ाया है। अब समझ आया, माल्या किसका आदमी था, बेशक कांग्रे। 1999 में स्थाई सरकार बनने पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राम नाईक को पेट्रोलियम मंत्री बनाया। नाईक ने गन्ने के बाई प्रॉडक्ट से एथनॉल बना पेट्रोल में मिलाने का प्रस्ताव आगे बढ़ाया। लिकर लॉबी के सुर इसके खिलाफ तल्ख हो गए। विरोध की अगुआई कर रहे थे इस समय भगोड़े घोषित हो चुके विजय माल्या, लेकिन अटल के आगे उनकी एक न चली। यह अनुभव साझा करते हुए राज्यपाल राम नाईक के स्वर में संवेदना बढ़ जाती है।

अटल के साथ 56 वर्षों के साथ में नाईक को सियासत के मंच से लेकर सेहत के संघर्ष तक में अटल का संबल मिला है। स्मृतियों के पन्ने पलटते हुए राम नाईक कहते हैं कि गन्ने के बाई प्रॉडक्ट से एथनॉल बनाने के फैसले से किसानों को फायदा होता। इसलिए जब मैंने यह प्रस्ताव आगे बढ़ाया तो अटलजी इस पर सहमत दिखे। हालांकि, लिकर लॉबी विजय माल्या की अगुआई में इसका विरोध करने मेरे पास पहुंच गई। मैंने साफ मना कर दिया तो माल्या अटलजी के पास पहुंचे। अटल जी ने माल्या से सपाट लहजों में पूछा, ‘पेट्रोलियम मंत्री से मिले?’ जवाब आया, ‘हां! लेकिन वह पॉलिसी वापस लेने को तैयार नहीं हैं। अटल ने कहा, मैं अपने मंत्री के निर्णय के साथ हूं। इसके साथ ही अटल सरकार ने 5 फीसदी एथनॉल पेट्रोल में मिलाने को मंजूरी दी। सरकार जाने के साथ ही पॉलिसी डंप हो गई। अब मोदी सरकार ने इसे आगे बढ़ाया है। राज्यपाल अपने राजनीतिक जीवन का एक और दिलचस्प वाकया बताते हैं। 1998 में जब 13 महीने की सरकार बनी तो तीन बार सांसद, तीन बार विधायक और दो बार मुंबई बीजेपी का अध्यक्ष होने के चलते लोगों को लग रहा था कि मैं कैबिनेट मंत्री बनाया जाऊंगा। हालांकि, मुझे राज्यमंत्री बनाया गया। अटलजी ने मुझे बुलाकर कहा, आप कैबिनेट के हकदार थे लेकिन 23 पार्टियों की सरकार में सबको साधना है इसलिए आपको मैं कैबिनेट मंत्री नहीं बना पाऊंगा। मैंने कहा कि मैं संगठन का कार्यकर्ता हूं और जो भी जिम्मेदारी होगी उस पर मैं कार्य करने को तैयार हूं।

अटल ने मुझे रेलवे व संसदीय कार्य का राज्यमंत्री बनाया। दो महीने बाद ही बुलाकर कहा, ये आंकड़ों का काम मुझसे नहीं होता, इसलिए आप नियोजन व क्रियान्वयन भी देखिए। संयोगवश पंजाब में रेल दुर्घटना के चलते नीतीश कुमार ने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और रेल का भी पूरा काम मेरे जिम्मे आ गया। जब एक वोट से सरकार गिरी तो अटलजी ने कहा कि आडवाणी को देश भर के चुनावी दौरे पर निकलना होगा इसलिए आप गृह पर भी ध्यान दीजिए। यह उनका अपने सहयोगी के प्रति विश्वास था कि उन्होंने एक साथ पांच विभागों का काम सौंप दिया। रामनाईक कहते हैं कि अटल की अगुआई में कैबिनेट की बैठक में सबको अपनी बात कहने की आजादी थी। मैंने एक बार प्रस्ताव दिया कि हम विदेशों से 70 फीसदी कच्चा तेल मंगाते हैं तो क्यों न केवल ऑइल फील्ड खरीदें। उनकी सहमति पर पहली बार रूस के साखालीन में 8200 करोड़ रुपये का ऑइल फील्ड जापान के साथ खरीदने का प्रस्ताव कैबिनेट में आया। कुछ दूसरे मंत्रियों ने इस पर आपत्ति की तो उन्होंने कहा, राम नाईक ही इसका जवाब देंगे। जब मैंने सभी पक्षों को रखा तो सबने सहमति दी। अटल का न होना मुझे सहित पूरे देश को अपने के खोने का एहसास करवाता है।

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