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उच्च पदों पर बैठे एससी/एसटी के परिवार वालों को पदोन्नति में आरक्षण क्यों : सुप्रीम कोर्ट


नई दिल्ली : उच्च आधिकारिक पदों पर बैठे एससी/एसटी समुदाय के संपन्न लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने के तर्क पर सर्वोच्च न्यायालय ने सवाल उठाया। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सवाल किया कि संपन्न लोगों को प्रमोशन में आरक्षण के लाभ से वंचित करने के लिए उन पर ‘क्रीमीलेयर’ सिद्धांत लागू क्यों नहीं किया जा सकता? यह सिद्धांत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के समृद्ध वर्ग को आरक्षण के लाभ के दायरे से बाहर करने के लिए लागू किया जाता है।

पीठ ने कहा, प्रवेश स्तर पर आरक्षण कोई समस्या नहीं। मान लीजिए, कोई ‘एक्स’ व्यक्ति आरक्षण की मदद से किसी राज्य का मुख्य सचिव बन जाता है। अब, क्या उसके परिवार के सदस्यों को पदोन्नति में आरक्षण के लिए पिछड़ा मानना तर्कपूर्ण होगा क्योंकि इसके जरिये उसका वरिष्ठताक्रम तेजी से बढ़ेगा। पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, आर एफ नरीमन, एस के कौल और इंदू मल्होत्रा भी शामिल थे। दिन भर चली सुनवाई के दौरान, अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरिक्त सालिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ताओं इंदिरा जयसिंह, श्याम दीवान, दिनेश द्विवेदी और पी एस पटवालिया सहित कई वकीलों ने अजा, अजजा समुदायों के लिए पदोन्नति में आरक्षण का पुरजोर समर्थन किया और मांग की कि बड़ी पीठ द्वारा 2006 के एम नागराज मामले के पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले पर फिर से विचार किया जाना चाहिए।

वर्ष 2006 के फैसले में कहा गया था कि अजा, अजजा समुदायों को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले राज्यों पर इन समुदायों के पिछड़ेपन पर गणनायोग्य आंकड़े और सरकारी नौकरियों तथा कुल प्रशासनिक क्षमता में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में तथ्य उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी है। वेणुगोपाल और अन्य वकीलों ने आरोप लगाया कि फैसले ने इन समुदाय के कर्मचारियों की पदोन्नति को लगभग रोक दिया है। हालांकि, वरिष्ठ वकील और पूर्व विधि मंत्री शांति भूषण तथा वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने पदोन्नति में आरक्षण का विरोध किया और कहा कि यह समानता के अधिकार और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर का उल्लंघन करता है। इस मामले में दलीलों का सिलसिला 29 अगस्त को भी जारी रहेगा।

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