ज्ञान भंडार

उपलब्धियां, विवाद और बवाल

केजरीवाल सरकार का एक साल
राम शिरोमणि शुक्ल

kejariकिसी भी सरकार के लिए उसके कार्यकाल का एक साल पूरा होना काफी अहम होता है, अब वह चाहे अल्पमत की हो या प्रचंड बहुमत की। सरकार के शुरुआती एक साल से ही लोगों को यह पता चलने लगता है कि जिसे उन्होंने एक साल पहले चुनकर भेजा था, उसके लक्षण कैसे हैं और आने वाले कैसे रहने वाले हैं। इस लिहाज से दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार का एक साल वैसे भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वह सामान्य परिस्थितियों में सत्ता में नहीं आई थी। लोगों को याद होगा कि इससे करीब एक साल पहले केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत वाली एनडीए की सरकार बनी थी। आप की सरकार भी करीब-करीब उसी समय एक बार पहले भी बनी थी, लेकिन तब उसके पास बहुमत नहीं था और उसे कांग्रेस का समर्थन हासिल था, लेकिन वह बहुत जल्दी ही मुुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के साथ सत्ताच्युत हो गई थी। बाद में नए सिरे से चुनाव कराया गया था क्योंकि कोई भी पार्टी सरकार बनाने के लिए तैयार नहीं थी। इस चुनाव में दिल्ली की जनता ने इस कदर आप को समर्थन दिया कि पूरे विपक्ष का तकरीबन सफाया हो गया था। केवल भाजपा को तीन सीटें मिली थीं। इससे साफ था कि दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल की बातोंं और वायदों पर पूरा विश्वास किया था। यह वह अरविंद केजरीवाल थे जिन्होंने प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत आंदोलन चलाया था। बाद में अन्ना से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली थी और चुनाव में शामिल हो गए थे। अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आप ने जनलोकपाल समेत कई ऐसे वादे दिल्ली की जनता से किए थे जो शुरुआत में काफी असंभव जैसे लगते थे और जिसको लेकर उनकी काफी आलोचना भी विपक्ष की ओर से की जाती थी। इन सब लिहाज से उनकी सरकार के एक साल के कार्यकाल को देखना अपने आप में नया अनुभव कहा जा सकता है। इस लिहाज से भी कि केंद्र मेंं उनकी धुर विरोधी भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार है जिसके साथ केजरीवाल की सरकार का लगातार टकराव बना हुआ था।
पांच साल केजरीवाल के नारे के साथ दिल्ली की सत्ता में आई आम आदमी पार्टी की सरकार ने 14 फरवरी 2016 को एक साल पूरा कर लिया है। जन-आकांक्षाओं के बोझ तले दबी केजरीवाल सरकार ने एक साल पहले जब सत्ता संभाली तो हर किसी की जुबां पर बस एक ही सवाल था कि आखिर उसके काम करने का अंदाज कैसा होगा? कहीं एक साल पहले वाला इतिहास दोहराया तो नहीं जाएगा जब 2014 में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार बनी तो, लेकिन कुछ समय बाद ही ये सरकार गिर गई। हालांकि तब मामला दूसरा था। केजरीवाल सरकार के पास बहुमत नहीं था, लेकिन 2015 में हुए दिल्ली के चुनाव में यहां की जनता ने केजरीवाल सरकार के समर्थन में एकजुट होकर मतदान किया। इसी का नतीजा था कि दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में 67 सीटें अकेले आम आदमी पार्टी के खाते में गई। इतने बड़े बहुमत से साफ हो गया कि दिल्ली की जनता का केजरीवाल पर कितना विश्वास है।
अरविंद केजरीवाल ने भी दिल्ली की जनता का विश्वास टूटने नहीं दिया और सत्ता संभालने के दस दिन में ही सरकार ने दिल्लीवासियों को सौगात देते हुए बिजली सस्ती और पानी मुफ्त करने का ऐलान कर दिया। हालांकि इस बीच आम आदमी पार्टी में कलह भी देखने को मिली। सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही पार्टी में बड़ा घमासान देखने को मिला। हालात ऐसे बन गए कि आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते कार्रवाई का सामना करना पड़ा। उन्हें राजनैतिक मामलों की समिति से निकाल दिया गया। एक महीने से ज्यादा समय तक चले विवाद के बाद योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने खुद को पार्टी से अलग कर लिया। इस मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल सरकार की खासी किरकिरी हुई।
22 अप्रैल को नया विवाद तब सामने आया जब दिल्ली के जंतर मंतर पर केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल के विरोध में आम आदमी पार्टी ने किसान रैली बुलाई थी। इस दौरान राजस्थान से आए गजेंद्र नाम के किसान ने रैली के दौरान ही सबके सामने फांसी लगा ली। इस मुद्दे पर खासा सियासी टकराव देखने को मिला। इस बीच केजरीवाल सरकार ने गजेंद्र की मौत पर मुआवजे का ऐलान किया साथ ही किसान सहायता योजना की शुरुआत भी की।
केजरीवाल सरकार के एक साल कार्यकाल में कई और विवाद सामने आए। इनमें सीएम केजरीवाल और दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच फैसलों को लेकर घमासान अहम थे। इसकी शुरुआत मई महीने में उस समय देखने को मिली जब केजरीवाल सरकार ने कार्यवाहक मुख्य सचिव को नियुक्त करने की योजना बनाई। केजरीवाल सरकार ने जिस अधिकारी इस पद के लिए नाम उपराज्यपाल के पास भेजा उसके उलट उपराज्यपाल नजीब जंग ने आईएएस शकुंतला गमलिन को मुख्य सचिव बना दिया। इस पर जमकर हंगामा देखने को मिला। आखिर में इस मुद्दे पर केंद्र की ओर से नोटिफिकेशन आया जिसमें कहा गया कि दिल्ली में उपराज्यपाल ही सबकुछ हैं और उन्हें किसी की सलाह मानने की जरूरत नहीं है। केवल उपराज्यपाल से ही नहीं दिल्ली पुलिस से भी अरविंद केजरीवाल खासे परेशान रहे।
इसके बाद से कई बार ऐसे मौके आए जब केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल नजीब जंग फैसलों को लेकर आमने-सामने नजर आए। इस बीच भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर सामने आई आम आदमी पार्टी की मुश्किलें तब बढ़ गई जब केजरीवाल सरकार में कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर फर्जी डिग्री विवाद में फंस गए। दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। हालांकि केजरीवाल सरकार शुरू में अपने मंत्री के समर्थन में एकजुटता से खड़ी दिखाई दी। हालांकि बाद में जैसे-जैसे सबूत सामने आए अरविंद केजरीवाल को अपने मंत्री का इस्तीफा लेना पड़ गया। इसके बाद भी लगातार विवादों के चलते आम आदमी पार्टी के कई विधायकों और नेताओं को पुलिसिया कार्रवाई का शिकार होना पड़ा। हालांकि केंद्र सरकार से उनकी तकरार बनी रही। ऐसे कई मौके पर जब कमजोर सियासी समझ के चलते केजरीवाल सरकार के कई फैसले उनके उलट पड़ गए। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली पुलिस को अपने हाथ में लेने की मांग कई बार उठाई। हालांकि उनका दांव फेल ही हुआ।
इसके साथ-साथ कई फैसलों पर केजरीवाल सरकार की खिंचाई भी हुई। जैसे दिल्ली में विधायकों की तनख्वाह में बढ़ोतरी को लेकर विरोधियों ने सवाल किया कि आखिर सादगी और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों को इतनी तनख्वाह की जरूरत क्यों पड़ गई? इसके अलावा दिल्ली सरकार अपने विज्ञापनों के चलते भी विवाद में रही।
दिल्ली सरकार की लगातार केंद्र सरकार से ठनी रही। कई मुद्दों को लेकर उनके बीच विवाद देखने को मिला। इसकी बानगी 15 दिसंबर को दिखाई दी जब केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने दिल्ली सचिवालय में छापेमारी कर दी। सीबीआई की ओर से कहा गया कि वह दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के तहत ये कार्रवाई की गई, लेकिन आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे पर सीबीआई के बहाने के केंद्र की मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। आप नेताओं ने एक सुर में सीबीआई की कार्रवाई पर सवाल उठाए। साथ ही कहा कि राजेंद्र कुमार के बहाने अरविंद सरकार को निशाना बनाने की कवायद की जा रही है। पार्टी ने सीधे-सीधे केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को घेरा। आप नेताओं के मुताबिक जेटली को डीडीसीए मामले से बचाने के लिए ये कवायद की जा रही है। फिलहाल मामला कोर्ट में है। हाल ही में एक और विवाद तब सामने आया जब दिल्ली नगर निगम के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। करीब 13 दिनों तक एमसीडी के कर्मचारी हड़ताल पर रहे। जिसके चलते दिल्ली के कई इलाकों में कूड़ा नहीं उठाया गया। हालात बेहद गंभीर थे। इस दौरान दिल्ली सरकार लगातार दलील देती रही कि हमने कर्मचारियों को तनख्वाह दे दी है। दूसरी ओर नगर निगमों से जुड़े अध्यक्ष उन पर झूठ बोलने की तोहमत मढ़ते रहते हैं।
हालांकि इस बीच केजरीवाल सरकार ने कई खास काम भी पूरे किए। इनमें दिल्ली में लागू ऑड-ईवन फॉर्मूले की सफलता अहम है। 15 दिन चले ऑड-ईवन फॉर्मूले से दिल्ली ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त हुई। लोगों को जाम से निजात मिली। इसकी सफलता को देखते हुए सरकार अप्रैल में इसे दोबारा लागू करने पर विचार कर रही है।
इसके अलावा केजरीवाल सरकार ने बच्चों के नर्सरी के दाखिले में दखल की कोशिश की। इसके अलावा बीआरटी कॉरिडोर खत्म किया। इसके अलावा कई दूसरे बड़े फैसले लिए जिससे जनता को और खास कर कमजोर तबके को फायदा मिल सके। आम आदमी पार्टी और उसकी सरकार में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी उपलब्धियां भी गिनाईं और नई घोषणाएं भी की हैं। उनके अनुसार, आधुनिक मुहल्ला क्लीनिक चलाए जा रहे हैं, एक हजार मुहल्ला क्लीनिक बनाए जा रहे हैं, सरकारी अस्पतालों में सभी टेस्ट मुफ्त हैं, 150 पॉली क्लीनिक भी बनाए जा रहे हैं, स्वास्थ्य का बजट डेढ़ गुना किया गया है, सरकारी अस्पतालों में दवाएं मुफ्त दी जा रही हैं और सुविधाएं बेहतर की गई हैं। इसके अलावा ईडब्ल्यूएस सिस्टम को ऑनलाइन किया गया है, दिल्ली में नए स्कूलों का निर्माण कराने की योजना है, सरकारी स्कूलों में निजी स्कूलों जैसी व्यवस्था पर काम किया जा रहा है, महंगे बिजली के कॉन्ट्रैक्ट रद किए जाएंगे, मीटर लगाने वालों को फायदा होगा, ऐसी योजना बनाई गई है कि 2017 तक हर घर में पानी होगा, बाकी श्रेणी के लोगोंं के सभी बिल माफ होंगे, पानी के बिल में सी कैटेगरी को 50 प्रतिशत छूट होगी, एप के जरिये मीटर रीडिंग होगी, 30 नवंबर तक के सारे पानी के बिल माफ, सीएजी ऑडिट से बिजली के दाम घटेंगे, बिजली पर 1400 करोड़ की सब्सिडी दी गई है, जल बोर्ड को 176 करोड़ का मुनाफा हुआ है। इसके अलावा उन कामों को पूरा करने की फेहरिस्त भी गिनाई है जिनके बारे में वायदे किए गए थे। इन सबके बीच विपक्ष ने सरकार को छोड़ा नहीं बल्कि उसकी जमकर आलोचना की। मुख्य विपक्षी भाजपा और कांग्रेस ने सरकार के एक साल पूरा होने पर उसकी जमकर खिंचाई की है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली्र की जनता के साथ धोखा किया है और उसने जनता से किए एक भी वादे को पूरा नहीं किया। दिल्ली की जनता परेशान है और सरकार विवादों में घिरी है। वैसे विपक्ष का मतलब ही होता है सरकार की कमियां गिनाना, लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि सरकार ने कुछ किया भी या नहीं। अगर कुछ अच्छे काम किए है, उसका भी उल्लेख किया जाना चाहिए। इस बीच कुल मिलाकर अगर एक साल के केजरीवाल सरकार के ग्राफ को देखें तो काम के साथ-साथ विवादों से भी उनका सामना होता रहा। फिलहाल उनके एक साल के कार्यकाल पर दिल्ली की जनता को कितना भरोसा है ये तो पता नहीं, लेकिन ये सरकार अगर विवादों से पार पा ले फायदा जरूर हो सकता है। =

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