अद्धयात्म

ऐसे होता है बाबा श्याम का शृंगार, खुशबू से महकता है पूरा दरबार

phpThumb_generated_thumbnail (46)दस्तक टाइम्स एजेंसी / खाटू श्यामजी। जन-जन के आराध्य बाबा श्याम को इन दिनों दिन में तीन बार स्नान करवाकर शृंगार किया जाता है। रोचक बात यह है कि उन्हें हर बार दस हजार रुपए तौला के इत्र रूह गुलाब से नहलाया जाता है। 
 
इसके बाद कोलकाता से आए विशेष फूलों से उनका शृंगार किया जाता है। बाबा श्याम के फाल्गुनी लक्खी मेले में श्रद्धालु उमडऩे लगे हैं। कोई बस से तो कोई निजी वाहन से पहुंच रहा है। 
 
भीड़ भरे माहौल से बचने के लिए श्रद्धालुओं की पदयात्राएं रींगस से शुरू हो गई हैं। श्रीश्याम कथा का आयोजन पुलिस थाना रोड़ पर स्थित हैदराबाद धर्मशाला में 13 से 15 मार्च तक सायं 6 से रात्रि 8 बजे तक मनुश्री रतनगढ़ वाले करेंगे।
बर्बरीक भीम का पोता एवं घटोत्कच का पुत्र था। वह युद्ध में भाग लेना चाहता था। उसने नौ दुर्गाओं की तपस्या की थी और उसके पास तपस्या से अर्जित तीन दिव्य बाण थे। इनसे वह सभी योद्धाओं का संहार कर सकता था। कृष्ण ने दूरदर्शिता से यह अनुमान लगा लिया कि इस वीर के युद्ध में शामिल होने से भयंकर विनाश होगा। साथ ही पांडवों की विजय भी संकट में पड़ जाएगी, क्योंकि बर्बरीक ने प्रतिज्ञा की थी कि वह उसी पक्ष की ओर से युद्ध करेगा, जो कमजोर होगा।
 
कमजोर को विजयी बनाना उसका लक्ष्य होगा, ताकि निर्बल के साथ अन्याय न हो। श्रीकृष्ण सत्य की रक्षा के लिए पांडवों की विजय चाहते थे। वे जानते थे कि कौरवों की हार होगी। इस स्थिति में अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल होता तो वह उनका पक्ष ले सकता था। इससे पांडवों की विजय संदिग्ध थी। 
 
 
बर्बरीक सिर्फ महान योद्धा ही नहीं था। वह उच्च कोटि का दानवीर था। अपने द्वार पर आए याचक को कभी खाली हाथ नहीं जाने देता। तब  कृष्ण ने ब्राह्मण का वेश बनाया और उससे तीन बाणों का रहस्य पूछा। बर्बरीक ने कहा, मैं इन तीनों बाणों से समूची सेना को मृत्यु के मुख में पहुंचा सकता हूं। कृष्ण ने उसे यह सिद्ध करने के लिए कहा। 
 
बर्बरीक उन्हें पीपल के एक वृक्ष के पास ले गया। वहां कृष्ण ने वृक्ष का एक पत्ता तोड़कर अपने पैर तले छुपा लिया। बर्बरीक ने तीर चलाया और वृक्ष के सभी पत्ते चिह्नित हो गए। उसने दूसरा तीर चलाया तो सभी पत्ते तीर से बिंध गए। जो पत्ता कृष्ण के पैर तले था, तीर उसे भी बींधने चला गया। 
 
उनके पैर हटाने के बाद तीर ने पत्ते को बींध दिया। इस घटना से कृष्ण चिंतित हो गए, क्योंकि इतनी शक्तियों का स्वामी बर्बरीक बहुत शीघ्र युद्ध का अंत कर सकता था और सभी योद्धाओं को मृत्यु की गोद में पहुंचा सकता था। 
 
 
कृष्ण अपने वास्तविक स्वरूप में आए और बर्बरीक से दान में उसका शीश मांग लिया। बर्बरीक ने बेहिचक उनकी बात मान ली, परंतु एक इच्छा भी जताई। वह कृष्ण के दिव्य स्वरूप के दर्शन करना चाहता था। भगवान ने यह इच्छा पूरी की।
 
बर्बरीक संपूर्ण युद्ध देखना चाहता था। श्रीकृष्ण ने उसकी यह मांग भी स्वीकार कर ली। उस युग में फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को बर्बरीक ने पूरी रात भगवान के नाम का स्मरण किया और अगले दिन यानी द्वादशी को शीश का दान दिया। 
 
श्रीकृष्ण के वरदान तथा अमृत से सींचने के कारण यह शीश अमर हो गया। युद्ध समाप्ति के बाद जब पांडवों में इस बात को लेकर बहस हुई कि किस वीर की वजह से यह विजय मिली है तो कृष्ण ने उन्हें इसका निर्णय करने के लिए बर्बरीक का नाम सुझाया, क्योंकि उसी ने संपूर्ण युद्ध देखा था।
 
 
पांडव बर्बरीक के पास गए और उससे प्रश्न किया। बर्बरीक ने कहा, मुझे तो युद्धभूमि में सभी जगह भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र ही नजर आ रहा था। शेष वीर तो निमित्त मात्र थे। भगवान कृष्ण बर्बरीक की दानशीलता, सच्चाई और निष्पक्षता से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बर्बरीक को अपना श्याम नाम वरदान में दे दिया। साथ ही कलियुग में इसी नाम से पूजित होने का आशीर्वाद दिया। 
 
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्यामजी में बाबा श्याम का मंदिर है। यहां हर माह की एकादशी व द्वादशी को दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। फाल्गुन मास में यहां विशाल मेला भरता है। तब एकादशी और द्वादशी को लाखों लोग बाबा के दर्शन करते हैं। द्वादशी के दिन श्याम भक्त अपने बाबा की ज्योति लेते हैं और उन्हें खीर-चूरमे का भोग लगाते हैं।
 
 

Related Articles

Back to top button