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‘खतना’ पर उच्चतम न्यायालय ने उठाये गम्भीर सवाल, कहा-क्या पशु हैं दाऊदी बोहरा समुदाय की महिलाएं


नई दिल्ली : दाऊदी बोहरा मुसलमानों में प्रचलित महिलाओं के खतना प्रथा पर सवाल उठाते हुए उच्चतम न्यायलय ने कहा कि महिला से ही पति की पसंद बनने की अपेक्षा क्यों होनी चाहिए क्या वह कोई पशु है, जो किसी की पसंद न पसंद बने। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ये मामला महिला की निजता और गरिमा से जुड़ा है, ये संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है। इसके अलावा सोमवार को केन्द्र सरकार ने भी इस प्रथा को बंद करने की मांग का समर्थन किया। मामले पर मंगलवार को भी सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट में कई जनहित याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें महिलाओं के खतना प्रथा पर रोक लगाने की मांग की गई है।

मामले पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एएम खानविल्कर व डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ सुनवाई कर रही है। सोमवार को सुनवाई के दौरान जब याचिकाकर्ता के वकील राकेश खन्ना ने प्रथा का विरोध करते हुए कहा कि पांच-सात वर्ष की बच्चियों का खतना किया जाता है, जो कि उनके लिए बहुत ही पीड़ादायक होता है। ये काम मिड वाइफ या अप्रशक्षित दाइयां करती हैं। ये जीवन के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) का हनन है। इन दलीलों पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये केवल अनुच्छेद 21 का हनन नहीं है बल्कि अनुच्छेद 15 का भी हनन है। अपने निजी अंगों पर व्यक्ति का एकाधिकार होता है ये व्यक्ति की निजता और गरिमा से जुड़ा मुद्दा है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ये लिंग आधारित संवेदनशीलता का मुद्दा है। इसके कई पहलू हैं महिला पर पति की पसंद बनने का दबाव, संविधान सम्मत नहीं है। ये सेहत के लिए हानिकारक है। ये प्रथा अनुच्छेद 21 मे दिये गए स्वास्थ्य और जीवन के अधिकार का हनन है। जब आप किसी महिला के लिए सकारात्मक ढंग से सोचते हैं तो अचानक इस प्रक्रिया को उलट नहीं सकते। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ये प्रथा सिर्फ किसी वर्ग के खिलाफ नहीं बल्कि लिंग के खिलाफ है। किसी महिला से ही ऐसी अपेक्षा क्यों की जाती। क्या वह पशु है। उसके साथ ये सब सिर्फ इस उद्देश्य से हो कि वह अपने पति की खुशी बने। प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कहा गया है कि दाउदी बोहरा मुसलमानों में लड़कियों का खतना कराया जाता है और उसके बाद ही उनकी शादी होती है। ये प्रथा महिला की पवित्रता को कायम रखने के नाम पर चल रही है। छोटी बच्चियों और कुआंरी लड़कियों के निजी अंग के एक भाग को काट दिया जाता है जिससे उनमें सेक्स के प्रति उत्साह और इच्छा काबू में रहे।

प्रथा के खिलाफ बहस करते हुए वकील इंद्रा जयसिंह ने कहा कि महिला के निजी अंगों को छूना उन्हें चोट पहुंचाना आईपीसी की धारा 375 (दुष्कर्म) और बाल यौन हिंसा निरोधक कानून (पोस्को) में दंडनीय अपराध है। जो चीज कानून मे अपराध है वह धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं हो सकती। केन्द्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका का समर्थन करते हुए इस प्रथा पर रोक लगाने की मांग की। उन्होंने कहा कि 42 देशों में इस पर रोक है।

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