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जॉब फेयर: 21 हजार ने दिया इंटरव्यू, महज 6600 हुए सलेक्ट

देश में इस वक़्त सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है. लाखों युवा ग्रेजुएशन पूरा कर नौकरी की तलाश में भटकते हुए नजर आते हैं. इस बार भी दिल्ली सरकार ने लगातार तीसरे साल रोजगार मेले का आयोजन किया. मेले में हजारों की तादाद में युवा नौकरी की तलाश में पहुंचे. मगर क्या उनकी ये तलाश यहां पहुंच कर खत्म हुई? पढ़िए ये रिपोर्ट.जॉब फेयर: 21 हजार ने दिया इंटरव्यू, महज 6600 हुए सलेक्ट

दिल्ली के रोजगार मेले में युवाओं ने जमकर हिस्सा लिया. मगर ज्यादातर युवा परेशान ही नजर आए. युवाओं का कहना है कि हम काफी उम्मीदों से यहां आए थे. मगर यहां ग्रेजूएट युवाओं को अपने प्रोफाइल के हिसाब से नौकरी नहीं मिली.

बीसीए, बीबीए, BCOM, BTEC हर फील्ड से युवा यहां रोज़गार की तलाश में आए थे. मगर रोजगार मेले में ज़्यादातर नौकरियां कॉल सेंटर और sales में थीं. इन नौकरियों को पाने के लिए 12वीं या 10वीं पास होना ही काफी है.

89 कंपनियों ने लिया हिस्सा

दिल्ली सरकार का ये तीसरा रोज़गार मेला है. इस बार 89 कम्पनियों ने इसमें हिस्सा लिया. मगर कितने युवाओं को नौकरी मिली यह साफ नहीं हो सका.  

2015 का हाल

वर्ष 2015 में 12000 युवाओं ने इंटरव्यू दिए. इनमें 7700 लोगों को शॉर्टलिस्ट किया गया. शॉर्ट लिस्ट का मतलब ये नहीं की उन्हें नोकरी मिल ही गई.

2017 के आंकड़े

40 हजार युवाओं ने इंटरव्यू दिए जिसमें से 12 हज़ार लोगों को शॉर्टलिस्ट किया गया.

2018 के आंकड़े

21 हज़ार लोगों ने इंटरव्यू दिए और 6600 लोगों को शॉर्टलिस्ट किया गया.

BTECH के बावजूद दिव्यंगों को नहीं मिली नौकरी

मेले में दो बेरोजगार युवा नौकरी की तलाश करते हुए नजर आए. इनका नाम है गौतम राजभर जो की दिल्ली के ही रहने वाले हैं. गौतम ने दो साल पहले BTECH किया था. मगर गौतम को कहीं भी नौकरी नहीं मिली. गौतम के साथ सबसे बड़ी समस्या ये भी है की वह दिव्यांग हैं. उन्हें लग रहा था कि दिव्यांग कोटे के तहत कहीं न कहीं नौकरी जरूर मिल जाएगी, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

गौतम का कहना था की दिव्यांग होने के बाद भी कहीं सरकारी नौकरी नहीं मिली. मेरे घर में 5 लोग हैं. बाक़ी भाई पढ़ाई कर रहें है. मैंने BTECH किया. मुझसे उम्मीदें हैं घर वालों को.

कुछ ऐसा ही हाल नोएडा के रहने वाले जशवंत सिंह का है. जिन्होंने 2014 में बीसीए किया था. मगर कहीं भी ढंग की नौकरी नहीं मिली. दिव्यांग कोटे में भी सरकारी नौकरी नहीं मिली.

वहीं जशवंत सिंह का कहना है मुझे नौकरी नहीं मिली. चार साल हो गए हैं. अब देखते है यहां कुछ हो जाए तो. दिव्यांग कोटे से होने का कोई फ़ायदा नहीं मिला.

ये तो बात हुई दिव्यंगों की. जिन्हें दिव्यांग कोटे का किसी भी सरकारी नौकरी में कोई मदद नहीं मिली. मगर कुछ ऐसे भी बेरोजगार युवा है जो ख़ुद दिल्ली से है. दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई चार साल पहले ही पूरी कर चुके हैं, मगर अब तक अच्छी नौकरी नहीं मिली. लिहाज़ा नौकरी की तलाश करते करते इस रोज़गार मेले में पहुंच गए.

वहीं डॉली ने 2014 में बीसीए किया था. उनका कहना है कि मार्केट में नौकरियां नहीं है. मजबूरी में कुछ तो करना ही पड़ता है. अब उम्मीद है यहां कुछ मिल जाए.

पकौड़े बेचने के लिए नहीं की पढ़ाई

वाकई में हर किसी को उम्मीद है कि उन्हें यहां नौकरी किसी भी कंपनी में लग ही जाएगी. आप खुद इस लाइन को देखिए. यहां सभी लोग इंटरव्यू दे रहें है. हर कोई इस इंतजार में खड़ा है की उनका नंबर कब आएगा. इस वक़्त देश में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पकौड़े बेचने को रोज़गार बताने को लेकर भी काफ़ी आक्रोश है. युवाओं का कहना है कि उन्होंने क्या पकौड़े बेचने के लिए इतनी पढ़ाई की है. प्रधानमंत्री का बयान निंदनीय है. पीएम सिर्फ़ बोलते अच्छा हैं, करते कुछ नहीं.

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