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बार-बार बीमार पड़े बच्चा तो हो सकती है इम्यून डिफीशेंसी

‘भारत में करीब 10 लाख बच्चे ऑटो इम्यून डिफीशें से प्रभावित हैं। इसमें शरीर के इम्यून सिस्टम का हिस्सा ठीक रूप से कार्य नहीं करता है और अलग-अलग अंगों को प्रभावित करता है। इससे रूमेटाइड आर्थराइटिस, टाइप 1 डायबीटीज, थायरॉइड, ल्यूपस, सोराइसिस जैसी कई बीमारियां होती हैं।’ लखनऊ स्थित केजीएमयू में कैलिफॉर्निया से आए प्रफेसर सुधीर गुप्ता ने ये बातें कही। उन्होंने बताया कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली हमारे शरीर को बीमारियों से बचाती है और खतरनाक रोगों से शरीर की रक्षा भी करती है, लेकिन इस ऑटो इम्यून डिफीशेंसी से प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है।बार-बार बीमार पड़े बच्चा तो हो सकती है इम्यून डिफीशेंसी

1200 में से एक नवजात को होती है यह समस्या
केजीएमयू के गठिया रोग विभग के विभागाध्यक्ष प्रो. सिद्धार्थ कुमार ने बताया कि इस बीमारी के प्रति लोगों के साथ ही चिकित्सकों को भी जागरूक होने की जारूरत है, जिससे मरीज को सही उपचार मिल सके। उन्होंने बताया कि इस बीमारी से 1200 में से 1 बच्चा पीड़ित होता है। इस बीमारी से ग्रसित ज्यादातर बच्चों की मृत्यु जन्म के एक वर्ष के भीतर हो जाती है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि इस बीमारी की पहचान समय रहते नहीं हो पाती है। ऐसे में अगर बच्चा बार-बार बीमार पड़े तो नजरअंदाज न करें। 

ये हैं लक्षण 
जोड़ों में दर्द होना, मांसपेशियों में दर्द और कमजोरी होना, वजन में कमी होना, अनिद्रा की शिकायत होना, दिल की धड़कन अनियंत्रित होना, त्वचा का अतिसंवेदनशील होना, त्वचा पर धब्बे पड़ना, दिमाग ठीक से काम न करना, ध्यान केंद्रित करने में समस्या, हमेशा थका हुआ महसूस करना, बालों का झड़ना, पेट में दर्द होना, मुंह में छाले होना, हाथ और पैरों में झुनझुनी होना या सुन्न हो जाना, रक्त के थक्के जमना.. ये सब इस बीमारी के लक्षण हैं। 

डॉक्टर से करें संपर्क 
डॉ. सिद्धार्थ ने बताया कि अगर किसी बच्चे को बार-बार संक्रमण हो रहा है या फिर संक्रमण हो जाने के बाद ऐंटीबायॉटिक दवाओं का असर नहीं हो रहा है तो तत्काल बच्चे को विशेषज्ञ के पास ले जाना चाहिए अन्यथा बच्चे की जान को भी खतरा हो सकता है। यह संक्रमण फेफड़े से लेकर जोड़ों तक में हो सकता है। इस तरह की समस्या होने पर दवा का भी असर नहीं होता है। इस रोग में बच्चे आर्थराइटिस से भी पीड़ित हो सकते हैं। यह बीमारी हिमोफिलिया की बीमारी से 4 गुना ज्यादा कॉमन है। कुछ मामलों में यह बीमारी व्यस्क हो जाने के बाद पता चलती है। 

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