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बेटी के आइडिया पर पिता ने उठाया था ये कदम, मन की बात में पीएम मोदी ने किया जिक्र

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में चंडीगढ़ के संजय राणा का जिक्र किया। दरअसल, उन्होंने कोविड वैक्सीन लगवाने वालों को फ्री में छोले भटूरे खिलाने की घोषणा की थी। उन्हें ये आइडिया उनकी बेटी ने दिया था। रविवार को समाचार एजेंसी ANI से बात करते हुए राणा ने कहा कि उन्होंने लगभग दो महीने पहले पहल शुरू की थी। मैं एक दिन में 25 से अधिक लोगों को मुफ्त भोजन देता हूं। मेरा नाम लेने के लिए मैं मोदी जी को धन्यवाद देता हूं।

रविवार को ‘मन की बात’ की 79वीं कड़ी में पीएम मोदी ने कहा, ‘चंडीगढ़ के सेक्टर 29 में संजय राणा जी फूड स्टॉल चलाते हैं और साइकिल पर छोले-भटूरे बेचते हैं। एक दिन उनकी बेटी रिद्धिमा और भतीजी रिया एक आइडिया के साथ उनके पास आईं। दोनों ने उनसे कोविड वैक्सीन लगवाने वालों को फ्री में छोले-भटूरे खिलाने को कहा। वे इसके लिए खुशी-खुशी तैयार हो गए। उन्होंने तुरंत ये अच्छा और नेक प्रयास शुरू भी कर दिया। संजय राणा जी के छोले-भटूरे मुफ्त में खाने के लिए आपको दिखाना पड़ेगा कि आपने उसी दिन वैक्सीन लगवाई है। वैक्सीन का मैसेज दिखाते ही वे आपको स्वादिष्ट छोले-भटूरे दे देंगे। कहते हैं, समाज की भलाई के काम के लिए पैसे से ज्यादा, सेवा भाव, कर्तव्य भाव की ज्यादा आवश्यकता होती है। हमारे संजय भाई, इसी को सही साबित कर रहे हैं।

पीएम मोदी ने एक और प्रयास का जिक्र करते हुए कहा, ‘मुझे उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किए गए एक प्रयास के बारे में भी पता चला है। कोविड के दौरान ही लखीमपुर खीरी में एक अनोखी पहल हुई है। वहां महिलाओं को केले के बेकार तनों से फाइबर बनाने की ट्रेनिंग देने का काम शुरू किया गया। वेस्ट में से बेस्ट करने का मार्ग। केले के तने को काटकर मशीन की मदद से बनाना फाइबर तैयार किया जाता है जो जूट या सन की तरह होता है। इस फाइबर से हैंडबैंग, चटाई, दरी, कितनी ही चीजें बनाई जाती हैं।

इससे एक तो फसल के कचरे का इस्तेमाल शुरू हो गया, वहीं दूसरी तरफ गांव में रहने वाली हमारी बहनों-बेटियों को आय का एक और साधन मिल गया। बनाना फाइबर के इस काम से एक स्थानीय महिला को चार सौ से छह सौ रुपये प्रतिदिन की कमाई हो जाती है। लखीमपुर खीरी में सैकड़ों एकड़ जमीन पर केले की खेती होती है। केले की फसल के बाद आम तौर पर किसानों को इसके तने को फेंकने के लिए अलग से खर्च करना पड़ता था। अब उनके ये पैसे भी बच जाते है यानि आम के आम, गुठलियों के दाम ये कहावत यहाँ बिल्कुल सटीक बैठती है।

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