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भारत की आजादी से कुछ ऐसे जुड़ा है काबुल कनेक्शन, पढ़ें ये रोचक जानकारी

हमारे पड़ोसी देश अफगानिस्तान ने भी भारत की आजादी में एक ऐसा योगदान दिया है जिसके लिए हिंदुस्तान का इतिहास सदैव उसका ऋणी रहेगा। दरअसल, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद के अनन्य दोस्त सुखदेव का पैतृक रिश्ता काबुल शहर से ही रहा है। सुखदेव के पूर्वज काबुल के टापुर शहर के मूल निवासी थे। जिस समय मुहम्मद गजनी ने भारत पर आक्रमण किया था, तब सुखदेव के पूर्वजों ने उसके खिलाफ जबरदस्त लड़ाई लड़ी। इसी लड़ाई के दौरान अपने परिवार की औरतों-बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें लुधियाना के मोहल्ला नौघरा में राजनीतिक शरण लेनी पड़ी थी। भारत की आजादी से कुछ ऐसे जुड़ा है काबुल कनेक्शन, पढ़ें ये रोचक जानकारी

गजनी के साथ हुई लड़ाई में परिवार के कई पुरुषों को वीरगति प्राप्त हो गई थी, लेकिन बचे हुए लोगों ने लड़ाई के बाद काबुल वापस जाने की बजाय लुधियाना को ही अपना घर बना लिया। इसी लुधियाना के नौघरा में बालक सुखदेव ने जन्म लिया। सुखदेव के दादा भाई अशोक थापर ने बताया कि टापुर शहर के होने के कारण शुरुआत में लोग उनके नाम के पीछे टापुर लगाते थे जो कालांतर में थापर बन गया। वे जन्म से क्षत्रिय थे जिसके अपभ्रंश होकर बाद में खत्री हो गया। 

आशोक थापर ने अमर उजाला को बताया कि जिस मकान में सुखदेव का जन्म हुआ वह आज भी लुधियाना में सुरक्षित है। यह इस शहर का तीर्थस्थल बन गया है और लुधियाना आने वाला हर देशी-विदेशी पर्यटक उनका यह घर जरूर देखता है। उन्होंने बताया कि यह 70 गज में दो कमरों का बना हुआ मकान है। सुखदेव अपने जन्म के छः साल बाद ही लाहौर चले गए थे जहां बाद में उनकी मुलाकात भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों से हुई थी। 

अशोक थापर के मुताबिक जब सुखदेव का परिवार लाहौर जाने लगा था, तब यह मकान किरायेदारों को दे दिया था जिसमें वे साल 2007 तक रहते रहे। बाद में जब उन्होंने सुखदेव का घर किराएदारों से खाली कराने का प्रयास किया तो उन्होंने इसे खाली करने से इनकार कर दिया। लेकिन शहर के सम्भ्रान्त लोगों के द्वारा इस घर का महत्त्व बताने के बाद वे इसे खाली करने के लिए राजी हो गए। इसके बदले में उन्हें लुधियाना शहर में ही पांच लाख रुपये में एक दूसरा घर खरीदकर देना पड़ा। 

इसके बाद 22 मार्च 2007 को सुखदेव का मकान किराएदारों से मुक्त कराया जा सका। क्रांतिकारी सुखदेव के ये वंशज अब सोने के गहने ढलने के काम करते हैं। लेकिन अपने व्यापार को आगे बढ़ाने के साथ-साथ वे अपने समृद्ध इतिहास को भी बचाए रखने का प्रयास कर रहे हैं। क्रांतिकारी सुखदेव की याद में उन्होंने ‘शहीद सुखदेव थापर मेमोरियल ट्रस्ट’ बना रखा है। सुखदेव के दादा भाई अशोक थापर पिछले 30 साल से इस ट्रस्ट के चेयरमैन हैं। ट्रस्ट में उन्हें लेकर कुल 9 सदस्य हैं जो सुखदेव के परिवार से सम्बंधित हैं। वे हर साल सुखदेव की याद में कई कार्यक्रम कराते हैं। 

अशोक थापर ने कहा कि साल 2012 में आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट ऑफ इंडिया ने इस मकान को अपने कब्जे में ले लिया। इसके खिलाफ उन्हें हाई कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। हाई कोर्ट की डबल जजों की बेंच ने उनके परिवार को भी इस मकान पर अधिकार दे दिया। उन्हें इस बात की गहरी निराशा है कि कांग्रेस हो या बीजेपी, सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन कई वायदे करने के बाद भी सुखदेव के घर तक जाने के लिए सड़क नहीं बनाकर दे सका। आज सुखदेव के इस ऐतिहासिक महत्व के घर पर जाने के लिए लोगों को तंग गलियों से गुजरकर जाना पड़ता है। 

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