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मकर संक्रांति पर तत्तापानी में तुलादन व स्नान से मिलती है कष्टों से मुक्ति


मंडी : मकर संक्रांति के मौके पर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के तत्तापानी पहुंच जाएं। यहां स्नान व तुलादान करने से तीनों ग्रहों के कष्टों से निजात मिलेगी। मंडी जिले का तत्तापानी मंडी-शिमला जिले की सीमा पर करसोग उपमंडल में सतलुज नदी किनारे स्थित है। यह स्थान सतलुज के किनारे से फूटते गर्म सल्फरयुक्त पानी के लिए मशहूर हैं। मकर संक्रांति पर यहां तीन दिन का पर्व होता है। इसमें मंडी, शिमला, सोलन, बिलासपुर जिलों के अलावा प्रदेश के अन्य जिलों व देश भर के कई प्रांतों से भी लोग पुष्य स्रान करने व अपने ग्रहों के निवारण के लिए तुलादान करवाने आते हैं। लोहड़ी पर यहां हर साल 12 से 14 जनवरी तक मेले का आयोजन होता है। सैकड़ों की तादाद में पांडे सतलुज नदी किनारे विशाल परिसर में अपने अपने तराजू लगाकर तीन दिन तक तुलादान करवाकर लोगों के ग्रहों का टाला करते हैं। अपने आप में यह एक अनूठा नजारा होता है। बाहरी दुनिया के लोगों के लिए यह कुदरत के आठवें आश्चर्य से कम नहीं लगता है। लगे भी क्यों नहीं, एक तरफ खून जमा देने वाली सतलुज की ठंडे पानी की तेज धारा तो उसी की बगल में जहां तहां जमीन से फूटते खौलते पानी के स्त्रोत, जो किसी को भी हैरत में डालते है। सदियों से लोग यहां आकर मकर सक्रांति पर स्नान करते हैं व अपने को धन्य मानते हैं। मकर संक्रांति और लोहड़ी पर तीन दिन चलने वाले इस स्रान के बाद 26 जनवरी व बैशाखी के दिन भी इसी तरह का स्रान होता है और इन दिनों में सबसे रोचक रहता है कि ग्रहों का टाला करना। यही कारण है कि इन तीनों अवसरों पर सैकड़ों की तादाद में पांडे यानी पंडित यहां सतलुज के किनारे पहुंचते हैं व बड़े-बड़े तराजू गाड़ कर अपने-अपने शिविर लगाते हैंं। इन शिविरों में ग्रह टालने के लिए करवाए जाने वाले तुलादान की हर सामग्री मौजूद रहती है। जिला मुख्यालय मंडी से 160 किलोमीटर दूर व शिमला से 55 किलोमीटर दूर करसोग मार्ग पर बसे तत्तापानी में इस दौरान तिल धरने लायक जगह भी नहीं बचती है। लोगों की आमद को देखते हुए हजारों दुकानदार तो कई भागों से आकर यहां जुट जाते हैं और सबसे रोचक नजारा तो सतलुज की धारा के साथ बने क्षेत्र में नजर आता है जहां पर हजारों लोग जमीन से फूटते गर्म पानी के स्त्रोतों से निकलने वाले पानी में स्रान करने का होता है। नदी किनारे रेत के बीच सैकड़ों तंबू सज जाते हैं। इनके बीच में इलाके के पांडे अपना अपना तराजू गाड़ कर बैठते हैं। इन तराजूओं की बगल में रखा रहता है किसी को भी शनि, राहु, केतू या फिर दूसरे ग्रहों से बचाने का सामान। इसमें टोकरी के बीच सात अनाजों से भरी हुई गठरियां, तेल, साबुन, लोहा व सरसों आदि। तुलादान करवाने के लिए पंडित जिन्हें स्थानीय भाषा में पांडा कहा जाता है, तैयार बैठे होते हैं। घर में यदि ग्रहों का टाला किसी ने करवाना हो तहां तैयारी के लिए कई दिन लग जाते हैं, तुलादान वाले दिन भी घंटों समय पूजा पाठ में लगता है, 15-20 हजार रुपये भी लग जाता है, मगर तत्तापानी में ऐसा नहीं है। यहां हर स्तर का तुलादान हो जाता है। जिसकी जेब जितनी इजाजत दे, उतने में काम बन जाता है, यही कारण है कि लोग साल भर तत्तापानी पर्व का इंतजार करते हैं और पहुंच जाते हैं यहां पर, क्योंकि यहां पर तुलादान सौ रुपये से लेकर हजार दो हजार में भी हो जाता है। करसोग उपमंडल के अलावा सोलन के अर्की उपमंडल से भी आए पांडे एक दम तैयार मिलते हैं। पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है, काली टोपी व काले वस्त्र धारण करवाए जाते हैं, फिर हाथ में लोहे की छुरी देकर शनि को भगाने के लिए तराजू के डंडे को उस छुरी से बींध दिया जाता है और दूसरी क्रियाएं भी करवाई जाती हैं।

तत्तापानी में गर्म पानी के चश्मों की उत्पत्ति के बारे में तरह-तरह की किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। जाने-माने साहित्याकार मुरारी शर्मा का कहना है कि तत्तापानी के बारे में एक किंवदंती ये है कि प्राचीनकाल में इस क्षेत्र में परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि तपस्या कर रहे थे। उन्होंने इस तपोस्थली में गर्म पानी के चश्मे प्रकट किए। एक अन्य किंवदंती ये भी है कि यहां पर जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम स्नान कर रहे थे। उन्होंने जब अपने वस्त्र निचोड़े तो यहां पर गर्म पानी हो पैदा हो गया। यहां गंधक के पहाड़ हैं। इनसे गैस बनती है, उनसे भी गर्म पानी निकलता है। मकर संक्रांति पर तत्तापानी में अब तीन साल से खुले में न तो संक्रांति स्नान और न ही तुलादान हो रहा है। गर्म पानी के चश्मे कौल डैम के जलाशय में जलमग्न हो गए हैं। तत्तापानी में कभी एक माह पहले संक्रांति की तैयारियां शुरू हो जाती थी, लेकिन अब यहां गर्म पानी के चश्में दूर-दूर तक नजर नहीं आते। करीब 150 फुट पीपल का पेड़ और भगवान परशुराम का मंदिर कौल डैम के पानी में समा गया है। देश-प्रदेश में इस तीर्थ स्थल को छोटा कुंभ के नाम से भी जाना जाता था। श्रद्धालु जगह-जगह खिचड़ी और घी का भंडारा लगाते थे। अब बंद कमरे व सड़क किनारे तुलादन व पाइप से स्नान हो रहा है। बोर वैल से पानी निकाल पानी द्वारा डूब क्षेत्र से दूर पहुंचाया गया है। मकर संक्रांति पर लोग अब इन्हीं पाइपोंं के नीचे स्नान करते हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना। सूर्य का दूसरी राशि में प्रवेश होने का वक्त इतना लघु होता है कि उसे पकड़ पाना लगभग नामुकिन है। देवी पुराण के मुताबिक जब एक स्वस्थ और सुखी मनुष्य एक बार पलक झपकता है तो उसका तीसवां काल तत्पर कहलाता है। तत्पर का सौवां भाग त्रुटि कहलाता है। त्रुटि के सौंवे भाग में सूर्य दूसरी राशि में प्रवेश करता है। यह प्राकृतिक घटना बेहद खामोशी से होती है। इसीलिए इसका महत्व है। मकर संक्रांति से सूर्य की उत्तरायण गति आरंभ होती है और पवित्र दिन शुरू हो जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान और दान से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

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