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मिलिए उन छह लोगों से जिन्होंने समलैंगिकता के लिए खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच मंगलवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनवाई कर रहा है, जो समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखता है। समलैंगिकता अपराध नहीं है। इसे साबित करने के लिए देशभर के 35 याचिकार्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।मिलिए उन छह लोगों से जिन्होंने समलैंगिकता के लिए खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

आज हम उनके बारे में जानते हैं जिन्होंने समलैंगिकता के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं।

गौतम यादव 27 साल के हैं और दिल्ली में हमसफर ट्रस्ट नाम के गैर सरकारी संस्थान में काउंसलर हैं। उनकी याचिका उस धमकाने के बारे में बात करती है जिसका सामना उन्होंने स्कूल में किया था, उन्हें 15 साल की उम्र में स्कूल से बाहर निकलने पर मजबूर होना पड़ा था।
2015 में वह शारीरिक उत्पीड़न के शिकार हुए वहीं वह अपने रिश्तेदारों के बीच शादी न करने की वजह से उपहास का शिकार होते रहे। एक प्रतिबद्ध रिश्ते में रहने के बावजूद उन्हें पता चला कि वह एचआईवी पोजिटिव हैं। फिर उन्होंने सार्वजनिक तौर पर लोगों को बताया कि वह समलैंगिक के साथ रहते हैं। गौतम कहते हैं कि उन्होंने याचिका इसलिए दायर की क्योंकि वह इस मामले को उठाना चाहते हैं जिससे वह खुद गुजरे हैं। और वह मामले को राष्ट्र के सामने लाना चाहते हैं।

रितु डालमिया 45 साल की हैं। उनकी पहचान एक लेस्बियन की है। वह एक रेस्टोरेंट चेन दिवा की मालकिन हैं जिसे खान-पान के कई सम्मान मिल चुके हैं। रितु कोलकाता में जन्मी वह अपनी 20 साल की उम्र में लंदन चली गईं थी जहां उन्होंने एक रेस्टोरेंट खोला।
वह 1999 में भारत लौंटी और उन्होंने सेक्सन 377 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। रितू कहती हैं कि जब आप खुद याचिका दायर करते हैं तो आप खुद को अपराधी घोषित कर चुके होते हैं। मैंने सोचा कि अगर मैं इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाउंगी तो मैं किसी तरह की शिकायत करने की अधिकारी भी नहीं रह जाउंगी।

केशव सूरी ललित सुरी हॉस्पिटैलिटी ग्रुप के एक्सक्यूटिव डायरेक्टर हैं। उन्होंने इसी साल इस मामले में याचिका दायर की है। उनका कहना है कि वर्ल्ड बैंक के अनुमान के तहत एलजीबीटी समुदाय करोड़ों डॉलर देश में खराब कर रहा हैं। अब समय आ गया है जब समुदाय को नजरअंदाज करना रोकना होगा। यह देश के प्रोडक्टिव ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है।

उरवी 21 साल की हैं और वह आईआईटी मुंबई में रिसर्ट इंटर्न हैं। उरवी आंध्र प्रदेश के अनंतपुर से आती हैं उन्होंने याचिका अलग नाम से फाइल की है। वह खुद भी ट्रांसजेंडर हैं और अपने बचपन में काफी गरीबी देखी है। उरवी कहती हैं कि सेक्सन 377 किसी भी इंसान को उसकी फीलिंग्स को रोकने के लिए दबाव नहीं डाल सकती है। अगर 377 धारा खत्म हो जाती है तो आने वाली पीढी के लिए यह बहुत अच्छा होगा।

आरिफ जफर लखनऊ में एनजीओ भरोसा चलाते हैं। वह 47 साल के हैं। उन्हें सेक्शन 377 के तहत जुलाई 2001 में गिरफ्तार किया गया था। वह करीब 47 दिनों तक जेल में रखे गए थे। इस दौरान जेल में उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित किया गया। 17 साल बाद उन्होंने एक बार फिर मामले को उठाया और समाज को बताया कि वह एक गे हैं। जफर कहते हैं कि धारा 377 के तहत किसी को उस तरह की प्रताड़ना का सामना न करना पड़े जैसा उन्हें झेलना पड़ा था।

कर्नाटक के अक्कई पद्मशाली 32 साल की हैं और वह ट्रांसजेंडर के अधिकारों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। इसके लिए उन्हें कर्नाटक सरकार से राज्योत्व सम्मान से सम्मानित किया जा चुका हैं। अक्कई ने दो अन्य महिलाओं के साथ मिलकर 2016 में धारा 377 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि कानून के दायरे की बात कर लोगों की निजी जिंदगी में दखअंदाजी की जा रही है।
पद्मशाली कहती हैं कि वह तब तक आराम से नहीं बैठेंगी जब तक धारा 377 खत्म नहीं कर दिया जाता। पुलिस कौन होती है हमें यह बताने वाली की क्या अप्राकृतिक है। समाज कौन होता है हमारे शारीरिक रिश्तों पर पाबंदी लगाने वाला। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते मैं देश में इस तरह के कानून को बर्दाश्त नहीं करूंगीं।

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