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राज्यसभा चुनाव में जीत के साथ यूपी ने बनाया इतिहास

राज्यसभा चुनाव में जीत के साथ उप्र ने एक इतिहास भी बनाया है। अरुण जेटली के यहां से राज्यसभा सदस्य चुने जाते ही अब संसद के दोनों सदनों का नेतृत्व यूपी के हाथ आ गया है। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी यूपी से आते हैं। आजाद भारत में ऐसा संयोग इससे पहले कभी नहीं रहा। जेटली न सिर्फ देश के वित्तमंत्री हैं बल्कि राज्यसभा में नेता सदन भी हैं। प्रधानमंत्री और लोकसभा में नेता सदन नरेन्द्र मोदी भले ही गुजरात के हों लेकिन उप्र से सांसद हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कानपुर के हैं।राज्यसभा चुनाव में जीत के साथ यूपी ने बनाया इतिहास, दोनों सदनों का नेतृत्व भी मिला

 इससे पहले प्रधानमंत्री और दोनों सदनों के नेता तो एक साथ यूपी के रहे लेकिन ऐसा मौका नहीं आया कि दोनों सदनों के नेता और सदनों के संरक्षक के रूप में राष्ट्रपति पद की कुर्सी पर भी इसी प्रदेश का व्यक्ति हो। इससे राष्ट्रीय राजनीति में उप्र के महत्व और दबदबे को समझा जा सकता है। यह भी पता चलता है कि इसे आखिर राष्ट्रीय राजनीति तय करने वाला राज्य क्यों कहा जाता है?

तीन दशक बाद इतिहास दोहराया
अगर बात सिर्फ प्रधानमंत्री तथा लोकसभा व राज्यसभा के नेता सदन की करें तो तीन दशक बाद उप्र ने यह इतिहास दोहराया है। इससे पहले प्रदेश को यह गौरव अंतिम बार 1988 में मिला था। तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और लोकसभा में नेता सदन भी।

राज्यसभा में नेता सदन की कुर्सी पर उप्र के ही नारायण दत्त तिवारी बैठे थे। पहली बार प्रदेश को यह सौभाग्य 1954 में मिला था। जब देश के प्रधानमंत्री व लोकसभा के नेता सदन जवाहरलाल नेहरू थे। वह यूपी से ही सांसद थे। राज्यसभा में नेता सदन लालबहादुर शास्त्री थे।

 इसके बाद 1955 से 1961 तक उप्र के साथ यह संयोग जुड़ा रहा। नेहरू प्रधानमंत्री व लोकसभा में नेता सदन थे। राज्यसभा में नेता सदन की कुर्सी गोविंद बल्लभ पंत के पास रही। फिर 1971 से 1977 तक दोनों सदनों में नेता सदन की कुर्सी यूपी के पास रही।

लोकसभा में नेता सदन व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी जबकि राज्यसभा में उमाशंकर दीक्षित और कमलापति त्रिपाठी नेता सदन रहे। जनता पार्टी की सरकार में चौधरी चरण सिंह 1979 तक प्रधानमंत्री व लोकसभा में नेता सदन थे जबकि कृष्णचंद पंत राज्यसभा में नेता सदन रहे।

 

 

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