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आईसीएमआर रिपोर्ट में हुआ खुलासा, वैक्सिनेशन की डबल डोज के बावजूद 76 फीसदी लोगों को हुआ कोरोना

देश में कोरोना महामारी के खिलाफ वैक्सीनेशन ड्राइव चलाया जा रहा है। इस बीच टीकाकरण और संक्रमण को लेकर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने पहली स्टडी जारी की है। इस अध्ययन के मुताबिक, वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद 76 प्रतिशत लोग इस बीमारी से संक्रमित हुए। जिनमें से 83 फीसदी से अधिक लोगों में लक्षण नहीं पाये गये। वहीं तकरीबन 10 फीसद लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।

मेडिकल जर्नल रिसर्च स्कवायर में प्रकाशित इस स्टडी रिपोर्ट के अनुसार, भुवनेश्वर स्थित आईसीएमआर की क्षेत्रीय लैब में 361 लोगों के सैंपल जांच के लिए भेजे गए थे, जिसमें टीके की दोनों खुराक लेने के बाद 274 लोग कोरोना से संक्रमित मिले। वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के 14 दिन बाद यह लोग कोरोना वायरस की चपेट में आए। ये सैंपल ओडिशा के विभिन्न हेल्थ सेंटर से 1 मार्च से 10 जून 2021 के बीच लिये गये थे।

इस अध्ययन में पता चला कि पूर्ण टीकाकरण के बाद 76 फीसदी लोग इस महामारी की चपेट में आये। बीमार लोगों में से केवल 16 फीसदी लोग ही बिना लक्षण वाले मिले। जबकि करीब 10 फीसदी को अस्पतालों में भर्ती करना पड़ा।

कोविशील्ड से जल्दी बनती है एंटीबॉडी

वही कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड और कोवै​क्सीन में से कौन ज्यादा प्रभावी है, इस चल रहे विवाद पर भी आईसीएमआर ने स्पष्ट किया है कि कोविशील्ड वैक्सीन लेने वालों में कोरोना वायरस के खिलाफ अधिक एंटीबॉडी बन रही हैं, जो 96.7% है जबकि कोवैक्सीन लेने वालों में एंटीबॉडी 77 फीसदी ही मिली हैं। सैंपल साइज में से 35 यानी 12.8% लोगों ने कोवै​क्सीन की दोनों खुराक लीं। जबकि 239 (87.2 फीसदी) ने कोविशील्ड की दोनों डोज ली थीं।

कोवै​क्सीन की दोनों डोज के बाद संक्रमित हुए लोगों में 43 फीसदी स्वास्थ्य कर्मचारी थे जो कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोविड वार्ड में कार्य कर रहे थे। वहीं कोविशील्ड लेने के बाद 10 % स्वास्थ्य कर्मचारियों में संक्रमण की पुष्टि हुई। दो खुराक लेने के बाद संक्रमण की चपेट में आने के बीच औसतन अवधि 45 दिन देखी गई है। जबकि कोवै​क्सीन लेने वालों में 33 दिन के दौरान ही संक्रमण हुआ है।

अध्ययन में कोरोना के कारण हॉस्पिटलाइज होने वालों की संख्या काफी कम रही, जो 27 थी, लेकिन इन मरीजों को अस्पतालों से डिस्चार्ज होने में कम से कम 11 दिन का वक्त लगा। और इस दौरान एक मरीज की मौत होने की खबर है।

डेल्टा प्लस को तीसरी लहर मानना जल्दबाजी 

कोरोना के डेल्टा प्लस वेरिएंट को लेकर नई-नई स्टडी सामने आ रही है। इसके खतरनाक होने की आशंकाओं के बीच आईसीएमआर ने एक राहत भरी बात कही है। आईसीएमआर के वैज्ञानिक का मानना है कि डेल्टा प्लस वैरिएंट को संभावित तीसरी लहर का कारण बताना फिलहाल जल्दबाजी होगी।

भारतीय परिषद चिकित्सा अनुसंधान के वैज्ञानिक और महामारी विज्ञान व संचारी रोग विभाग के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. सुमित अग्रवाल ने कहा कि अभी से तीसरी लहर के लिए चिंता करना सही नहीं होगा। डॉ. अग्रवाल का कहना है कि हर एमआरएनए वायरस की यह एक सामान्य प्रवृत्ति है कि उसका म्यूटेशन होगा। इसे रोका या नियंत्रित नहीं किया जा सकता। वायरस में म्यूटेशन होगा, उसका स्वरूप बदलेगा। जैसे-जैसे समय बीतेगा हम इसकी प्रवृत्ति के बारे में जानते जाएंगे। शुरुआत में अल्फा था, फिर डेल्टा और अब डेल्टा प्लस।

डॉ. सुमित के अनुसार, भविष्य में और म्यूटेशन देखे जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस वैरिएंट के तीन लक्षण हैं जिन्हें हमने अब तक पहचाना है। इसकी संचरण क्षमता उच्च स्तर की है। यह फेफड़ों की कोशिकाओं के प्रति उच्च आत्मीयता (हाई एफिनिटी) रखता है। इस पर मोनोक्लोनल एंटीबाडी थेरेपी बहुत ज्यादा कारगर नहीं है।

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