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सतलज-यमुना लिंक नहर मामले में केंद्र तटस्थ तो पंजाब नाखुश

supreme-court_landscape_1457114092सतलज-यमुना लिंक नहर को लेकर पंजाब एवं हरियाणा के बीच जारी तकरार पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह इस मामले में न्यूट्रल है। केंद्र सरकार के इस रुख पर पंजाब ने घोर आपत्ति जताई है।

न्यायमूर्ति अनिल आर दवे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि इस मामले में वह किसी भी राज्य के पक्ष में नहीं है।

केंद्र सरकार इस मामले में न्यूट्रल है। संविधान पीठ पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट, 2004 पर प्रेसिडेंशिल रेफरेंस को लेकर सुनवाई कर रही है। मामले में पंजाब सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने पीठ से कहा कि केंद्र सरकार को अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए, क्योंकि रेफरेंस कैबिनेट के फैसले पर हुआ था।

उन्होंने कहा कि जब तक केंद्र सरकार अपना रुख स्पष्ट नहीं कर देती तब तक पंजाब सरकार अपना पक्ष कैसे रखेगी। उन्होंने कहा कि इसे सिर्फ दो राज्यों के बीच का मसला नहीं है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ जल विवाद का मसला नहीं बल्कि नीतिगत मामला है।

पीठ ने बार-बार पंजाब सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए कहा है। लेकिन वरिष्ठ वकील ने कहा कि पंजाब पक्ष रखने को तैयार है लेकिन इससे पहले केंद्र सरकार का पक्ष जरूरी है। पीठ ने कहा कि निर्णय तो अदालत को लेना है, केंद्र को नहीं।

सुनवाई शुक्रवार को भी जारी रहेगी। सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से वहां की स्थिति के बारे में पूछा। सरकार ने जवाब दिया कि वहां अदालती आदेश के तहत यथास्थिति बनी हुई है।बीते 17 मार्च को सुप्रीम कोर्ट सतलज-यमुना लिंक नहर मामले में यथास्थिति बनाए रखने के लिए कहा था। इसके साथ ही पंजाब सरकार द्वारा कैनाल के लिए अधिग्रहीत जमीनों को किसानों को वापस लौटाने के प्रयास पर फिलहाल ब्रेक लग गया था।

संविधान पीठ ने पंजाब विधान सभा द्वारा पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट, 2004 को पास करने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। पीठ ने कहा था कि इस तरह का प्रयास अदालत द्वारा दिए आदेशों को विफल बनाने वाला है।

संविधान पीठ ने दोटूक कहा था कि इस स्थिति में कोर्ट मूकदर्शक नहीं रह सकता। संविधान पीठ ने केंद्रीय गृह सचिव, पंजाब के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को कोर्ट रिसीवर नियुक्त किया था, जो यह सुनिश्चित करेंगे कि कैनाल के ढांचे और इससे संबंधित संपत्तियों में किसी तरह का बदलाव न हो।

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