उत्तराखंड

हिमालयी क्षेत्र में मिले आग उगलते ज्वालामुखी के निशान

volcano-in-indonesia-1-1-1-55a8ffe74d122_exlstहिमालय क्षेत्र में ‘नॉर्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट’ के पास विज्ञानियों को ज्वालामुखी से निकलीं चट्टानें मिली हैं। जिसे देख वैज्ञानिक हैरत में हैं।
करोड़ों साल पहले एक ऐसा दौर भी देखा है जब यहां ज्वालामुखी फूटा करते थे। इसके निशान हिमालयी क्षेत्र अब भी अपनी गोद में संजोए हैं। पौड़ी जिले में श्रीनगर से आगे ‘नॉर्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट’ के पास जब विज्ञानियों को ज्वालामुखी से निकलीं चट्टानें दिखने से इसकी तस्दीक हुई है।
इस साक्ष्य ने एक बार फिर देश-दुनिया के विज्ञानियों की सोच को नया रास्ता दिखा दिया। विज्ञानियों के मुताबिक इन साक्ष्यों ने हिमालयी क्षेत्र के इतिहास का आठ से 12 करोड़ साल पुराना पन्ना खोल दिया है। जलवायु परिवर्तन ने वक्त के साथ हिमालयी क्षेत्र में क्या-क्या गुल खिलाए हैं, यह जानने के लिए पहली बार देश-विदेश के 37 विज्ञानी एक साथ हिमालयी क्षेत्र में निकले हैं।

इनमें 24 विदेशी हैं। हिमालयी जलवायु के जो नए साक्ष्य मिले हैं उन्हें देखकर 20-25 साल से इस क्षेत्र में काम कर रहे विज्ञानी चौंक गए। वोलकेनिक रॉक्स के साक्ष्यों ने हिमालय में ज्वालामुखी फूटने का नया चैप्टर तो खोला ही, साथ ही आठ से 12 करोड़ साल पहले की हिमालयी जलवायु का भी अंदाजा करा दिया।
हिमालयी भूगर्भ की पतली परतों की वजह से यहां ज्वालामुखी फूटा करते थे। जब परतें मोटी हुईं तो पहाड़ों की ऊंचाई बढ़ने लगी। इन साक्ष्यों से और राज उगलवाने के लिए देश-विदेश के विज्ञानियों ने सैंपल सुरक्षित कर लिए हैं। भूगर्भ विज्ञानियों के टीम लीडर वाडिया भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. राजेश शर्मा ने बताया कि अल्मोड़ा थ्रस्ट के उत्तर में वॉलकेनिक रॉक्स मिली हैं।
यहां मिले साक्ष्य आठ से 12 करोड़ साल पुराने हैं। इनकी जांच से करोड़ों साल पहले हिमालय के पर्यावरण का पता चलेगा। साथ ही ऋषिकेश से बयासी के बीच हिमालयी ‘आइस ऐज’ के साक्ष्य मिले हैं। यहीं पास के कौड़ियाला क्षेत्र में जीवन की शुरुआत के साक्ष्य उपलब्ध हैं। डॉ. शर्मा ने बताया कि यहां की चट्टानों के सैंपल से हिमालयी क्षेत्र में करोड़ों वर्षों के जूलोजिकल बदलाव का पता चलेगा।

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर जीबी पंत इंस्टीट्यूट अल्मोड़ा को सौ करोड़ का विशेष पैकेज दिया गया है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के विशेष सचिव और महानिदेशक वन डॉ. एसएस नेगी ने बताया कि जीबी पंत इंस्टीट्यूट को अलग से हिमालयी जलवायु पर शोध कार्य करने के लिए विशेष पैकेज दिया गया है। इसके साथ ही अन्य संस्थानों को पहले भी जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है।
इससे पहले केंद्र सरकार ने हिमालयी क्षेत्र के अध्ययन के लिए अलग से टास्क फोर्स का गठन किया था। इसमें हिमालयी क्षेत्र के वन्य जीवों के अध्ययन के लिए भारतीय वन्य जीव संस्थान को जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके अलावा वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान और जीबी पंत इंस्टीट्यूट अल्मोड़ा को भी जिम्मेदारी दी गई थी।

इन संस्थानों की टास्क फोर्स ने अध्ययन कार्य के लिए टीमों का गठन कर दिया है। विभिन्न संस्थानों की अगुवाई में गठित टास्क फोर्स के कार्य का पहला चरण पांच साल साल तक चलेगा। पांच सालों की अध्ययन रिपोर्ट मिलने के बाद अगला चरण शुरू होगा।
महानिदेशक नेगी ने बताया कि हिमालय क्षेत्र को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विचार मंथन चल रहा है। ऐसे में बड़े पैमाने पर शोध कार्य कराए जा रहे हैं। शोध कार्य प्रभावित न हों, इसके लिए केंद्र सरकार पूरी व्यवस्था कर रही है।

 

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