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रतन टाटा ने निजी परेशानियों का किया सामना, रचा इतिहास

download-7अगर आपको लगता है कि रुपया, शोहरत, नाम, प्रतिष्ठा से सब कुछ खरीदा जा सकता है, तो आप गलत है। इन सबकी अपनी अहमियत है। मगर, ये आपकी जिंदगी से दुखों, तकलीफों को दूर कर देंगे, ऐसा जरूरी नहीं है।

इसका जीता-जागता उदाहरण हैं रतन नोएल टाटा। उनका जन्म 28 दिसंबर 1937 को नवल टाटा और सोनू कमिसरियात के बेटे के रूप में हुआ और उन्हें एक छोटा भाई जिमी टाटा भी है।

टाटा का पालनपोषण उद्योगियों के परिवार में हुआ था। वे एक पारसी पादरी परिवार से जुड़े हुए थे। उनका परिवार ब्रिटिश कालीन भारत से ही एक सफल उद्यमी परिवार था। इस वजह से रतन टाटा को अपने जीवन में कभी भी आर्थिक परेशानियों का सामना नही करना पड़ा था।

माता-पिता का तलाक था पहला झटका

मगर, रतन जब महज सात साल के थे, तब उनके माता-पिता ने तलाक ले लिया। इसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी दादी नवजबाई टाटा ने किया। यह उनकी जिंदगी में शायद पहला बड़ा झटका था। रतन टाटा के पिता साइमन दुनोएर से दूसरी शादी कर ली, जिससे उन्हें एक और बेटा नोएल टाटा भी हुआ।

चार बार हुआ प्यार, लेकिन नहीं की शादी

सन् 1962 में वे अपने पारिवारिक व्यवसाय टाटा ग्रुप में शामिल हुए रतन टाटा आज भी अविवाहित पुरुष हैं। उन्होंने खुद ही बताया कि उन्हें चार बार प्यार हुआ, लेकिन वे कंवारे ही रहे। सबसे ज्यादा संजीदा वह उस वक्त थे, जब वह अमेरिका में काम करते थे।

इस दौरान उन्हें एक लड़की से प्यार हो गया था। टाटा और उनकी प्रेमिका ने शादी का फैसला लिया। मगर, उस समय 1962 का भारत-चीन युद्ध चल रहा था और रतन टाटा को भारत आना पड़ा।

उनकी प्रेमिका युद्ध के दौरान बने तनावपूर्ण माहौल के चलते भारत नहीं आ सकीं। आखिर में उनकी प्रेमिका ने किसी और से शादी कर ली और टाटा का घर बसाने का सपना पूरा नहीं हो सका।

ऐसे चमकाया टाटा परिवार का नाम

रतन टाटा कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से 1962 में संचारात्मक इंजीनियरिंग और 1975 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम का अभ्यास किया। उच्च शिक्षा के बाद वह भारत वापस आए और जेआरडी टाटा की सलाह पर उन्होंने IBM में जॉब की और 1962 में अपने पारिवारिक टाटा ग्रुप में शामिल हुए।

1971 में उनकी नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स के डायरेक्टर पद पर नियुक्ति की गई, जो उस वक्त बहुत खराब परिस्थिति से गुजर रहा था। कंपनी को 40 फीसद का नुकसान और 2 फीसद ग्राहकों के मार्केट शेयर खोने पड़े। मगर, रतन टाटा के उस कंपनी में शामिल होते ही कंपनी का ज्यादा मुनाफा हुआ और ग्राहक मार्केट शेयर को भी 2 से बढाकर 25 फीसद तक गए।

विरोध भी हुआ, लेकिन हार नहीं मानी

जेआरडी टाटा ने जल्द ही 1981 में रतन टाटा को अपने उद्योगों का उत्तराधिकारी घोषित किया, लेकिन उस समय ज्यादा अनुभवी न होने के कारण कई लोगों ने उत्तराधिकारी बनने पर उनका विरोध किया। मगर, टाटा ग्रुप में शामिल होने के 10 साल बाद उनकी टाटा ग्रुप के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की गई।

रतन टाटा के अध्यक्ष बनते ही टाटा ग्रुप में नई ऊंचाइयों को छुआ। उनकी अध्यक्षता में टाटा ग्रुप ने अपने कई अहम प्रोजेक्ट स्थापित किए और विदेशो में भी टाटा ग्रुप को नई पहचान दिलवाई।

देश में सफल रूप से उद्योग करने के बाद टाटा ने विदेशो में भी अपने उद्योग का विकास करने की ठानी, और विदेश में भी जैगुआर रोवर और क्रूस का अधिग्रहण किया। भारत में उनके सबसे प्रसिद्ध उत्पाद टाटा इंडिका और नैनो हैं। आज टाटा ग्रुप का 65 फीसद मुनाफा विदेशों से आता है।

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