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झारखंड में धर्म परिवर्तन के आरोप में 16 ईसाई प्रचारक गिरफ़्तार


रांची : झारखंड के दुमका में आदिवासियों के बीच कथित तौर पर धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश में जुटे 16 ईसाई धर्म प्रचारकों को गिरफ़्तार किया गया है। इन लोगों पर आरोप है कि शिकारीपाड़ा थाना क्षेत्र के सुदूर फूलपहाड़ी गांव में ग्रामीणों के बीच ग़ैरक़ानूनी ढंग से प्रचार करते हुए वो उन पर अपना धर्म बदलने के लिए ज़ोर दे रहे थे। दुमका के पुलिस अधीक्षक कौशल किशोर ने इसकी पुष्टि की है। झारखंड धर्म स्वातंत्र्य अधिनियिम 2017 की धारा चार और भारतीय दंड विधान की अलग-अलग धाराओं के तहत 16 लोगों को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया है, इनमें सात महिलाएं भी शामिल हैं। इस अधिनियिम के तहत आदिवासियों पर धर्म परिवर्तन कराने के लिए ज़ोर देने, उन्हें प्रलोभन देने या ग़ैर क़ानूनी तौर पर प्रचार-प्रसार करने के आरोपों में चार साल की सज़ा हो सकती है। ये कार्रवाई फूलपहाड़ी के ग्राम प्रधान तथा ग्रामीणों की शिकायत पर दर्ज की गई है।

गुरुवार को गांव के आदिवासियों ने इसका विरोध किया था और नहीं मानने पर सभी लोगों को अपने कब्ज़े में ले लिया था, अगले दिन उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया। शनिवार को कई हिंदू संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने गांववालों से बात की और धर्म परिवर्तन की कोशिशें रोकने के लिए ग्राम प्रधान का स्वागत किया। गिरफ़्तार किए गए लोगों में दस लोग दुमका की सीमा से सटे पश्चिम बंगाल के अलग-अलग जगहों से हैं जबकि छह लोग झारखंड में संथाल परगना के विभिन्न गांवों के रहने वाले है, ये लोग एक ईसाई संस्था से जुड़े बताए जा रहे हैं। पुलिस अधीक्षक कौशल किशोर ने बताया कि माइक, लाउडस्पीकर के साथ जिस गाड़ी से लोग फूलपहाड़ी गए थे, उसे ज़ब्त कर लिया गया है, इनके पास से धर्म से जुड़े पर्चे, कुछ साहित्य, पोस्टर भी बरामद किए गए हैं। उनका कहना है कि वो जल्दी ही इन्हें रिमांड पर लेकर संस्था के बारे में पूरी जानकारी जुटाने के बाद आगे की कार्रवाई करेंगे।

गिरफ़्तार किए गए लोगों ने स्वीकार किया है कि वे लोग धर्म परिवर्तन के लिए प्रचार कर रहे थे। ग़ौरतलब है कि झारखंड राज्य सरकार ने बीते साल ही धर्म स्वातंत्र्य क़ानून लागू किया है, जिसके बाद से धार्मिक मामलों में किसी किस्म का प्रचार प्रसार करने के लिए प्रशासन से अनुमति लेना अनिवार्य है और इस मामले में अनुमति नहीं ली गई थी। शिकारीपाड़ी प्रखंड में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता श्याम मरांडी बताते हैं कि फूलपहाड़ी गांव में 72 संथाली आदिवासी परिवार रहते हैं। गांव के आदिवासियों को इन बातों पर गुस्सा था कि धर्म परिवर्तन के लिए प्रचार के ज़रिए मांझी थान और जाहेर थान (आदिवासियों की आस्था, पूजा-पाठ की जगह) के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक बातें कही जा रही थीं, वो आदिवासियों की भावना को ठेस पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे। फूलपहाड़ी के ग्राम प्रधान रमेश मुर्मू ने कहा कि गुरुवार को ईसाई प्रचारक गांव पहुंचे, उन्होंने पहले माइक लगाकर धर्म से जुड़ा गाना गाया, फिर वो बताने लगे कि हमारे (आदिवासियों के) जाहेर थान में शैतान निवास करते हैं। ग्राम प्रधान का दावा है कि ये लोग धर्म परिवर्तन के लिए कई प्रकार का प्रलोभन दे रहे थे, इसी वजह से ग्रामीणों को गुस्सा आ गया। वो बताते हैं, हम लोगों ने प्रचारकों को गांव से बाहर जाने को कहा, लेकिन वो यह कहते रहे कि ऊपर से आदेश आया है, तब गांव वालों ने प्रचारकों को कब्ज़े में लिया और उनसे आदेश देने वालों को बुलाने को कहा। वो दावा करते हैं कि किसी के साथ किसी तरह की बदसलूकी नहीं की गई और उन्हें बाद में पुलिस के हवाले कर दिया गया था। मामला सामने आने के बाद इस इलाके के आदिवासी गांवों में पारंपरिक तरीके से ये अपील की जा रही है कि लोग प्रचारकों के झांसे में न आएं और उन्हें अपने गांवों में ना घुसने दें। इसी सिलसिले में रविवार को फूलपहाड़ी गांव के लोगों की एक बैठक हुई और इन हालातों पर चर्चा की गई।

इस इलाके के आदिवासियों के बीच धर्म परिवर्तन कराने की कोशिशें काफ़ी दिनों से जारी है, इस तरह की भी जानकारी मिली है कि दुमका के सुदूर गांवों में कई परिवारों ने हाल ही में फिर अपना धर्म परिवर्तन कर घर वापसी की है। शनिवार को दुमका में विश्व हिन्दू परिषद, हिन्दू क्रांति सेना और आरएसएस के कई प्रतिनिधियों ने फूलपहाड़ी गांव के लोगों से बात की, इस विरोध के लिए ग्राम प्रधान का माला पहनाकर स्वागत किया गया। विश्व हिंदू परिषद के संथाल परगना प्रमुख अरुण गुप्ता ने कहा, ईसाई मिशनरियों द्वारा भोले-भाले आदिवासियों को प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने की कोशिशों पर रोक लगाना ज़रूरी है। उन्होंने मिशनरी संस्थाओं की जांच कराने पर भी ज़ोर दिया। ईसाई महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रभाकर तिर्की कहते हैं कि झारखंड राज्य में ईसाई संस्थानों और चर्च को बदनाम करने की साजिश हो रही है, उनका आरोप है कि बीजेपी की सरकार आदिवासियों के बीच धर्म के नाम पर बंटवारे की राजनीति कर रही है।

झारखंड में ज़मीन की सुरक्षा तथा संवैधानिक अधिकारों को लेकर आदिवासी एकजुट हो रहे हैं और संघर्ष कर रहे हैं, इस तरह की कार्रवाई के ज़रिए उनकी इस ताक़त को कमज़ोर किया जा रहा है।कहीं पादरी की गिरफ़्तारी हो रही है, तो कहीं छापे पड़ रहे हैं, इन घटनाओं की निष्पक्षता से जांच होगी तो साबित हो जाएगा कि ये पूरी तरह से प्लांट की गई हैं। वहीँ झारखंड में प्रमुख विपक्षी दल जेएमएम के विधायक पाउलुस सुरीन भी कहते हैं, सरकार चर्च के पीछे पड़ी है और शिक्षा, स्वास्थ्य तथा मानवता के क्षेत्र में काम कर रहे ईसाइयों को परेशान किया जा रहा है। बीते महीने ही खूंटी के कोचांग गांव में पांच महिलाओं के साथ हुऊ सामूहिक बलात्कार की घटना में स्कूल के फ़ादर अल्फांसो आइंद को गिरफ़्तार कर जेल भेजा गया था। फ़ादर पर आरोप है कि उन्होंने घटना की जानकारी पुलिस को नहीं दी और अन्य कई बातें भी छिपाईं, उन लड़कियों को उसी स्कूल से अपराधियों ने कथित तौर पर अगवा किया था। इस बीच तीन दिन पहले रांची में मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी पर बच्चा बेचने का भी आरोप लगाया गया है, इस मामले में सेंटर की एक सिस्टर तथा एक महिला कर्मचारी को गिरफ़्तार कर जेल भेजा गया है।

झारखंड में खूंटी के एक गाँव में पांच युवतियों के साथ कथित गैंग रेप के मामले में पुलिस ने दो आरोपियों समेत स्कूल के फ़ादर को गिरफ़्तार किया था, एक अन्य घटना में दुमका और सिमडेगा में भी धर्म परिवर्तन स्वातंत्र्य विधेयक के तहत कई लोगों की गिऱफ्तारी की गई है। बीजेपी के सांसद और आदिवासी नेता समीर उरांव कहते हैं, कई मामलों में मिशनरी संस्थाओं और चर्च की भूमिका को लेकर संदेह तो है ही, अब इन सबकी पोल खुलने लगी है।

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