ये है प्रदोष व्रत की पूजा-विधि, महत्व और उद्यापन की पूरी विधि
प्रदोष व्रत देवाधिदेव भगवान शिव को प्रसन्न कर जीवन में सुख-समृद्धि और अनुकूलता के लिए किया जाता है। शिव पूरण में ऐसी कथा आती है कि महादेव को प्रदोष व्रत अत्यंत प्रिय है। इसलिए इस दिन संध्या काल में विधिपूर्वक शिव का अभिषेक करने समस्त रोगों का नाश होता है।
इस महीने प्रदोष व्रत 20 दिसंबर (गुरूवार) को पड़ रही है। शास्त्रों में इस दिन विशेष पूजन का भी विधान बताया गया है। भगवान शिव अपने भक्तों पर थोड़ी सी भक्ति पर भी प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं।
प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है जो प्रत्येक माह की त्रयोदशी को पड़ती है। शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी का विशेष महत्व है। प्रदोष व्रत इस माह 20 दिसंबर (गुरूवार) को है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष का व्रत रखने से जीवन की समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है।
प्रदोष व्रत का महत्व (Importance of Pradosh Vrat)
शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों के दान का पुण्य फल प्राप्त होता है। प्रदोष व्रत के विषय में पौराणिक मान्यता है कि जब चारों ओर अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी।
व्यक्ति अपने सतकर्मों को छोड़कर नीच काम करेगा। उस समय त्रयोदशी को प्रदोष का व्रत रखेगा और भगवान शिव की आराधना करेगा। उस मनुष्य पर शिव की विशेष कृपा बरसेगी। शिव पुराण के अनुसार जो व्यक्ति प्रदोष व्रत रखता है उसके जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष प्राप्त करता है।
प्रदोष व्रत से मिलने वाले फल
- शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग महत्व और फल प्राप्त होते हैं।
- रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
- सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
- मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
- गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है।
- शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है।
- संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए।
प्रदोष व्रत-विधि (Pradosh Vrat Vidhi)
- प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्योदय से पहले उठना चाहिए।
- नित्यकर्मों से निवृत होकर, भगवान भोलेनाथ का स्मरण करें।
- इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है।
- पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते हैं।
- पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है।
- अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है।
- प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है।
- इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए।
- पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए।
ऐसे करें प्रदोष व्रत का उद्यापन
- प्रदोष व्रत को को 11 या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद उद्यापन करना चाहिए।
- व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए।
- उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है।
- प्रात: जल्दी उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार किया जाता है।
- ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है।
- हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है।
- हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है और शान्ति पाठ किया जाता है।
- अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपनी क्षमता के अनुसार दान-दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।