अद्धयात्म

5000 साल से भी ज्यादा पुराना है दीपक का इतिहास

रोशनी को त्योहार दीपावली इस साल 7 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन घर को दीपों और लाईट्स से सजाया जाएगा। इस अवसर पर मिट्टी के दीपक जलाने का विशेष महत्व माना जाता है। ऐसे में जब आप घर में दीपक जलाते हैं तो आप सोचते होंगे कि दीपक की खोज कैसे हुई होगी। इसको लेकर प्रमाणित साक्ष्य मोहन जोदड़ो सभ्यता की खुदाई के दौरान मिले थे जो 5000 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। तो आज हम आपको बताते हैं कि हमारे देश में दीपक जलाने की परंपरा कहा सं आई।5000 साल से भी ज्यादा पुराना है दीपक का इतिहास

ठोस वस्तु पर आग जलाने से हुई शुरूआत

दीपक, मोमबत्ती और कंदील के पहले मनुष्य ने आग जलाना सीख लिया था। शुरूआत में आग के लिए वनस्पति तेलों, पत्तियों और लकड़ियों को जलाया जाता था। विशषज्ञों का मानना है कि आग के अविष्कार के बाद मनुष्य ने आग को किसी ठोस वस्तु पर जलाना शुरू किया ताकि इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सके। ऐसा माना जाता है कि इसी दौरान मनुष्य ने दीपक की खोज की होगी।

पत्थर के थे शुरूआती दीपक

विशेषज्ञों के मत के अनुसार शुरूआत में दीपक पत्थर को तराशकर बनाए गए होंगे। लेकिन धीरे-धीरे सभ्यता के विकास के साथ मिट्टी के दीपक बने। दीयाबत्ती या मोमबत्ती का आविष्कार भी 5 हजार साल से पहले हो गया था। इसके लिए वनस्पति तेल या जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल होता था। घरों में रोशनी के लिए मशालों, दीपकों और लालटेनों का विकास प्राचीन भारत, चीन और मिस्र की सभ्यताओं में हो गया था। वहीं हाथ में लेकर कहीं भी ले जा सकने वाली लालटेन का विकास रेलवे के साथ उन्नीसवीं सदी में हुआ। पैराफिन वैक्स जिसे आज मोम कहा जाता है उसे सन् 1830 में खोजा गया।

खुदाई में मिले थे दीपक

भारत में दीपक का इतिहास प्रामाणिक रूप से 5000 सालों से भी ज्यादा पुराना हैं जब इसे मोहन जोदड़ो के काल में जलाया जाता था। पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई खुदाई के दौरान यहाँ मिट्टी के पके दीपक मिले थे। यहां कमरों में दियों के लिये आले या ताक़ बनाए गए थे, लटकाए जाने वाले दीप मिले हैं और सड़कों के दोनों ओर के घरों तथा भवनों के द्वार पर दीपक लगाए जाते थे। इन द्वारों में दीपों को रखने के लिए कमानदार नक्काशीवाले आलों का निर्माण किया गया था।

क्या है मोहन जोदड़ो

मोहन जोदड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ है ” मुर्दों का टीला “। यह दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर है। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे सक्खर ज़िले में स्थित है। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है ‘मुअन जो दड़ो’। इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की।

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