ज्ञानेंद्र शर्मादस्तक-विशेषराज्यशख्सियतस्तम्भ

एक नेता जिसने तोड़े कई मिथक

ज्ञानेन्द्र शर्मा

प्रसंगवश

नब्बे के दशक में जब मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था, बतौर मुख्यमंत्री #मुलायम सिंह यादव ने संघ परिवार को चुनौती देते हुए कहा था कि मेरे मुख्यमंत्री रहते बाबरी मस्जिद पर कोई परिन्दा भी पर नहीं मार सकता। विपक्ष के नेता #कल्याण सिंह ने जवाब में कहा था कि देखते हैं और मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए 30 अक्टूबर 1990 में आंदोलन ऐसा उग्र हुआ कि #अयोध्या में पुलिस को गोली चलानी पड़ी। नम्बे के दशक के ये थे मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह।

पर राजनीति का चक्र जबर्दस्त तरीके से इस तरह से घूमा कि 19 साल बाद मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह एक हो गए। कभी एक दूसरे को फूटी ऑख भी नहीं सुहाने वाले ये दोनों नेता 21 जनवरी 2009 को ऐसे गले मिले कि सब देखते रह गए। बड़े-बड़े राजनीतिक पारखी और विश्लेषक भी नहीं समझ पाए कि यह करिश्मा हुआ कैसे।

पर एक व्यक्ति था जो 21 जनवरी से बहुत पहले से जानता था कि दो धु्रवों पर रहकर राजनीति करने वाले जल्दी ही एक धु्रव पर आकर गले मिल जाएंगे। यह व्यक्ति था अमर सिंह- उत्तर प्रदेश ही क्या पूरे देश की राजनीति का एक करिश्माई करिश्मा। उन्होंने दिसम्बर 2008 में मुझसे कहा था कि आप तो बहुत बड़े राजनीतिक विश्लेशक हैं पर इस बात का अंदाज आपको नहीं है कि एक बहुत बड़ा धमाका होने वाला है। मैंने लपककर पूछा, क्या-क्या। अमर सिंह बोले मिलते रहिए पता लग जाएगा।

ये अमर सिंह ही थे जिन्होंने अपनी कुटिल चालों से उत्तर से दक्षिण को मिला दिया था। 21 जनवरी 2009 को दोपहर में कल्याण सिंह के आवास पर मुलायम सिंह और अमर सिंह सहित तीनों नेताओं की डेढ़ घंटे कमरे में बातचीत हुई। बाहर निकले तो मुलायम सिंह बोले, हम दिल से जुड़ रहे हैं।

कल्याण सिंह ने बगल में बैठे अमर सिंह की तारीफ करते हुए कहा कि ये इस दोस्ती की बहुत बड़ी कड़ी हैं। आज की राजनीति के सुयोग्य चाणक्य हैं। मुलायम सिंह का सौभाग्य है कि ये उनके साथ हैं। उनसे पूछा गया कि क्या #प्रधानमंत्री पद के लिए मुलायम का समर्थन करेंगे, कल्याण सिंह बोले, मेरी बहुत पहले से इच्छा है कि मुलायम प्रधानमंत्री बनें। उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए जो कुछ बन पड़ेगा, करूॅगा। मुलायम, अमर को अब समझ पाया हूॅ। यह दोस्ती अमर, अमिट व अटूट है।

अमर सिंह से जिस चतुराई से मुलायम सिंह यादव से नजदीकी कायम की थी, दोस्ती गहरी की थी और उसे ऐसा प्रगाढ़ बनाया था कि सब देखते ही रह गए। सब कुछ अद्भुत था। अमर सिंह के सामने मुलायम सिंह यादव ने किसी पार्टी नेता की नहीं सुनी और अपने बेटे अखिलेश तक को तरजीह नहीं दी।

मुलायम सिंह राजनीति के धुरंधर थे लेकिन एक समय ऐसा आ गया कि जो कुछ अमर सिंह कह देते थे, राजनीति का चक्र वही दिशा पा जाता था और मुलायम सिंह चक्र के साथ ही घूमने लग गए थे। अमर सिंह ने कई उद्योगपतियों से मुलायम सिंह की दोस्ती कराई लेकिन इनमें अनिल अम्बानी सबसे प्रमुख थे। उन्होंने अमर सिंह की पहल पर #अनिल अम्बानी को #राज्यसभा भेजा और उत्तर प्रदेश विकास परिषद का सदस्य बनाया, जिसके कि अमर सिंह स्वयं अध्यक्ष बनाए गए थे और उन्हें #कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया गया था।

दिसम्बर 2005 में एक मामले ने तहलका मचाया। यह मामला था अमर सिंह के टेलिफोन टेप किए जाने का। मुलायम सिंह ने 30 दिसम्बर 2005 को एक प्रेस कॉन्फ्रारेंस करके आरोप लगाया कि अमर सिंह के फोन टेप किए जा रहे हैं और यह सब #सोनिया गॉधी के इशारे पर हो रहा है।

उन्होंने प्रधानमंत्री #मनमोहन सिंह और उनके #मंत्रिमण्डल के सदस्यों और #पुलिस कमिश्नर को निर्दोश बताया और आरोप लगाया कि पूरी साजिश 10 जनपथ/ सोनिया गॉधी का आवास/ में रची गई थी। बाद में यह पाया गया कि मामला फ र्जी था तो भी यह तो साबित हो ही गया कि मुलायम सिंह किस तरह अमर सिंह के मायाजाल में फॅसे हुए थे। ऑख बंद कर उनकी मानते थे।

एक बार मैं एक टेलीविजन चैनल के लिए सपा की तत्कालीन नेता व सांसद जयाप्रदा का इंटरव्यू लेने सहारा शहर गया जहॉ के गेस्ट हाउस में वे ठहरी हुई थीं। गेस्ट हाउस के गेट पर अमर सिंह मिल गए। अपनी परिचित मुस्कान बिखेरते हुए वे बोले, अरे कभी-कभी मेरा भी इंटरव्यू ले लिया करिए। मैंने तुरंत हामी भर दी और कहा आप यहीं रुके रहिए, जयाप्रदा का इंटरव्यू करने के तुरंत बाद आपका इंटरव्यू करता हूॅ।

वे राजी हो गए और बोले नहीं रुकूंगा तो आप मुलायम सिंह जी से शिकायत कर देंगे। मेरे तमाम प्रश्नों के उत्तर उन्होंने बेबाकी से दिए पर एक सवाल पर थोड़े अटक गए। मैंने उनसे पूछा, लोग कहते हैं कि आप राजनीति के दलाल हैं। इस आरोप पर क्या कहेंगे? वे बोले, आप तो ज्ञान के इन्द्र हैं, सब जानते हैं लेकिन मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि मैं दलाल हूॅ। वे बोले, हॉ मैं दलाल हूॅ लेकिन गलत आदमियों की दलाली नहीं करता।

अमर सिंह की स्मरण शक्ति बेमिसाल थी। लोगों की पहचान थी और आसानी से उन्हें भूलते नहीं थे। उन्होंने राजनीति में कई लोगों को आगे किया और जरूरत होने पर उनकी तरफदारी भी की। इनमें जया प्रदा भी थीं जिनको उन्होंने आजम खान के विरोध के बाद भी उनके गृह जिले रामपुर से लोकसभा का टिकट सपा से दिलवाया था।

जया प्रदा से इंटरव्यू में मैंने उनकी एक फिल्म के मशहूर गीत का हवाला देते हुए पूछा था कि राजनीति में हरी-हरी चूडिय़ॉ उन्हें किसने दिलवाई थीं। उन्होंने सवाल टाल दिया पर जोरों का ठहाका जरूर लगाया और कहा आप तो खुद जानते हैं। इशारा शायद बाहर मौजूद अमर सिंह की ओर ही था।

अपनी राजनीति के अंतिम पड़ाव में उनका झुकाव भारतीय जनता पार्टी की ओर और खासकर नरेन्द्र मोदी की ओर होने लग गया था और यह दिशा-परिवर्तन खासकर उस समय हुआ जब सपा की राजनीति ने पलटा खाया और मुलायम के उत्तराधिकारी बने अखिलेश ने उन्हें किनारे कर दिया।

बहरहाल दूसरा अमर सिंह होना बहुत मुश्किल है। वैसे भी फिलहाल तो उनकी हैसियत को चुनौती देता कोई दिख नहीं रहा।

Troll farms from North Macedonia and the Philippines pushed ...

और अंत में, तुम उसे छू लो और वह तुम्हारा हो जाय
इतनी वफा तो अब सिर्फ कोरोना के पास ही है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सूचना आयुक्त हैं।)

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