‘दूरदर्शन’ जिससे भारत में शुरू होता है टेलीविजन का इतिहास, छोटे से डिब्बे में समाई पूरी दुनिया
नई दिल्ली : आज के समय में हमारे पास संचार से जुड़ी लगभग हर तरह की सुविधा है। तकनीक के दम पर इंसान इतना आगे निकल गया है कि एक ही घर में बैठे लोगों के पास मनोरंजन के लिए अपने अलग-अलग साधन हैं। लेकिन एक दौर ऐसा भी था, जब नेटफ्लिक्स, मोबाइल (netflix, mobile) जैसी चीजों की हमने कल्पना भी नहीं की थी। आज से 63 साल पहले की बात है, जब पहली बार दूरदर्शन (Doordarshan) के रूप में इंसान को वो मिला, जो किसी सपने के जैसा था। आज की पीढ़ी को शायद ही इस बात का अहसास हो कि हमारी पुरानी पीढ़ी के लिए दूरदर्शन आखिर कितना महत्व रखता था। 15 सितंबर, 1959 के दिन सरकारी प्रसारक के तौर पर दूरदर्शन की स्थापना हुई थी।
लोगों के लिए एक छोटा सा डिब्बा कौतुहल का विषय बन गया। जिस पर चलती बोलती तस्वीरें दिखाई देतीं और जो बिजली से चलता था। ये वो दौर है, जब सबके घरों में टेलीविजन नहीं होता था, बल्कि किसी-किसी के घर में ही होता था। और जिसके घर में होता था, वहां दूर-दूर से लोग उसे देखने के लिए आते थे। छत पर लगने वाला टेलीविजन का एंटीना मानो प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया। इस सरकारी प्रसारण सेवा (government broadcasting service) के महत्वपूर्ण अंग देश की कला और संस्कृति से जुड़े वो कार्यक्रम थे, जो लोगों का दिल जीत लेते थे।
टेलीविजन भारत (India) में तब आया, जब तत्कलीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने नई दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो द्वारा स्थापित भारत के पहले टीवी स्टेशन (15 सितंबर 1959 को) का उद्घाटन किया। सरकार ने लॉन्च के लिए दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर दो दर्जन टीवी सेट लगाए थे। सभी जगहों पर भारी भीड़ देखी गई थी।
जब दूरदर्शन की शुरुआत हुई, तब कुछ देर के लिए ही इसपर कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। वहीं नियमित तौर पर दैनिक प्रसारण की शुरुआत 1965 में ऑल इंडिया रेडियो के हिस्से के रूप में हुई। ये सेवा साल 1982 में मुंबई और अमृतसर तक विस्तारित की गई थी। जो आज के वक्त में दूर दराज के गांवों तक पहुंच गई है। वहीं राष्ट्रीय प्रसारण की बात करें, तो इसकी शुरुआत 1982 में हुई थी। इसी साल दूरदर्शन का स्वरूप रंगीन हो गया। पहले यह ब्लैक एंड व्हाइट हुआ करता था।
ये वो दौर था, जब लोग सिनेमा के पर्दे पर लोगों को चलते फिरते देखकर हैरान हुआ करते थे। फिर टेलीविजन के रूप में कुछ इंच का यह जादू घरों तक पहुंचने लगा। घर कितना बड़ा है, इसका अंदाजा उसपर लगे ‘एंटीना’ से लगाया जाता था। शाम के वक्त ‘एंटीना’ की दिशा बदलना और चिल्लाकर पूछना ‘आया’ इस बात का संकेत होता था कि फलाने घर में टेलीविजन पर तस्वीर साफ नहीं आ रही है। ये बातें पुरानी जरूर हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों के जहन में आज भी ताजा हैं। देश में ‘बुद्धू बक्सा’ अर्थात दूरदर्शन का आना जितनी बड़ी खबर थी, उतनी ही बड़ी खबर थी उसका रंगीन हो जाना। 25 अप्रैल 1982 ही वह दिन था, जब दूरदर्शन श्वेत श्याम से रंगीन हो गया था।
भारतीय टेलीविजन के रूप में शुरू हुआ दूरदर्शन पहले आकाशवाणी (Oracle) का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन बाद में उससे अलग हो गया। शुरुआत में यूनेस्को की मदद से दूरदर्शन पर हफ्ते में दो दिन केवल एक-एक घंटे के कार्यक्रम प्रसारित हुआ करते थे। जिनका प्रमुख उद्देश्य लोगों को जागरुक करना था। फिर 1965 में रोजाना प्रसारण शुरू हुआ। इसके बाद टेलीविजन पर समाचार आने लगे। कृषि दर्शन भी आया, जो आज के समय में भी दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर प्रसारित होता है। वहीं चित्रहार पर फिल्मी गाने प्रसारित हुआ करते थे।
1980 का दशक आते-आते दूरदर्शन लगभग हर घर की रौनक बन गया। इसपर प्रसारित होने वाला पहला सीरियल ‘हम लोग’ था। इसके बाद इसपर ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे पौराणिक सीरियल आए, जिन्हें खूब लोकप्रियता मिली। जब भी इनका प्रसारण होता था, तो सड़कें वीरान हो जाया करती थीं। आज बेशक मनोरंजन के तमाम साधन और दुनियाभर के चैनलों की बाढ़ आ गई हो, लेकिन जब भी भारत में टेलीविजन के इतिहास का जिक्र होगा, तब गर्व के साथ दूरदर्शन केंद्र में खड़ा दिखाई देगा।