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‘लक्ष्मण रेखा’ से वाकिफ, लेकिन नोटबंदी मामले की पड़ताल की जाएगी: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा को लेकर ‘लक्ष्मण रेखा’ से वाकिफ है, लेकिन वह 2016 के नोटबंदी के फैसले की पड़ताल अवश्य करेगा, ताकि यह पता चल सके कि मामला केवल ‘अकादमिक’ कवायद तो नहीं था।

न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय पीठ ने कहा कि जब कोई मामला संविधान पीठ के समक्ष लाया जाता है, तो उसका जवाब देना पीठ का दायित्व बन जाता है। इसके साथ ही संविधान पीठ ने 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को विस्तृत हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।

संविधान पीठ में न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी. रमासुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना भी शामिल थे। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि जब तक नोटबंदी से संबंधित अधिनियम को उचित परिप्रेक्ष्य में चुनौती नहीं दी जाती, तब तक यह मुद्दा अनिवार्य रूप से अकादमिक ही रहेगा। उच्च मूल्य बैंक नोट (विमुद्रीकरण) अधिनियम 1978 में पारित किया गया था, ताकि कुछ उच्च मूल्य वर्ग के बैंक नोट का विमुद्रीकरण जनहित में किया जा सके और अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक धन के अवैध हस्तांतरण पर लगाम लगाई जा सके।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कवायद को अकादमिक या निष्फल घोषित करने के लिए मामले की पड़ताल जरूरी है, क्योंकि दोनों पक्ष सहमत होने योग्य नहीं हैं। संविधान पीठ ने कहा, ‘‘इस पहलू का जवाब देने के लिए कि यह कवायद अकादमिक है या नहीं या न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है, हमें इसकी सुनवाई करनी होगी। सरकार की नीति और उसकी बुद्धिमता, इस मामले का एक पहलू है।” पीठ ने आगे कहा, ‘‘हम हमेशा जानते हैं कि लक्ष्मण रेखा कहां है, लेकिन जिस तरह से इसे किया गया था, उसकी पड़ताल की जानी चाहिए। हमें यह तय करने के लिए वकील को सुनना होगा।”

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अकादमिक मुद्दों पर अदालत का समय ‘‘बर्बाद” नहीं करना चाहिए। मेहता की दलील पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा की ओर से पेश हो रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि वह ‘‘संवैधानिक पीठ के समय की बर्बादी” जैसे शब्दों से हैरान हैं, क्योंकि पिछली पीठ ने कहा था कि इन मामलों को एक संविधान पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए। एक अन्य पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम ने कहा कि यह मुद्दा अकादमिक नहीं है और इसका फैसला शीर्ष अदालत को करना है।

उन्होंने कहा कि इस तरह के विमुद्रीकरण के लिए संसद से एक अलग अधिनियम की आवश्यकता है। शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए नौ नवम्बर, 2022 की तारीख मुकर्रर की है। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 16 दिसंबर, 2016 को नोटबंदी के निर्णय की वैधता और अन्य मुद्दों से संबंधित प्रश्न पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ को भेज दिया था।

तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने तब कहा था कि यह मानते हुए कि 2016 की अधिसूचना भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत वैध रूप से जारी की गई थी, लेकिन सवाल यह था कि क्या वह संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के विपरीत थी? अनुच्छेद 300(ए) कहता है कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी तौर पर सुरक्षित उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।

पीठ ने एक मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा था, ‘‘क्या बैंक खातों में जमा राशि से नकदी निकालने की सीमा का कानून में कोई आधार नहीं है और क्या यह अनुच्छेद 14,19 और 21 का उल्लंघन है?” अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 19 भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है तथा अनुच्छेद 21 जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के मौलिक अधिकारों से संबंधित है।

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