ब्रह्मोस मिसाइल 75 फीसदी हुई स्वदेशी, 21 वर्षों में भारत ने मुकाम किया हासिल
नई दिल्ली : रूस की एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया तथा भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के संयुक्त प्रयास से विकसित ब्रह्मोस मिसाइल 75 फीसदी स्वदेशी हो चुकी है। ब्रह्मोस मिसाइल का पहला परीक्षण 2001 में हुआ था और 2004 में पहली मिसाइल लॉन्च की गई थी। उस समय मिसाइल केवल 13 प्रतिशत स्वदेशी थी, लेकिन अगले 21 वर्षों में मिसाइल के स्वदेशी घटक 75 प्रतिशत तक पहुंच गए हैं। अब मिसाइल की 100 प्रतिशत स्वदेशी क्षमता हासिल करना संभव नहीं है, क्योंकि इस संयुक्त परियोजना में भारत कुछ प्रौद्योगिकी के लिए रूस पर निर्भर है।
ब्रह्मोस एयरोस्पेस के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी अतुल दिनकर राणे ने चेन्नई स्थित रक्षा और एयरोस्पेस इलेक्ट्रॉनिक्स सॉल्यूशंस प्रदाता प्रदाता डेटा पैटर्न (भारत) की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में बताया कि ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना ने 75 प्रतिशत स्वदेशी क्षमता हासिल की है। उन्होंने 21 साल के सफ़र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ब्रह्मोस मिसाइल का पहला परीक्षण 2001 में हुआ था और 2004 में पहली मिसाइल लॉन्च की गई थी। उस समय मिसाइल केवल 13 प्रतिशत स्वदेशी थी, लेकिन अगले 21 वर्षों में मिसाइल के घटक 75 प्रतिशत तक पहुंच गए हैं। अभी भी कुछ प्रौद्योगिकियां रूस से मिलना बाकी है, इसलिए ब्रह्मोस मिसाइल को पूरी तरह स्वदेशी करने की कोई योजना नहीं है। हालांकि, उन्होंने कहा कि 75 प्रतिशत स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के कारण मिसाइल की समग्र लागत काफी कम हो गई है।
अग्नि के सिद्धांत पर काम करने वाली ब्रह्मोस मिसाइल में डीआरडीओ ने पीजे-10 परियोजना के तहत स्वदेशी बूस्टर बनाकर इसकी मारक क्षमता बढ़ा दी है। 21वीं सदी की सबसे खतरनाक मिसाइलों में से एक ब्रह्मोस मिसाइल 8.4 मीटर लम्बी तथा 0.6 मीटर चौड़ी है। 3000 किलोग्राम की यह मिसाइल 300 किलोग्राम वजन तक विस्फोटक ढोने तथा 400 किलोमीटर तक लक्ष्य को मार गिराने की क्षमता रखती है। यह सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल आवाज की गति से 2.8 गुना तेज जाने की क्षमता रखती है। भारत ने अब 800 किमी. की रेंज में टारगेट को हिट करने वाला ब्रह्मोस मिसाइल का नया वर्जन तैयार किया है। इस एयर लॉन्च संस्करण का परीक्षण शुरू कर दिया गया है।
इधर, रक्षा मंत्रालय नौसेना के फ्रंटलाइनर युद्धपोतों के लिए 200 से अधिक विस्तारित रेंज वाली मिसाइलों के अधिग्रहण को अंतिम रूप दे रहा है। रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) में खरीद के प्रस्ताव पर जल्द ही विचार करने के बाद इसे प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली सुरक्षा संबंधी कैबिनेट कमेटी को अंतिम मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। सौदे की वास्तविक लागत मिसाइलों की संख्या और कॉन्फ़िगरेशन पर निर्भर करेगी, लेकिन यह सौदा 15 हजार करोड़ रुपये से ऊपर होने की संभावना है। फिलहाल तीनों सेनाएं ब्रह्मोस से लैस हैं और अब तक 38 हजार करोड़ रुपये से अधिक के अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं।