जीवनशैली

समय से पहले बूढ़ा बना रही है गैजेट्स की ब्लू लाइट

हम सभी टेक्नोलॉजी गैजेट्स से दिन रात घिरे रहते हैं। स्मार्टफोन, स्मार्टवॉच, लैपटॉप, टीवी आदि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। हम जानते हैं कि यह डिवाइस हमारी आंखें खराब करते हैं, लेकिन यह चीजें इससे भी ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। अमेरिका की ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की एक नई रिसर्च के मुताबिक, इन गैजेट्स से निकलने वाली ब्लू लाइट हमें जल्दी बूढ़ा कर सकती है।

मक्खियों पर हुई रिसर्च
इस रिसर्च में मक्खियों को शामिल किया गया। इनमें से कुछ को दो हफ्ते ब्लू लाइट से एक्सपोज किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि इस लाइट से मक्खियों में तनाव से जुड़े जींस एक्टिवेट हो जाते हैं। जिन मक्खियों को ब्लू लाइट से एक्सपोज नहीं किया गया और पूरी तरह अंधेरे में रखा गया, वो लंबे समय तक जीवित रहीं। इसके साथ ही दोनों ग्रुप्स की मक्खियों के मेटाबोलाइट्स की भी तुलना की गई। मेटाबोलाइट्स ऐसे पदार्थ हैं जो किसी जीव के शरीर में तब बनते हैं या इस्तेमाल किए जाते हैं, जब शरीर दवाओं, भोजन या केमिकल को तोड़ रहा होता है। स्टडी के मुताबिक, ब्लू लाइट इन मेटाबोलाइट्स पर काफी प्रभाव डालती है।

ब्लू लाइट उम्र तेजी से बढ़ाती है
रिसर्चर्स ने बताया कि ब्लू लाइट की वजह से मक्खियों के सेल्स (कोशिकाएं) जल्दी मर जाते हैं। यानी, उनकी उम्र बढ़ने की गति तेज हो जाती है। वैज्ञानिकों को लगता है कि इंसानों में भी ब्लू लाइट का कुछ ऐसा ही असर होता है। उनके सेल्स भी समय से पहले मरने लगते हैं, जिससे वे जल्दी बूढ़े होने लगते हैं। हालांकि, फिलहाल इस विषय पर और रिसर्च की जरूरत है। आगे के शोध में इंसानों के सेल्स पर फोकस किया जाएगा।
81% बच्चों के लिए पढ़ाई, एग्जाम और रिजल्ट एंग्जाइटी की वजहें

देश में 6वीं से 12वीं तक के 73% बच्चे स्कूली जीवन से संतुष्ट हैं। वहीं, 33% बच्चे ऐसे हैं जो अधिकांश समय दबाव महसूस करते हैं। मंगलवार को आई ठउएफळ की मेंटल हेल्थ सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, 29% छात्रों में फोकस की कमी है, जबकि 43% का मन पढ़ाई में नहीं लगता। कोरोना महामारी के दौरान और उसके बाद आॅनलाइन पढ़ाई पर जोर दिया गया। सर्वे में यह भी सामने आया कि 51% बच्चों को आॅनलाइन माध्यम से पढ़ाई में कंटेंट समझने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

वहीं, 28% सवाल पूछने में झिझकते हैं। सर्वे में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 3.79 लाख छात्र शामिल हुए। सर्वे में शामिल 81% बच्चे पढ़ाई, एग्जाम और रिजल्ट को सबसे बड़ा तनाव मानते हैं। सर्वे बताता है कि आमतौर पर ज्यादातर बच्चों ने स्कूली जीवन से खुशी और संतुष्टि व्यक्त की। वहीं, मिडिल स्कूल में ज्यादातर स्कूली छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट दर्ज की गई है। सर्वे को शिक्षक पर्व के दौरान केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई कई पहल के साथ शुरू किया गया था। कोरोना महामारी के बाद से देश में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए केंद्र द्वारा किया गया यह पहला सर्वेक्षण है। शिक्षकों को सम्मानित करने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (ठएढ) 2020 को लागू करने के लिए शिक्षक पर्व मनाया जा रहा है।

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