स्तम्भ
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  जब गंगा-जमुना में उठ रही कर्तव्य और रिश्ते के बीच की भंवर में फंसे दिलीप कुमार और उनके सगे भाई नासिर ख़ानमनीष ओझा दिल रोता है चेहरा हँसता रहता हैकैसा कैसा फ़र्ज़ निभाना होता है।। मुबंई: अख्तर आज़ाद की ये शायरी… Read More »
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  लॉकडाउन पर दोहरी मारज्ञानेन्द्र शर्मा प्रसंगवश स्तम्भ : जिन लोगों ने यह मान रखा था कि लाॅकडाउन थोड़े समय का कैदखाना है, वे उसकी… Read More »
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  फसल के “न्यूनतम समर्थन मूल्य” निर्धारण में “कृषि लागत और मूल्य आयोग” की भूमिकाप्रशांत कुमार पुरुषोत्तम पटना: राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। भारत की… Read More »
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  इंसानी बस्ती केवल इंसानों की???विनय सिंह स्तम्भ: आज केरल में एक बड़ी संवेदनहीन घटना घटित हुई। केरल के कुछ स्थानीय लोगो ने एक गर्भवती… Read More »
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  तेवर और जरूरत के अनुरूप हो, स्वदेशी आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर: के एन गोविंदाचार्यके.एन. गोविन्दाचार्य स्तम्भ: इस बीच आत्मनिर्भरता शब्द उभरा है। शब्द दोहराने से ज्यादा महत्वपूर्ण है अर्थ को जीना। अर्थ को… Read More »
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  आज एक हिटलर की जरूरत है?डॉ.धीरज फुलमती सिंह मुबंई: आजकल हिटलर का नाम सुनकर पढ़े लिखे बौद्धिक लोग उसे हत्यारा/ आतंकी पता नहीं क्या-क्या कह… Read More »
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  ना और हां के बीच के लम्बे फासलेज्ञानेन्द्र शर्मा प्रसंगवश स्तम्भ : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को राजधानी में एक बड़े पते की बात कही। कोरोना… Read More »
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  दो शहरों वाला देशज्ञानेन्द्र शर्मा प्रसंगवश स्तम्भ : पिछले पॉच दिनों की भारी अशांति ने कोरोना से पहले से कराह रहे अमेरिका को हिलाकर… Read More »
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  कोरोना के बारे में कुछ चिंतनीय पहलु: के.एन गोविंदाचार्यके.एन. गोविन्दाचार्य स्तम्भ: आजकल कोरोना के जन्मस्थान को लेकर भारी विवाद है। रूस, चीन, अमेरिका के ऊपर उँगलियाँ उठ रही है।… Read More »
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  अभी न जाओ छोड़करज्ञानेन्द्र शर्मा प्रसंगवश स्तम्भ : सरकार ने एक साथ एक ही सांस में दो घोषणाएं की हैं। उसने कहा है… Read More »
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  ये जो पॉलिटिक्स हैज्ञानेन्द्र शर्मा प्रसंगवश स्तम्भ: जो कभी भी कुछ भी करा दे, उसे पॅालिटिक्स कहते हैं। पूरी दुनिया के अच्छे-अच्छे, जाने-माने… Read More »
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  शब्दों को बार-बार दोहराना एक बात है, शब्द के अर्थ को जीने की बात ही कुछ और हैके.एन. गोविन्दाचार्य स्तम्भ: हमारे अभिभावक आदरणीय यशवंत राव केलकर जी “नानी तीन बार हँसी” आख्यान सुनाते थे। बात गहरी थी। उस… Read More »
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  बूढ़ी ट्रेनें…ज्ञानेन्द्र कुमार शुक्ला तो हमारी ट्रेनें उम्रदराज होने के चलते भूल गयीं अपनी राह डेढ़ सौ साल से ज्यादा उम्रदराज… Read More »
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  छुट भईया नेता या समाजसेवी कैसे बने?डॉ.धीरज फुलमती सिंह व्यंग मुबंई: छुट भईया नेता और समाज सेवक इंसानो की यह वह नश्ल है,जो हर गली,नुक्कड,चौराहे पर… Read More »
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  अजीत जोगी-बहुत कठिन है उन-सा होनाप्रो.संजय द्विवेदी भोपाल : जिद, जिजीविषा, जीवटता और जीवंतता एक साथ किसी एक आदमी में देखनी हो तो आपको अजीत… Read More »
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  हिन्दी पत्रकारिता के उस पारज्ञानेन्द्र शर्मा प्रसंगवश स्तम्भ : हिन्दी पत्रकारिता के अंग्रेजीकरण ने अब कई नए आयाम खोज निकाले हैं। हिन्दी हेडलाइन्स के… Read More »
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  बड़ा बेटाअजीत सिंह स्वयं के जीवन से जुड़ा मार्मिक संस्मरण स्तम्भ: बड़ी घबराहट हो रही है, मन बडा बेचैन है, चक्कर… Read More »
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  लो मैं तो साहब बन गयाज्ञानेन्द्र शर्मा स्तम्भ: कुछ समय पहले यह तय हुआ था कि राज्यपाल को ‘महामहिम’ नहीं बोला जाएगा। अब राज्यपाल को… Read More »
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  राहत पैकेज का झुनझुनाडॉ. धीरज फुलमती सिंह मुम्बई: मै तो तुम्हारे लिए चाँद तारे तोड लाऊगा। अधिकतर आशिक, अपनी माशुका को ऐसा कह… Read More »
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  महात्मा गांधी की दृष्टि में स्वातंत्र्यवीर सावरकरवीर सावरकर जयंती प्रसंग लोकेन्द्र सिंह भोपाल : “सावरकर बंधुओं की प्रतिभा का उपयोग जन-कल्याण के लिए होना चाहिए। अगर… Read More »
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  गोयल की रेल कहीं छूट न जायज्ञानेन्द्र शर्मा प्रसंगवश स्तम्भ: मोदी है तो मुमकिन है, कहते हैं उनके समर्थक। पर अब लोग यह भी कहने लगे… Read More »
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  बीस अब तुम इक्कीस तक इंतजार करोज्ञानेन्द्र शर्मा प्रसंगवश स्तम्भ: अब से कोई 23 साल पहले आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर संसद के दोनों… Read More »
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  लक्ष्य सिद्धि के लिये बुद्धि की तुलना में संवेदनशील मन का विशेष महत्व हैके.एन. गोविन्दाचार्य स्तम्भ: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के अभिभावकों में से एक आदरणीय यशवन्तराव केलकर जी के घर अनौपचारिक चायपान… Read More »
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  बड़ी मेहरबानी, करमज्ञानेन्द्र शर्मा प्रसंगवश स्तम्भ: दो महीने के लॉकडाउन ने कई कमाल किए हैं और जिन कुछ लोगों को घर में… Read More »
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  ए गाँव के लफंगे-लतख़ोर…सुमन सिंह स्तम्भ: “हरे ये पिंटुआ! हमनियों के देबे पेप्सिया की कुल ओहि लड़िकवन में बाँट देबे…आँय।” होठों को अजब… Read More »
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  भारत राजसत्ता से संचालित समाज नहीं हैके.एन. गोविन्दाचार्य स्तम्भ: भारत यूरोप की तरह शर्तों पर आधारित (SOCIAL CONTRACT THEORY) समाज नही है। भारत संबंधो, पारिवारिक भावना… Read More »
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  यहां तो हर शख्स मुँह छुपाए हैज्ञानेन्द्र शर्मा प्रसंगवश स्तम्भ: लॉकडाउन का चौथा अध्याय अब खत्म होने को एक हफ्ता बचा है। अबकी बार लग रहा… Read More »
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  मजदूर ही क्यों, आप क्यों नहींज्ञानेन्द्र शर्मा प्रसंगवश स्तम्भ: दिल खुश करने वाली एक तस्वीर आज अखबारों में छपी। वायुसेना के हैलीकाप्टर के केबिन में… Read More »
 
