अमेरिकी संसद में नागरिकता अधिनियम पेश, बदलेगी एच-1बी वीजा प्रणाली
वाशिंगटन : अमेरिका में एच-1बी वीजा प्रणाली में बदलाव करने की पहल हुई है। अमेरिकी संसद में सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी ने अमेरिकी नागरिकता अधिनियम पेश किया है। इस विधेयक को अमेरिका में रह रहे भारतीयों और दूसरे देशों के अप्रवासियों के लिए राहत भरा माना जा रहा है।
डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद लिंडा सेंचेज की ओर से अमेरिकी संसद में पेश अमेरिकी नागरिकता अधिनियम-2023 के पास होने के बाद यहां प्रौद्योगिकी क्षेत्र में काम करने वाले हजारों भारतीयों को भी इसका लाभ मिलने की बात कही जा रही है। संसद के दोनों सदनों में विधेयक के पारित हो जाने और राष्ट्रपति बाइडन के हस्ताक्षर के बाद कानून बनने से देश में बिना दस्तावेज के रह रहे और वैध तरीके से आए लाखों लोगों को अमेरिकी नागरिकता मिलने का रास्ता खुल जाएगा।
इस विधेयक में अमेरिका की नागरिकता पाने के सपने देखने वाले सभी 1.1 करोड़ गैर-दस्तावेजी अप्रवासियों के लिए एक रोडमैप तैयार किया गया है। इसमें पांच साल तक अमेरिका में रहने वाले ऐसे गैर-दस्तावेजी अप्रवासियों को भी देश से निकाले जाने के डर के बिना नागरिकता देने की बात कही गई है, जिन्होंने पृष्ठभूमि की जांच पास कर ली हो और करों का भुगतान करते हों।
इस विधेयक के तहत अमेरिका में रोजगार आधारित लंबित वीजा को मंजूरी दी जाएगी। प्रत्येक देश पर वीजा के लिए लगाई गई सीमा भी खत्म की जाएगी और प्रतीक्षा समय को घटाया जाएगा। विधेयक में अमेरिकी विश्वविद्यालयों के एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) विषयों के डिग्री धारकों के लिए अमेरिका में रहने की राह को आसान बनाने का भी प्रावधान है।
उल्लेखनीय है कि एसटीईएम विषयों में डिग्री के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने वाले सबसे ज्यादा छात्र भारत के ही हैं। इसके अलावा उद्योगों में कम वेतन पर काम करने वाले श्रमिकों के लिए ग्रीन कार्ड तक पहुंच में सुधार करने, एच-1बी धारकों के आश्रितों को काम करने की अनुमति देने और एच-1बी धारकों के बच्चों को इस प्रणाली से बाहर होने से रोकने का प्रावधान शामिल है।
नागरिकता अधिनियम में पिछले वर्षों के वीजा को फिर से प्राप्त करके बैकलॉग को खत्म करने के लिए परिवारों को एक साथ रखने के लिए परिवार-आधारित आव्रजन प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव है। इसमें परिवार के सगे सदस्यों के रूप में ग्रीन कार्ड धारकों के पति-पत्नी और बच्चे शामिल हैं और परिवार-आधारित आप्रवासन के लिए प्रति-देश कोटा को बढ़ाने की मांग की गई है।