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सूर्य ग्रहण के वक्त NASA भेजेगा तीन रॉकेट, मिशन खोलेगा सूरज के अनदेखे राज

नई दिल्ली : 14 अक्टूबर को जब दुनिया के कई हिस्सों में सूर्य ग्रहण हो रहा होगा, उस वक्त अमेरिकी अंतरक्षि एजेंसी नासा अंतरिक्ष में तीन रॉकेट भेज रहा होगा। नासा के वैज्ञानिक यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि सू्र्यग्रहण के दौरान धरती के वायुमंडल पर क्या प्रभाव डालती हैं, जो सूर्य की रोशन अचानक से कम हो जाती है। इसके अलावा नासा सूरज के कई अनदेखे राज भी खोलने वाला है। नासा ने इस महत्वपूर्ण मिशन की जिम्मेदारी भारतीय मूल के वैज्ञानिक आरोह बड़जात्य को सौंपी है। वह इस मिशन को लीड करने वाले हैं।

अमेरिका के कई हिस्सों में लोग 14 अक्तूबर को सूरज की चमक को सामान्य से 10 प्रतिशत तक फीकी पड़ते देखेंगे। आरोह की टीम इसी दिन कुंडलाकार सूर्य ग्रहण के दौरान तीन रॉकेट लॉन्च करने वाली है।

बड़जात्या फ्लोरिडा में एम्ब्री-रिडल एरोनॉटिकल यूनिवर्सिटी में भौतिकी के प्रोफेसर हैं। उन्होंने बताया कि एटमास्फेरिक परटरबेशंस अराउंड द इक्लिप्स पाथ (एपीईपी) नामक इस मिशन का उद्देश्य यह देखना है कि सूर्य की रोशनी में अचानक आई कमी हमारे ऊपरी वायुमंडल को किस तरह प्रभावित करती है।

मिशन के दौरान पहला रॉकेट सूर्यग्रहण से 35 मिनट पहले, दूसरा सूर्यग्रहण के दौरान और तीसरा 35 मिनट के बाद छोड़ा जाएगा। इन्हें वलयाकार पथ के ठीक बाहर की ओर भेजा जाएगा जहां सूर्य के सामने से चंद्रमा गुजरता है। अरोह बड़जात्या ने बताया कि इनमें लगे उपकरण विद्युत व चुंबकीय क्षेत्र, घनत्व और तापमान आदि में आने वाले बदलावों का अध्ययन करेंगे।

ये रॉकेट सतह से 70 से लेकर 325 किलोमीटर ऊपर तक विभिन्न चीजों में आने वाले बदलावों को मापेंगे। आरोह ने बताया कि अगर ये मिशन कामयाब रहा तो सूर्य ग्रहण के दौरान आयनमंडल में अलग अलग जगहों से माप लेने का यह पहला प्रयोग होगा। यह अपने आप में एक बड़ी बात होगी। नासा के अनुसार मिशन यह जानने की कोशिश करेगा कि सूरज की रोशनी में अचानक गिरावट हमारे ग्रह के ऊपरी वायुमंडल को कैसे प्रभावित करती है।

ग्रहण पथ या एपीईपी के आसपास को वायुमंडलीय प्रभाव कहा जाता है। आयनमंडल वायुमंडल का आयनित भाग है जो समुद्र तल से 48 से 965 किलोमीटर ऊपर पाया जाता है। यह वायुमंडल का वह हिस्सा है जहां सूर्य से अल्ट्रा वायलेट विकिरण इलेक्ट्रॉनों को परमाणुओं से अलग करके आयन और इलेक्ट्रॉन बनाता है। सूर्य की निरंतर ऊर्जा इन कणों को, जो परस्पर आकर्षित होते हैं, पूरे दिन अलग होने से रोकती है, लेकिन जैसे ही सूर्य क्षितिज से नीचे डूबता है, वो तटस्थ परमाणुओं में पुनः संयोजित हो सकते हैं। फिर सूर्योदय के समय वे एक बार फिर आयनित हो जाते हैं।

14 अक्टूबर को सूर्यग्रहण के वक्त नासा के वैज्ञानिक धरती से आसमान की तरफ तीन रॉकेट लॉन्च करके यह जानने की कोशिश करेंगे कि सूर्यग्रहण का धरती के वायुमंडल पर क्या असर पड़ता है। 14 अक्टूबर के दिन उत्तर और दक्षिण अमेरिका के कई हिस्सों में लोग सूर्य को अपनी सामान्य चमक से लगभग 10 प्रतिशत तक मंद होते हुए देखेंगे। इस दौरान चमकदार सूर्य “आग के छल्ले” की तरह दिखाई देगा। न्यू मैक्सिको में व्हाइट सैंड्स मिसाइल रेंज के पास के लोगों को सूर्य ग्रहण के दौरान चमकीली धारियां दिखाई देंगी।

नासा के इस मिशन की कमान भारतीय मूल के वैज्ञानिक आरोह बड़जात्य संभालेंगे। आरोह की टीम 14 अक्टूबर को कुंडलाकार सूर्य ग्रहण के दौरान तीन रॉकेट लॉन्च करने वाली है। नासा के इस मिशन पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं।

अंतरिक्ष एजेंसी नासा का साउंडिंग रॉकेट मिशन यह जानने के लिए तीन रॉकेट लॉन्च करेगा कि सूरज की रोशनी में अचानक गिरावट हमारे ग्रह के ऊपरी वायुमंडल को कैसे प्रभावित करती है। मिशन को ग्रहण पथ या एपीईपी के आसपास वायुमंडलीय गड़बड़ी कहा जाता है। आयनमंडल वायुमंडल का आयनित भाग है जो समुद्र तल से 48 किलोमीटर से 965 किलोमीटर ऊपर पाया जाता है। यह वायुमंडल का वह हिस्सा है जहां सूर्य से यूवी विकिरण इलेक्ट्रॉनों को परमाणुओं से अलग करके आयन और इलेक्ट्रॉन बनाती हैं।

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