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यूपी फतह के लिए कांग्रेस को सपा का सहारा

अजय कुमार, लखनऊ

उत्तर प्रदेश में इंडी गठबंधन का प्रचार अभियान तेजी नहीं पकड़ पा रहा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सामने समस्या यह है कि वह चुनावी लाइन ही तय नहीं कर पा रहे हैं। वहीं कांग्रेस आलाकमान ने यूपी को तो मानो भुला ही दिया है। संभवत: कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार यह मान बैठा है कि यूपी में उसका सियासी सफरनामा सपा के कंधे पर बैठकर पूरा हो जायेगा। इंडी गठबंधन के तहत यूपी में कांग्रेस 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2.33 प्रतिशत और सीट मात्र रायबरेली की एक थी, जहां से सोनिया गांधी सांसद थीं लेकिन अब वह राज्यसभा की सदस्य हैं। रायबरेली से कांग्रेस सोनिया गांधी की जगह नया प्रत्याशी मैदान में उतारेगी। इंडी गठबंधन के कमजोर प्रचार अभियान और बीजेपी के युद्ध स्तर पर चुनाव प्रचार करने से फिलहाल ऐसा लग रहा है कि बीजेपी ने प्रचार के माध्यम से काफी बढ़त बना ली है। 4 जून को मतगणना वाले दिन पता चलेगा बीजेपी की मेहनत कितनी रंग लाई, लेकिन कई सीटों पर मुकाबला कांटे का दिखाई दे रहा है। बीजेपी भी हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है। वहीं सपा-कांग्रेस भी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही हैं। हालांकि अमेठी, रायबरेली, बदायूं, घोषी, आजमगढ़, रामपुर समेत करीब दो दर्जन सीटों पर मुकाबला रोमाचंक होने वाला है। जीत-हार का आकलन कर पाना किसी भी राजनीतिक पंडित के लिए आसान नहीं होगा। कुल मिलाकर कांग्रेस की सुस्ती से समाजवादी पार्टी का प्रचार अभियान भी तेजी नहीं पकड़ पा रहा है जबकि पहले चरण के मतदान में अब मात्र दस दिनों का ही समय बचा है। कांग्रेस के रवैये के चलते सपा के कई दिग्गज नेता कांग्रेस आलाकमान से नाराज भी चल रहे हैं, इन नेताओं का कहना है कि कांग्रेस, सपा की पीठ पर सवार होकर चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है।

यूपी की 80 में से सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य बीजेपी ने रखा है। हालांकि ऐसा होना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है। खासकर इंडी गठबंधन के बाद यूपी में क्लीन स्वीप कर पाना इतना आसान नहीं होगा। इस बार बीजेपी को अपनी जीती हुई सीट बचाने में भी मुश्किल होगी। वहीं 2019 में हारी सीटें जीतना एक बड़ी चुनौती रहने वाली है। हालांकि बीजेपी भी अपने काम और मोदी-योगी के नाम पर पूरी दमखम से जुटी हुई है। वहीं इस चुनाव में यूपी की कई अन्य सीटों पर क्रिकेट मैच के फाइनल की तरह ‘करो या मरो’ जैसी स्थिति रहने वाली है। इस बार जो चुनावी रण में लड़ेगा वही जीतेगा। लहर के भरोसे चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। बात अगर यूपी की सबसे कांटे की टक्कर वाली सीट की करें तो पहला और दूसरा नाम अमेठी एवं रायबेरली सीट का आता है। अमेठी लोकसभा सीट पर उसी स्थिति में मुकाबला कांटे का होने की संभावना है, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ें। अमेठी कांग्रेस का गढ़ रहा है और 2019 के चुनाव में अमेठी से राहुल गांधी चुनाव हार गए थे। उधर, बीजेपी ने मौजूदा सांसद और केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को पुन: उम्मीदवार बनाया है। हालत यह है कि कांग्रेस अभी तक उम्मीदवार की घोषणा तक नहीं कर पाई है। चर्चा है कि सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा अमेठी से चुनाव लड़ सकते हैं। रॉबर्ट वाड्रा के चुनाव लड़ने पर भी मुकाबला करो या मरो वाला हो जाएगा। इस सीट पर कांग्रेस का उम्मीदवार घोषित होने के बाद ही मुकाबला कैसा होगा, यह कह पाना संभव होगा।

इसी प्रकार से रायबरेली सीट कांग्रेस का अभेद्य किला रहा है। मोदी लहर के बावजूद बीजेपी 2014 और 2019 के चुनाव में कांग्रेस के इस किले को भेद नहीं पाई थी। इस बार सोनिया गांधी चुनाव नहीं लड़ रही है। कांग्रेस से चुनाव कौन लड़ेगा, अभी संशय बना हुआ है। अगर गांधी परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव लड़ता है तो यह सीट कांग्रेस आसानी से जीत सकती है। अगर किसी अन्य को टिकट मिलता है तो कांग्रेस के लिए रायबरेली बचाना मुश्किल हो जाएगा। चुनाव इतना कांटे का हो जाएगा, जिस पर नतीजे आने से पहले कुछ भी कह पाना किसी के लिए मुश्किल होगा। यहां से प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की चर्चा है। अगर प्रियंका चुनाव लड़ीं तो कांग्रेस का रास्ता साफ हो जाएगा। बीजेपी के मिशन 80 पर प्रियंका पानी फेर सकती है।

तीसरे नंबर पर मैनपुरी लोकसभा सीट है। सपा का गढ़ मानी जाने वाली मैनपुरी सीट पर अगर बीजेपी नेताजी मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को टिकट देती है तो उस स्थिति में चुनाव कांटे का होने की संभावना है। वरना इस सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजों से साफ-साफ संकेत है कि इस बार भी नतीजे सपा के पक्ष में आएंगे। डिंपल यादव आसानी से चुनाव जीत जाएंगी। अपर्णा चुनाव लड़ी तो लड़ाई बेहद रोमाचंक होगी, उस स्थिति में जीत हार का आंकलन कर पाना बहुत मुश्किल होगा। ऐसे ही कन्नौज सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव के चुनाव लड़ने पर ही मुकाबला जैसी स्थिति होगी वरना बीजेपी के सुब्रत पाठक कमल खिला देंगे। अखिलेश के लड़ने पर सुब्रत पाठक के लिए चुनाव जीतना लोहे के चने चबाने जैसा होगा।
बदायूं सीट पर भी इस बार कड़ा मुकाबला होने के आसार है। सपा ने कद्दावर नेता शिवपाल यादव को टिकट दिया था, लेकिन अब बदायूं से उनकी जगह उनके पुत्र आदित्य के चुनाव लड़ने की चर्चा है जबकि बीजेपी ने मौजूदा सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट काट दिया है। इस बार बीजेपी के दुर्विजय शाक्य की टक्कर यादव कुनबे से होगी। अगर आदित्य चुनाव लड़े तो उस स्थिति में बदायूं सीट पर रोमांचक मुकाबला होगा। आखिरी समय तक कुछ भी कह पाना संभव नहीं होगा। उधर घोषी सीट पर भी मुकाबला करो या मरो वाला होने वाला है। वहीं आजमगढ़ सीट पर भी सपा ने धर्मेंद्र यादव को उतार कर दिनेश लाल निरहुआ को कड़ी टक्कर दे दी है। सपा का गढ़ रही इस सीट पर भी कांटे की टक्कर हो सकती है।

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