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कृषि कानूनों की वापसी का स्वागत, सीएए-एनआरसी को भी रद्द करने की मांग

नई दिल्ली: जमात-ए-इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर और जमात के केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन मुज्तबा फ़ारूक ने शनिवार को जमात मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। जमात के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जरिए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले का स्वागत किया है। जमात का मानना है कि कृषि कानूनों का निरस्तीकरण जरूरी था। यह हमारे लोकतंत्र और देश के लिए बहुत बड़ी सफलता है। अफ़सोस इस बात का है कि इन कानूनों के खिलाफ लड़ने के लिए किसानों को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। हम मृतकों को श्रद्धांजलि देते हुए उनके लिए उचित मुआवज़े की मांग करते हैं। साथ ही हम सरकार से आग्रह करते हैं कि सीएए-एनआरसी जैसे अन्य जनविरोधी कानूनों को भी जल्द वापस लिया जाए।

अल्पसंख्यकों के इबादतगाहों के खिलाफ बढ़ती नफरत के माहौल पर भी जमात-ए-इस्लामी हिन्द ने चिंता जताई है। विगत दिनों हरियाणा के गुरुग्राम में कुछ सुव्यवस्थित समूहों द्वारा जुमे की नमाज का विरोध करने के प्रयासों की कड़े शब्दों में आलोचना की गई है। मुसलामानों को वास्तव में इसलिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है कि 1947 में विभाजन के दौरान इस इलाके की लगभग बड़ी और छोटी 19 मस्जिदों पर कुछ लोगों ने गैर कानूनी कब्ज़ा कर लिया था, जिसके नतीजे में मुसलमान इन मस्जिदों में नमाज अदा करने में असमर्थ हैं। हरियाणा वक्फ बोर्ड ने इन मस्जिदों को खाली कराने के लिए भरपूर प्रयास किया है मगर अभी तक कामयाबी हासिल नहीं हुई है। इसकी एक वजह सरकार का असहयोग भी है। दूसरा यह कि नए आबाद होने वाली कालोनियों में सरकार ने मस्जिदों के लिए कोई जगह मंज़ूर नहीं की है जबकि यह शहरी विकास के कानूनों में शामिल है। इसलिए मुसलमान मजबूरन केवल जुमा की नमाज खुले पार्कों में अदा कर रहे हैं।

जमात के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुग्राम का दौरा किया और समस्या के स्थायी समाधान पर पहुंचने के लिए नमाज का विरोध करने वाले लोगों से मुलाकात की है। जमात प्रतिनिधिमंडल ने उन लोगों से भी मुलाकात की जिन्होंने नमाज के लिए अपने परिसर की पेशकश की और कुछ धार्मिक समूहों से भी मुलाकात की जिन्होंने शुक्रवार की नमाज के लिए मुसलमानों को अपने पूजा स्थल की पेशकश की है। जमात यह महसूस करती है कि नमाज का विरोध कर रहे संगठित समूह कुछ निहित स्वार्थों द्वारा व्यवस्थित प्रयास का हिस्सा हैं जो नफरत और ध्रुवीकरण के एजेंडे को बढ़ावा देकर लोगों को धार्मिक आधार पर बांटना चाहते हैं। यह साम्प्रदायिक राजनीति वास्तविक मुद्दों से (खासकर जब चुनाव नजदीक हो) भटकाने के लिए की जाती है ताकि लोगों का ध्यान सरकार और सत्ता के विकास के कामों की तरफ जाने के बजाए अन्य भावनात्मक मुद्दों की ओर हो जाए। हमें विश्वास है कि हमारे देश के लोग इस धोखे को समझेंगे और इसे सफल नहीं होने देंगे। जमात ने प्रयागराज में हाल ही में एक ही दलित परिवार के चार सदस्यों की हत्या की निंदा की है। उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों और दलितों के खिलाफ दुष्कर्म, हत्या, हिरासत में हत्या, फर्जी मुठभेड़ों और घृणा अपराधों जैसे कई मामलों में प्रयागराज हत्याकांड एक अतिरिक्त मामला है।

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