जीवनशैली

क्या है स्लिप डिस्क की समस्या? जानें क्या हैं कारण और उपचार के विकल्प

भीड़ भरी सड़कों पर गाड़ी चलाना और गैजेट्स के बढ़ते चलन के कारण देर तक गलत पॉस्चर में बैठे रहना रीढ़ की सेहत पर भारी पड़ रहा है। पहले जहां चालीस पार ही स्लिप डिस्क के मामले देखने को मिलते थे, आज युवा भी इस बाबत डॉक्टरों के चक्कर लगा रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में आम जीवनशैली में काफी परिवर्तन हुआ है। हमारी शारीरिक सक्रियता काफी कम हुई है और सुविधाओं और गैजेट्स के बढ़ते चलन के कारण लोग घंटों गलत पॉस्चर में बैठे रहते हैं। इन दिनों युवाओं में तेजी से स्लिप डिस्क के मामले बढ़े हैं। एक अनुमान के अनुसार देश की पांच प्रतिशत आबादी स्लिप डिस्क की हल्की या गंभीर हो चुकी समस्या से जूझ रही है।

हमारी रीढ़ की हड्डी में 33 कशेरुकाएं (हड्डियों की शृंखला) होती हैं, और ये कशेरुकाएं डिस्क से जुड़ी रहती हैं। ये डिस्क प्राय: रबड़ की तरह होती है, जो इन हड्डियों को जोड़ने के साथ उनको लचीलापन प्रदान करती है। वास्तव में ये डिस्क रीढ़ की हड्डी में लगे हुए ऐसे पैड होते हैं, जो उसे किसी प्रकार के झटके या दबाव से बचाते हैं। प्रत्येक डिस्क में दो भाग होते हैं; एक जेल जैसा आंतरिक भाग और दूसरा एक कड़ी बाहरी रिंग। चोट लगने या कमजोरी के कारण डिस्क का आंतरिक भाग बाहरी रिंग से बाहर निकल सकता है, इसे स्लिप डिस्क कहते हैं। इसे हर्निएटेड या प्रोलेप्स्ड डिस्क या रप्चर्ड डिस्क भी कहते हैं। इसके कारण दर्द और बेचैनी होती है। अगर स्लिप डिस्क के कारण कोई स्पाइनल नर्व दब जाती है तो सुन्नपन और तेज दर्द की समस्या हो जाती है। गंभीर मामलों में सर्जरी की आवश्यकता होती है।

क्या हैं कारण व जांच के तरीके.
स्लिप डिस्क की परेशानी महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक होती है। इसके निम्न कारण हो सकते हैं… .
शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना खराब पॉस्चर में देर तक बैठे रहना, मांसपेशियों का कमजोर हो जाना, अत्यधिक झुककर भारी सामान उठाना, शरीर को गलत तरीके से मोड़ना या झुकना, क्षमता से अधिक वजन उठाना, रीढ़ की हड्डी में चोट लगना, बढ़ती उम्र।

सबसे पहले डॉक्टर छूकर शारीरिक परीक्षण करते हैं। इसके बाद रीढ़ की हड्डी व आसपास की मांसपेशियों में आई गड़बड़ी को समझने के लिए एक्स-रे, सीटी स्कैन्स, एमआरआई व डिस्कोग्राम्स आदि की सलाह दी जाती है।

उपचार के विकल्प
स्लिप डिस्क का उपचार कई तरह से किया जाता है। किस व्यक्ति के लिए कौन सा उपचार ठीक रहेगा, ये इस पर निर्भर करता है कि समस्या कितनी गंभीर है। उपचार में लापरवाही न की जाए तो स्लिप डिस्क के 90 फीसदी मामलों में आॅपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती है।

फिजियोथेरेपी
अधिकतर लोगों को व्यायाम करने से बहुत लाभ होता है। स्लिप डिस्क के पीड़ितों को फिजियोथेरेपिस्ट की निगरानी में ही व्यायाम करना चाहिए। वह ऐसे व्यायाम कराते हैं, जो कमर व आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करते हैं। दर्द कम करने के लिए एक्सरसाइज करने के 10 मिनट पहले हॉट पैक का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

दवाएं
मरीज की हालत को देखते हुए डॉक्टर मांसपेशियों के खिंचाव व दर्द दूर करने के लिए मसल्स रिलेक्सर्स व नैक्रोटिक्स दवाएं देते हैं।

ओपन सर्जरी
लगातार छह सप्ताह तक व्यायाम व दवाओं का सेवन करने पर भी आराम नहीं मिलता, तो डॉक्टर परीक्षण के बाद सर्जरी की सलाह दे सकते हैं। सर्जन बिना पूरी डिस्क निकाले, डिस्क के क्षतिग्रस्त भाग को निकाल सकता है, इसे माइक्रोडिस्केक्टॉमी कहते हैं। गंभीर मामलों में डॉक्टर डिस्क बदलते हैं और कशेरुकाओं को एक साथ फ्यूज कर देते हैं। लैमिनेक्टॉमी और स्पाइनल फ्यूजन, स्पाइनल कॉलम को स्थिरता देते हैं।

मिनिमली इनवेसिव सर्जरी
आजकल मिनिमली इनवेसिव डिकम्प्रेशन और मिनिमली इनवेसिव स्टेबिलाइजेशन प्रक्रियाओं का चलन काफी बढ़ा है। ओपन नेक और बैक सर्जरी की तुलना में ये सुरक्षित और प्रभावकारी विकल्प हैं। इसमें छोटा चीरा लगाकर ही सर्जरी की जा सकती है।

ओजोन थेरेपी
यह नई उपचार पद्धति है। इसे ओजोन्युक्लियोलाइसिस भी कहा जाता है। यह थेरेपी स्लिप डिस्क के गंभीर मामलों में कारगर है। इसमें प्रभावित डिस्क में ओजोन (आॅक्सीजन का परिष्कृत रूप) का इंजेक्शन लगाया जाता है, जिससे तुरंत दर्द से आराम मिलता है। इसकी सलाह उन्हें दी जाती है, जिनकी तंत्रिकाओं का निचला भाग दब जाता है, जिससे पैरों में तेज दर्द होता है। ओजोन थेरेपी में चीरा लगाने की जरूरत नहीं होती। इसका कोई बुरा असर नहीं होता। लगभग 85 प्रतिशत मामलों में अच्छे परिणाम मिलते हैं। लेकिन स्लिप डिस्क के उन मामलों में जिनमें मरीज के पैर लकवाग्रस्त हो गए हैं या मूत्राशय की मांसपेशियों पर नियंत्रण नहीं रह गया है, उन्हें पारंपरिक सर्जरी की आवश्यकता होती है।

न करें देरी
उपचार की अनदेखी करने पर तंत्रिकाएं स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। बहुत कम मामलों में देखा जाता है कि स्लिप डिस्क कमर के निचले भागों और पैरों के तंत्रिकीय आवेगों को सुन्न कर सकता है। इससे व्यक्ति मलाशय या मूत्राशय पर नियंत्रण खो सकता है। मल-मूत्र त्यागने की सामान्य प्रक्रिया गड़बड़ा सकती है। इसके कारण एक और गंभीर जटिलता हो सकती है, जिसे सैडल एनेस्थीसिया कहते हैं। इस मामले में, स्लिप डिस्क तंत्रिकाओं को कम्प्रेस कर देती है और जांघों के अंदरूनी हिस्से, पैरों के पिछले भाग और मलाशय के आसपास के भाग में संवेदना बंद हो जाती है। पैर लकवाग्रस्त हो सकते हैं और आपको मल-मूत्र त्यागने में समस्या हो सकती है।

योगासन हैं कारगर-कई तरह के योगासन इस समस्या में राहत पहुंचाते हैं। जब चलने-फिरने में समस्या न हो और आप थोड़ा बेहतर महसूस करें, तब योग करना शुरू करें। विशेषज्ञ मत्स्य क्रीड़ासन, मकरासन, भुजंगासन, धनुरासन, वज्रासन, अर्द्धशलभासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन की सलाह देते हैं। इसके अलावा व्यक्ति को थोड़े कड़े बिस्तर पर सोना चिाहए। कमर को ज्यादा हिलाएं नहीं। आराम करें, जब तक सूजन कम न हो जाए। दर्द और सूजन वाली जगह पर बारी-बारी से गर्म और ठंडी पट्टियां रखने से भी आराम मिलता है।

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