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अखिलेश को हल्के में लिया राहुल और प्रियंका ने!

लखनऊ: राहुल और प्रियंका गांधी एक बार को अखिलेश यादव से बड़े स्टार हो सकते हैं, लेकिन यू.पी. में अखिलेश की स्थिति मजबूत है। पिछले दिनों बड़े जोर-शोर से महागठबंधन को लेकर बात आगे बढ़ी थी और अब दोनों दलों के बीच गठबंधन बन भी गया लेकिन इस बातचीत में राहुल और प्रियंका दोनों ही बातचीत की टेबल पर अखिलेश को पूरी तरह समझने में नाकाम साबित हुए और इन दोनों के रवैए से अखिलेश खासे आहत हुए। सपा के सूत्रों ने बताया कि बातचीत के दौरान राहुल और प्रियंका दोनों ने ही अखिलेश के कद को हल्के में लिया। सूत्रों ने बताया कि अखिलेश इस बात से खासे चिढ़ गए कि राहुल और प्रियंका ने सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर बातचीत के लिए प्रशांत किशोर और पूर्व आई.ए.एस. ऑफिसर धीरज श्रीवास्तव को भेजा, जिनकी कांग्रेस की व्यवस्था में कोई अहमियत नहीं है। अखिलेश का मानना था कि इस अहम बातचीत के लिए पार्टी के अनुभवी नेता या पार्टी के निर्णय लेने वाली सबसे ऊंची संस्था कांग्रेस वर्किंग कमेटी के किसी सदस्य को भेजना चाहिए था। सूत्रों के मुताबिक अखिलेश यादव को इस अहम बातचीत में खुद को सपा के सामने राष्ट्रीय पार्टी समझने का रवैया पसंद नहीं आया।
यूपी के नक्शे पर अखिलेश यादव का कद काफी ऊंचा
अखिलेश से जुड़े नजदीकी सूत्र ने बताया कि शुक्रवार व शनिवार रात को करीब एक बजे डिम्पल यादव को प्रियंका गांधी का फोन आया। प्रियंका गांधी ने डिम्पल से बातचीत करने की इच्छा जाहिर की, जिन्होंने अपना मोबाइल फोन स्विच ऑफ किया हुआ था। ऐसे में अखिलेश ने अपनी पत्नी के फोन से प्रियंका गांधी से बातचीत की और उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनके द्वारा नियुक्ति किए गए प्रतिनिधियों के जरिए उनसे बात करेंगे। ऐसे में अखिलेश यादव किसी वरिष्ठ कांग्रेस नेता के ‘माध्यम’ बनने की बात कर रहे थे, लेकिन प्रियंका ने किसी बड़े नेता की बजाय प्रशांत किशोर को चुना। सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश के नक्शे पर अखिलेश यादव का कद काफी ऊंचा है और कांग्रेस का इस पहलू को न समझना और न स्वीकारना यह उनके अहम और गंभीरता की कमी को दिखाता है।
दोनों दलों के बीच रही ‘कभी हां, कभी न’ जैसी स्थिति
अखिलेश के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि वास्तव में अखिलेश को यह उम्मीद थी कि समझौता और उसकी घोषणा के लिए खुद राहुल गांधी लखनऊ रहें लेकिन कांग्रेस ने सख्त रवैया अख्तियार करने की कोशिश की और यह ‘दिल्ली वाला रवैया’ अखिलेश को पसंद नहीं आया। भले ही दोनों दलों के बीच गठबंधन हो गया, लेकिन सभी ने देखा कि कई दिनों तक दोनों दलों के बीच ‘कभी हां, कभी न’ जैसी स्थिति रही। शुरूआत में कांग्रेस ने 140 सीटों की मांग के साथ बातचीत शुरू की थी, लेकिन जवाब में अखिलेश ने उन्हें सिर्फ 72 सीटें देने की बात की। आखिरी राऊंड की बातचीत में अखिलेश ने काफी मोल-भाव करने के बाद सीटों की संख्या 99 कर दी लेकिन कांग्रेस 100 से ज्यादा सीटों की मांग कर रही थी।
शनिवार को आसार करीब-करीब ऐसे थे कि अब गठबंधन नहीं ही होगा। रामगोपाल यादव ने भी कह दिया की बातचीत की सारी संभावनाएं खत्म हो गईं लेकिन रविवार को दोनों दलों के बीच बातचीत बन ही गई लेकिन फैसले के बाद राहुल और प्रियंका को यह अहसास जरूर हो गया होगा कि अखिलेश को हल्के में लेना उनकी गलती थी।

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