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कुछ औरतें जो अपना ‘संविधान’ खुद लिख रही हैं

दस्तक टाइम्स एजेन्सी/ women-airforce-pti_650x400_61445678986नई दिल्ली: पिछले साल रक्षा मंत्रालय ने महिला पायलटों के लड़ाकू विमान उड़ाने को हरी झंडी दी थी। यह फैसला तब लिया गया जब दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं की तरक्की के रास्ते में आने वाली किसी भी तरह की बाधा पर कोर्ट को आपत्ति होगी। जब अखबारों में यह ख़बर पहले पन्ने पर छपी थी, उसके कुछ महीने बाद दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में हसीन नाम की औरत अपने पति से रिक्शा चलाने की इजाज़त मांग रही थी जिस पर उसे जवाब मिला ‘जो चलाना है चलाओ…रिक्शा क्यों..तुम तो हवाई जहाज़ चलाओ…!!’

2015 के गणतंत्र दिवस पर पहली बार महिला अफसरों की टुकड़ी ने परेड में हिस्सा लिया था

ख़ैर, यह ताना हसीन को एक ऐसा काम पकड़ने से नहीं रोक पाया जिसे अक्सर पुरुषों के बस की बात समझा जाता है। हसीन जैसी औरतों को ई-रिक्शा के ज़रिए रोजगार के कुछ ऐसे मौके दिखाई दे रहे हैं जो अभी तक सिर्फ पुरुषों की ही विरासत माना जाता था। यह वे महिलाएं हैं जिन पर जब अपने परिवार की ज़िम्मेदारी आई तो इन्होंने ‘लोग क्या कहेंगे’ से ऊपर उठकर ‘लीक से हटकर’ रोजगार को चुनने में ज़रा सा भी वक्त नहीं लगाया।

यहां ऐसी ही तीन औरतों की कहानी, उनके रोज़मर्रा की चुनौतियों का ज़िक्र है जिन्होंने अखबार की सुर्खियों में जगह तो नहीं बनाई है, लेकिन कभी नहीं खत्म होने वाले संघर्षों के बीच वे जिस जिम्मेदारी के साथ अपने परिवार को चला रही हैं, वह शायद किसी भी सुर्खी से परे है। हसीन जैसी औरतें दरअसल उन सभी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं जिन्होंने अपना घर चलाने और भविष्य के सपनों को बुनने के लिए रोज़गार के बीच खींची गई मर्द-औरत की लकीर को न केवल अपनी मर्ज़ी से लांघा, बल्कि अपने लिए एक नया ‘संविधान’ लिखा।

हसीन का हौंसला
दिल्ली के एक रिहायशी इलाके में लगी ई रिक्शा की लंबी लाइन जहां हसीन अकेली महिला रिक्शा चालक हैं। बिना किसी जल्दबाज़ी के अपने रिक्शा में सवारी भरने का इंतजार करती हसीन के लिए यह काम बहुत पुराना नहीं है। भारत में अब धीरे धीरे महिला रिक्शा चालकों की संख्या बढ़ती जा रही है, हसीन भी उन्हीं चुनिंदा औरतों में से एक हैं जिन्हें लगता है कि कपड़े इस्त्री करने या घर-घर जाकर काम करने से अच्छा है रिक्शा चलाना, इसमें कम से कम थोड़ी देर के लिए घर आकर बच्चों की देखरेख तो की जा सकती है।

अपने मोहल्ले में हसीन अकेली रिक्शाचालक है

45 पार कर चुकी हसीन के तीन बेटे हैं जिनमें से दो की शादी हो चुकी है। सबसे छोटा वाला उनके साथ रिक्शा में चलता है, इसके अलावा हसीन के पिता की दूसरी शादी से हुई बेटियां भी उन्हीं के साथ रहती हैं। हसीन बड़े गर्व से बताती हैं कि दो लड़कियों की शादी उन्होंने बड़े धूमधाम से कर दी है, दोनों अपने-अपने घरों में खुश हैं। अब सबसे छोटी लड़की की शादी करनी बाकी है। यह सब कुछ बताते हुए आपको एक पल के लिए भी नहीं लगेगा कि हसीन जिन लड़कियों की बात कर रही हैं वह उनकी सगी बहनें नहीं हैं।

अब बात हसीन के पति की जो अपने परिवार को पांच साल पहले ही छोड़कर चला गया था और कुछ महीने पहले ही वापस लौटा है। वह फलों की रेहड़ी लगाता है, लेकिन आर्थिक मदद के नाम पर हसीन का ज़रा भी हाथ नहीं बंटाता। हालत यह है कि हसीन की सबसे छोटी बहन ने आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी है और अब वह एक फोटोकॉपी की दुकान पर काम करती है। अभी कुछ दिनों से हसीन के रिक्शे में फिर ब्रेक लग गया है। जब दूसरे रिक्शावालों से हसीन के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला – ‘अरे वो तो मौज-मस्ती वाली औरत है, टाइम पास के लिए रिक्शा चलाती है।‘

शायद यही वह मोर्चा है जिस पर लड़ पाना और उसके बाद खड़े रह पाना किसी भी औरत के लिए सबसे मुश्किल होता है, वैसे भी भारत जैसे कई देशों में औरतों के चरित्र को आंकने का अधिकार समाज के हाथ में होता है, हसीन अपवाद नहीं हैं…लेकिन हसीन का हौंसला यकीनन अपवाद ही है…

पेट्रोल पंप वाली पिंकी
दिल्ली के संभ्रांत इलाके का एक पेट्रोल पंप जहां पिंकी काम करती हैं। सुबह 9 बजे से शाम को 6 बजे तक पिंकी उस पंप पर आने वाली तमाम गाड़ियों में पेट्रोल और डीज़ल डालती दिखाई देंगी। उसकेअलावा उस पंप पर बाकी सभी पुरुष हैं जिनमें से एक पिंकी का पति गुलाल भी है जिसकी नौकरी पिंकी ने ही यहां लगवाई थी। बड़ी शान से अपनी स्कूटी दिखाते हुए पिंकी बताती हैं कि उसे पंप की नौकरी पसंद है। ब्यूटी पार्लर या सुपरमार्केट में काम करने से ज्यादा उसे यह काम करना ज्यादा अच्छा लगता है, क्यों – इसका जवाब उसके पास नहीं है, बस उसे यह काम पसंद है।

पिंकी पेट्रोल पंप पर काम करती है

35 साल की उम्र और पढ़ाई के नाम पर सिर्फ 8वीं पास पिंकी ने नौकरी भी उन्होंने शादी के बाद ही करनी शुरू की है। उसे महीने के 14 हज़ार रुपए मिलते हैं, गुलाल की तनख्वाह इससे थोड़ी ही कम है। पिंकी के अलावा घर में उसकी सास और चार बच्चे है जिसमें से तीन बेटियां और एक बेटा है। पिकीं का पति गुलाल दो साल के लिए इन सबको छोड़कर चला गया था, उसने दूसरी शादी कर ली थी। दो साल बाद जब गुलाल की दूसरी पत्नी ने उसे छोड़ दिया तो वो बड़ी ‘सहजता’ के साथ पिंकी के पास वापिस लौट आया, लेकिन अकेला नहीं बल्कि उसके साथ उसकी दूसरी पत्नी से जन्मी बेटी भी थी।

जिस सहजता के साथ पिंकी तीन नहीं चार बच्चों के मां होने की बात बताती हैं, उससे शायद ही कोई उनकी जिंदगी में आए इस बड़े तूफान का अंदाज़ा लगा सके। कड़ी मेहनत से पिंकी ने अपना घर बना लिया है, भविष्य को लेकर उसके सपने हैं, अपनी स्कूटी की ईएमआई भर चुकी है, अपना, पति का और अपनी सहेलियों के नाम उसने हाथ पर गुदवा रखा है और लड़कियों की मदद करने के लिए वह हमेशा तैयार रहती हैं। पिंकी के हौंसले की गाड़ी में पेट्रोल कभी खत्म ही नहीं होता…

अपने भविष्य की गार्ड गीता
दिल्ली के ख़ान मार्केट की एक दुकान में गीता गार्ड का काम करती हैं। घर सजाने का सामान बेचने वाली इस दुकान में ग्राहकों का तांता लगा रहता है और गेट के पास रखी छोटी सी टेबल मानो बस देखने भर के लिए ही है, क्योंकि गीता को उस पर बैठकर सुस्ताने का वक्त ही नहीं मिलता। यह पूछने पर कि दिन में वह कितनी बार ग्राहकों के लिए दरवाज़ा खोलती-बंद करती हैं, तो जवाब था – ‘गिनती भूल गई हूं।‘ 

गीता गार्ड का काम करती है

किसी दुकान के गेट पर लगातार 7-8 घंटे तक खड़े रहकर ग्राहकों का अभिवादन करते अभी भी कम ही औरतें दिखाई देती हैं। अगर ख़ान मार्केट की ही बात करें, तो गीता वहां अकेली महिला गार्ड हैं, हालांकि वहां काम करने वाले राहुल ने बताया कि गीता के देखा-देखी इलाके की एक और दुकान में महिला गार्ड को नियुक्त किया गया है। 45 पार कर चुकी गीता अपने काम से काफी खुश नज़र आती हैं, वह बताती हैं कि इससे पहले वह पाइप काटने का काम भी कर चुकी हैं, लेकिन वहां के मालिक की बदसलूकी की वजह से उन्होंने वह काम छोड़ दिया।

दिलचस्प बात यह है कि गीता फिलहाल जिस दुकान में काम करती हैं उसकी मालिक से लेकर मैनेजर तक सभी महिलाएं ही हैं। दुकान की मैनेजर मीनाक्षी एक घटना का ज़िक्र करते हुए बताती हैं कि ‘किस तरह उनकी दुकान के बाहर खड़ी एक कार से धुआं निकल रहा था, गीता उस वक्त ड्यूटी कर रहीं थी और उसकी नज़र कार पर पड़ गई। उसने आव देखा ना ताव, बगैर किसी से पूछे वह दुकान में से आग बुझाने का सिलेंडर लेकर कार की तरफ दौड़ीं और एक बड़ी दुर्घटना होने से रोक लिया।’

कभी न खत्म होते संघर्ष
पूरे ख़ान मार्केट में गीता की बहादुरी के चर्चे हैं। उसने अपने बेटे के साथ-साथ अपने माता-पिता और अपनी उस बहन के बच्चों की जिम्मेदारी उठा रखी है जो अब इस दुनिया में नहीं है। करीब 8 साल पहले ही गीता अपने पति से अलग हो गईं थी और अब इतनी दूर हो गई हैं कि उन्हें नहीं पता कि वह कहां और क्या कर रहा है। महीने में करीब 14 हज़ार वेतन पाने वाली गीता को सोच-समझकर छुट्टी लेनी पड़ती है, क्योंकि कई सुरक्षा एजेंसियों की तरह उसकी कंपनी में भी छुट्टी का प्रावधान नहीं है। गीता अपनी जरूरतों के लिए किसी पर निर्भर नहीं हैं, वह अपने मन का काम कर रही हैं, दूसरों की मदद करना गीता को अच्छा लगता है और वह सिर्फ इस दुकान की नहीं अपने परिवार और खुद के सुनहरे भविष्य की गार्ड भी हैं।

हसीन हो, पिंकी हो या फिर गीता, इन सबमें एक बात समान है, यह पढ़ी लिखी नहीं है लेकिन इसके बावजूद इन्होंने समाज की परवाह ना करते हुए अपनी राह खुद चुनी है। क्योंकि जिसके भरोसे इन्होंने अपने भविष्य की डोर दी थी, उसकी तो खुद की पतंग न जाने कहां किस पेड़ पर फंसी हुई है। इतनी परेशानियों के बावजूद खुद के परिवार के साथ इन्होंने दूसरों के बच्चों को संभालने की अतिरिक्त जिम्मेदारियों से भी मुंह नहीं मोड़ा। यही हालात और चुनौतियां इन औरतों को उन मर्दों से अलग और ख़ास बनाती हैं जो इन्हीं की तरह गार्ड या रिक्शा चलाने जैसा काम करते हैं। ऐसी गुमनाम और साहसी औरतें सिर्फ गणतंत्र दिवस ही नहीं किसी भी दिन कई सलामी की हक़दार हैं…

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